पाकिस्तान की वही दो समस्याएं वित्तीय संकट और कट्टरवाद

Edited By Pardeep,Updated: 22 Oct, 2018 04:26 AM

the same two problems of pakistan financial crisis and fundamentalism

पाकिस्तानी नेताओं द्वारा पैदा दो समस्याओं से उनके सभी प्रधानमंत्रियों का सामना होता रहा है। वित्तीय संकट तथा धार्मिक कट्टरवाद की ये समस्याएं आज प्रधानमंत्री इमरान खान के सामने खड़ी हैं। प्रधानमंत्री बनने से पहले इमरान ने देश को अपने पैरों पर खड़ा...

पाकिस्तानी नेताओं द्वारा पैदा दो समस्याओं से उनके सभी प्रधानमंत्रियों का सामना होता रहा है। वित्तीय संकट तथा धार्मिक कट्टरवाद की ये समस्याएं आज प्रधानमंत्री इमरान खान के सामने खड़ी हैं। 

प्रधानमंत्री बनने से पहले इमरान ने देश को अपने पैरों पर खड़ा करने का वायदा किया था। ‘‘मैं दुनिया भर में घूम कर भीख मांगने की बजाय खुदकुशी करना पसंद करूंगा’’  कहने वाले इमरान ने पहले विदेश दौरे पर ही सऊदी अरब तथा यू.ए.ई. से तुरंत पाकिस्तान को वित्तीय सहायता भेजने की गुहार लगाई थी। गत सप्ताह पाकिस्तान ने चीन से और ऋण देने के लिए कहा है। 8 अक्तूबर तक उनकी सरकार ने आई.एम.एफ. से भी ऋण के लिए सम्पर्क कर लिया था जिसने कहा है कि पाकिस्तान पहले चीन से लिए सभी ऋणों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे। 

वर्तमान में इसका फॉरेन एक्सचेंज 8 बिलियन डॉलर है जो आयात तथा इस वर्ष के अंत तक विदेशी ऋण की अदायगी की पूर्ति के लिए अपर्याप्त है। देश का काम चालू रखने के लिए पाकिस्तान सरकार को अल्प अवधि में लगभग 10 बिलियन डॉलर का जुगाड़ करना होगा। तालिबान पर नकेल कसने में नाकामयाब रहने पर हाल के दिनों में पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद बंद करने वाले अमेरिका ने इस बात पर चिंता जाहिर की है कि पाकिस्तान आई.एम.एफ. से मिले ऋण से चीन का ऋण चुकाता रहा है। एक टी.वी. प्रसारण में इमरान खान ने विदेशों में रहने वाले प्रत्येक पाकिस्तानी से सरकार को 1000 डॉलर दान देने की अपील की है। 

खर्चे घटाने तथा मितव्ययिता के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता जाहिर करने के लिए उसने 61 लग्जरी कारों सहित प्रधानमंत्री आवास को दूध की आपूर्ति करने के लिए पाली गई 8 भैंसों को भी नीलाम कर दिया है। यदि पाकिस्तान अपनी वर्तमान वित्तीय समस्याओं से कुछ मित्र देशों की सहायता से निपट भी ले तो उसके सामने एक बड़ा मुद्दा (धर्म से जुड़ा) मुंह फैलाए खड़ा है जो इन सभी प्रयासों पर पानी फेर सकता है। एक बड़ा मुद्दा 53 वर्षीय ईसाई महिला आसिया बीबी का है जिसे ईश निंदा के आरोप में 2010 में मृत्युदंड सुनाया गया था। हजारों इस्लामिक कट्टरवादी उसके खून के प्यासे हैं। 8 अक्तूबर को ही इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है और अदालत का कहना है कि वह इस पर अपना फैसला सुना देना चाहती है। यदि अदालत बीबी को बरी कर देती है तो नि:संदेह संवेदना तथा धार्मिक सहनशीलता की यह पाकिस्तान में एक दुर्लभ जीत होगी जिसका पश्चिमी देश भी स्वागत करेंगे। 

दूसरी ओर यदि अदालत मृत्युदंड की सजा बरकरार रखती है तो यह कट्टरवादियों की एक और जीत होगी। बीबी की समस्याएं पानी के गिलास पर हुए झगड़े से शुरू हुई थीं जब दो मुस्लिम महिलाओं ने खेतों में काम करने तथा 5 बच्चों की मां बीबी को गिलास से पानी पीकर उसे दूषित करने का आरोप लगाया था। पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर के 2011 में बीबी से मिलने जेल जाने से नाराज उनके अंगरक्षक ने तासीर की हत्या कर दी थी। दो महीने बाद ईश निंदा कानून का विरोध करने वाले एक ईसाई राजनीतिज्ञ शाहबाज भट्टी की हत्या कुछ बंदूकधारियों ने कर दी थी। 

जुलाई में हुए चुनावों में 20 लाख से अधिक वोट प्राप्त करने वाली टी.एल.पी.(तहरीक-ए-लब्बाइक पार्टी) एक कट्टरवादी दल है जो बीबी को फांसी देने की मांग करते हुए ऐसा न होने पर देश को पंगु बना देने की धमकी दे रहा है। हजारों प्रदर्शनकारी इस मांग के साथ लाहौर, कराची, रावलपिंडी तथा अन्य शहरों में सड़कों पर उतर चुके हैं। ऐसी परिस्थितियों में ईश निंदा के आरोपियों को मृत्युदंड की वकालत करने वाली इमरान खान की पार्टी बीबी को फांसी के फंदे पर लटका देती है तो सारा पश्चिमी जगत इस वित्तीय संकट में उसकी किसी भी तरह की मदद करने से खुद को दूर ही रखेगा क्योंकि केवल पोप ही नहीं, अन्य कैथोलिक संस्थान भी बीबी को पाकिस्तान से डिपोर्ट करने की अपील कर रहे हैं। इन हालात में इतना तो साफ है कि इमरान खान या तो पाक कट्टरवादियों को खुश कर सकते हैं या देश के गम्भीर वित्तीय संकट को दूर करने के लिए पश्चिमी देशों से मदद की आस रख सकते हैं।

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