Edited By Pardeep,Updated: 07 Oct, 2018 04:15 AM
भले ही हमारे देश में विकास कार्यों का कितना ही ढिंढोरा पीटा जाता हो आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश के अनेक हिस्सों में आवागमन की संतोषजनक व्यवस्था नहीं है। वे आज भी लम्बे समय तक शेष देश से कटे रहते हैं और अपनी दैनिक जीवनोपयोगी जरूरतें पूरी करने के...
भले ही हमारे देश में विकास कार्यों का कितना ही ढिंढोरा पीटा जाता हो आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश के अनेक हिस्सों में आवागमन की संतोषजनक व्यवस्था नहीं है। वे आज भी लम्बे समय तक शेष देश से कटे रहते हैं और अपनी दैनिक जीवनोपयोगी जरूरतें पूरी करने के मामले में उन्हें भारी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की सुदूरवर्ती ब्यासघाटी के धारचूला इलाके में बसे 7 गांव-गर्बयां, बुंदी, गुंजी, कुटी, नपालचू, नाभि और रान्कांग में रहने वाले 400 परिवारों के हजारों सदस्य अपनी दैनिक जीवनोपयोगी आवश्यकताओं को भारत से नहीं बल्कि चीन से पूरी कर रहे हैं। इन्हें अपनी जरूरत की वस्तुएं नमक, तेल, आटा, चावल आदि पड़ोसी देश से खरीदनी पड़ती हैं जो इन तक नेपाल के रास्ते पहुंचती हैं क्योंकि राज्य सरकार द्वारा सप्लाई किया जाने वाला राशन कई-कई महीनों तक रास्ता अवरुद्ध रहने के कारण इन तक नहीं पहुंच पाता और यदि सामान पहुंच भी जाए तो वह यहां रहने वाले परिवारों के लिए बहुत कम होता है।
इस कारण यहां के निवासियों को अपनी दैनिकोपयोगी जरूरत की वस्तुएं नेपाल के गांवों से मंगवानी पड़ती हैं जहां ये वस्तुएं चीन से आती हैं। इलाके के लोगों का यह भी कहना है कि ये वस्तुएं निकटतम भारतीय मंडी धारचूला, जो यहां से 50 किलोमीटर दूर है, की तुलना में सस्ती भी होती हैं। उल्लेखनीय है कि इन गांवों को जोडऩे वाली सड़क गत वर्ष नाजांग और लखनपुर के बीच वर्षा में बह गई थी।
हालांकि सीमा सड़क संगठन द्वारा इसका निर्माण किया जा रहा है परंतु फिलहाल यह वाहन चलाने के काबिल नहीं है और वैसे भी प्राकृतिक कारणों से ब्यासघाटी तक पहुंचने वाला मार्ग वर्ष के कई महीनों तक बाधित रहता है। लोगों का कहना है कि वे अपने ही देश में अनाथों की भांति रह रहे हैं और उनकी यह समस्या तभी दूर हो सकती है यदि सरकार इन गांवों के लिए राशन का कोटा बढ़ा दे और इनकी सप्लाई हर मौसम में सुनिश्चित की जाए ताकि उन्हें अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए इधर-उधर न देखना पड़े।—विजय कुमार