यह हैं हमारे सरकारी अस्पतालों के हाल डाक्टरों व अन्य कर्मचारियों की लापरवाही के कुछ नमूने

Edited By Pardeep,Updated: 01 Nov, 2018 04:39 AM

this is some of our government hospitals some of the negligence of doctors

लोगों को सस्ती स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल व लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु ये दोनों ही इसमें सफल नहीं हुईं। इसीलिए सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने व सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने...

लोगों को सस्ती स्तरीय शिक्षा एवं चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल व लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु ये दोनों ही इसमें सफल नहीं हुईं। इसीलिए सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने व सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने से आम आदमी संकोच करता है। यहां पेश हैं अस्पतालों में संबंधित स्टाफ की लापरवाही के कुछ उदाहरण : 

08 अक्तूबर को दिल्ली के सरकारी हैडगेवार अस्पताल में दाखिल रोगी ने जब छाती में भारी दर्द की शिकायत की तो अस्पताल वालों ने उसे फार्मेसी से अपने लिए खुद दवाएं लाने भेज दिया जहां उसकी मृत्यु हो गई। 22 अक्तूबर को बिहार में बक्सर के सदर अस्पताल में उपचाराधीन एक घायल का चिकित्सकों ने पैर काट दिया परंतु कटा पैर संभाला नहीं और आप्रेशन थिएटर में घुस कर एक आवारा कुत्ता उसे उठाकर ले गया। 

25 अक्तूबर को बिहार के सहरसा के सदर अस्पताल के परिसर से एक नवजात शिशु के शव को एक सूअर मुंह में दबा कर जंगल में भाग गया। 27 अक्तूबर को ‘भोपाल मैमोरियल अस्पताल एवं रिसर्च सैंटर’ के स्टाफ ने एक हिंदू मृतक के परिजनों को कुंजुमन नामक एक ईसाई मृतक का पाॢथव शरीर सौंप दिया जिन्होंने उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया। इसका पता चलने पर दोनों पक्षों ने भारी हंगामा किया। 27 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश में कानपुर के रसूलाबाद स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से इलाज के लिए एक महिला को जिला महिला अस्पताल में रैफर किया गया परंतु वहां ड्यूटी पर तैनात महिला डाक्टर के अनुपस्थित होने के कारण इलाज नहीं होने से उसकी मृत्यु हो गई। 29 अक्तूबर को बिहार के सासाराम स्थित सदर अस्पताल के ‘पोस्टमार्टम हाऊस’ के निकट लावारिस पड़े बच्चे के शव को चींटियां खाती देखी गईं।

29 अक्तूबर को झारखंड के गढ़वा सदर अस्पताल में उपचाराधीन युवती को समय पर आक्सीजन नहीं लगाने से उसकी मृत्यु हो गई। 29 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश में जौनपुर के जिला महिला अस्पताल में प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को संबंधित डाक्टर ने जांच किए बिना यह कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया कि अभी प्रसव में समय है परंतु अस्पताल से बाहर जाने से पहले ही महिला ने अस्पताल के शौचालय में बच्चे को जन्म दे दिया। 29 अक्तूबर को बिहार में मधेपुरा के सदर अस्पताल में एक बीमार बच्ची को लाया गया परंतु डाक्टरों व अन्य कर्मचारियों की लापरवाही के चलते  परिजनों द्वारा अस्पताल में पर्ची कटवाने से लेकर डाक्टर से मिलने के प्रयास में ही कई घंटे बीत गए और इस बीच बच्ची ने दम तोड़ दिया। 30 अक्तूबर को राजस्थान में उदयपुर स्थित पन्ना धाय चिकित्सालय में चिकित्सा कर्मियों की लापरवाही से जन्म लेते ही नवजात सीधे बाल्टी में गिर पड़ा तथा सिर में चोट लगने और अधिक खून बह जाने से उसकी मृत्यु हो गई।

30 अक्तूबर को बिहार में दरभंगा स्थित मैडीकल कालेज और अस्पताल में आई.सी.यू. में भर्ती नवजात शिशु के हाथ और पैर चूहों द्वारा कुतर देने से शिशु की दर्दनाक मौत हो गई। ये तो मात्र वे घटनाएं हैं जो प्रकाश में आईं। इनके अलावा भी न जाने कितनी ऐसी घटनाएं हुई होंगी। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख लोगों की मौत चिकित्सीय लापरवाहियों के चलते होती है और इसका कारण डाक्टरों तथा नर्सों में अस्पताल लाए जाने वाले मरीजों को संभालने के व्यावहारिक ज्ञान की कमी है। ऐसे में विशेषज्ञों का दावा है कि डाक्टरों और अस्पतालों के अन्य कर्मियों के लिए विशेष पाठ्यक्रम चलाने की आवश्यकता है जो इस बात पर केन्द्रित हो कि गंभीर बीमार या घायल रोगी को तुरंत और कैसे संभालना चाहिए। कई बार तो डाक्टरों से लेकर नीचे के स्टाफ तक का रोगियों और उनके परिजनों से व्यवहार अत्यंत रूखा और अपराध तुल्य होता है। इसे सुधारने और स्टाफ को यह एहसास करवाने की आवश्यकता है कि रोगियों के साथ इस तरह का व्यवहार करना कदापि उचित नहीं।—विजय कुमार

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