Edited By ,Updated: 21 Nov, 2022 05:13 AM
देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की बाढ़ सी आई हुई है।
देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की बाढ़ सी आई हुई है। स्थिति कितनी गंभीर हो चुकी है और अपराधी कितने क्रूर होते जा रहे हैं, यह मात्र 10 दिनों की निम्र घटनाओं से स्पष्टï है :
- 10 नवम्बर को दिल्ली के सरिता विहार में रहने वाली गुलशना नामक महिला की हत्या करने के बाद उसका लिवइन पार्टनर उसके पहले विवाह से उसकी बेटी को साथ लेकर फरार हो गया।
- 14 नवम्बर को झारखंड में सिमडेगा जिले के ‘सरूडा’ गांव में आरोपी अरविंद कुजूर ने अपनी मंगेतर जेनेविभा तिर्की पर तेजधार हथियार से 25 वार करके उसकी हत्या कर दी।
- 16 नवम्बर को लखनऊ में सूफियान नामक युवक ने निधि गुप्ता नामक युवती को चार मंजिला इमारत की छत से नीचे फैंक कर मार डाला।
- 18 नवम्बर को मथुरा के राया क्षेत्र में यमुना एक्सप्रैस-वे पर ट्राली-बैग में बंद बेरहमी से मारी गई एक युवती की लाश बरामद हुई। उसके हाथ, पैर और सिर में मौजूद चोट के निशान उसके साथ की गई क्रूरता की कहानी कह रहे थे। उससे बलात्कार का संदेह भी व्यक्त किया जा रहा है।
- ऐसे में कुछ 1995 के बहुचॢचत तंदूर कांड, 2010 के देहरादून के अनुपमा गुलाटी केस और 8 नवम्बर, 2022 के जबलपुर हत्याकांड जैसी उदाहरणें हैं जो हाल ही में दिल्ली में श्रद्धा वाल्कर नामक युवती के जघन्य हत्याकांड से मिलती-जुलती हैं जिसके शरीर के कई टुकड़े उसके लिव इन पार्टनर आफताब ने किए। दिल्ली के अलावा दिल्ली पुलिस हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्टï्र और हरियाणा में भी जाकर साक्ष्य जुटाने की कोशिश कर रही है।
- परंतु कोई प्रमाण न मिलने तक आरोपी के खिलाफ दोष सिद्ध कर पाना अत्यंत कठिन है। चूंकि हत्या कई महीने पहले की गई और अपराधी बार-बार अपने बयान बदल रहा है, इसी कारण इस मामले में अभी तक कोई ठोस प्रमाण पुलिस के हाथ नहीं लगा है। पुलिस को मिली हड्डिïयों से अनुमान लगाना कठिन है कि ये श्रद्धा की हैं या नहीं। इसके लिए डी.एन.ए. टैस्ट करवाना होगा जिसके लिए श्रद्धा के पिता से डी.एन.ए. लिया जाएगा।
- महरौली के जिस घर में यह कांड हुआ वहां मिले खून के धब्बों के बारे में विश्वासपूर्वक कहना मुश्किल है। बाथरूम जहां पर श्रद्धा के शरीर के टुकड़े किए गए वहां हो सकता है कि फर्श की दरारों में से डी.एन.ए. के नमूने मिलें जिनकी जांच करवानी होगी।
- आफताब ने फ्रिज को अच्छी तरह स्क्रब कर दिया है। उसमें श्रद्धा की छोड़ी हुई कोई चीज या जूठन आदि मिलने से शायद कुछ पता चल सके।
- नार्को टैस्ट भी विश्वसनीय नहीं माना जाता। इसकी तकनीक पुरानी है और कोर्ट उसे सबूत नहीं मानती।
- यह प्रमाण तो है कि श्रद्धा को आई हुई चोटों के इलाज के लिए कम से कम एक बार अस्पताल में दाखिल करवाया गया था परंतु जब तक किसी पीड़िता द्वारा स्वयं ऐसा न कहा गया हो, कार्रवाई नहीं होती।
- जहां तक इनके पड़ोसियों का संबंध है, श्रद्धा और आफताब 2-3 दिन पहले ही उस मकान में आए थे। किसी पड़ोसी ने यह नहीं कहा कि उसने कोई शोर सुना था।
ऐसे में डेटिंग एप्स को आधार या कोई और आई.डी. मांगना अनिवार्य करना होगा। अविश्वसनीय डेटिंग एप्स के बहकावे में आकर युवतियां अक्सर अवैध संबंधों के चंगुल में फंस रही हैं। पुलिस द्वारा त्रुटिपूर्ण जांच, लापरवाही, डी.एन.ए. मेल खा जाने के बावजूद प्रमाणों को कोर्ट में मजबूती से पेश न करने से सभी गवाहों को जिरह के लिए न बुलाने आदि कारणों से अपराधी अक्सर छूट जाते हैं। इसका नवीनतम उदाहरण छावला का किरण नेगी बलात्कार कांड है जिसमें आरोपियों ने हैवानियत की सभी हदें पार कर दीं लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने यह कहते हुए निचली अदालत द्वारा तीनों आरोपियों को सुनाई गई फांसी की सजा माफ कर दी कि उनके सामने, ‘‘सबूतों के अभाव और मुकद्दमे की सुनवाई में गंभीर चूकों को देखते हुए आरोपियों को बरी करने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं था।’’
ऐसे हालात में प्रश्र पैदा होता है कि पढ़े-लिखे होने के बावजूद लड़कों की यह कैसी मानसिकता है और उनके परिवार वाले उन्हें क्या संस्कार दे रहे हैं जो वे क्रूरता की सारी हदें पार करते जा रहे हैं? पुलिस की भूमिका समाज में अपराधों को रोकने के लिए वर्तमान हालात से अधिक योग्य एवं विस्तृत होनी चाहिए जिसके भय से लोग अपराध करने से डरें परंतु किरण नेगी केस से स्पष्टï है कि अपनी यह भूमिका निभाने में पुलिस असफल रही है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या घरेलू ङ्क्षहसा की रिपोॄटग और महिलाओं के खिलाफ अपराधों के कानूनों में संशोधन करने की आवश्यकता नहीं है? अत: जहां समाज द्वारा अपराधों के प्रति शून्य सहनशीलता अपनाने की आवश्यकता है, वहीं माता-पिता द्वारा संतानों के पालन-पोषण में सुधार लाने और पुलिस की जांच में मुस्तैदी लाने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं होने पर महिलाओं के विरुद्ध इस प्रकार के अपराध होते ही रहेंगे।