Edited By ,Updated: 10 Jan, 2016 12:40 AM
न सिर्फ शादियों में बल्कि अन्य समारोहों में भी अनुमानित आवश्यकता से कहीं अधिक भोजन पकाया जाता है और बचा हुआ फालतू भोजन जरूरतमंदों तक पहुंचाने की बजाय कूड़ेदानों में फैंक दिया जाता है।
न सिर्फ शादियों में बल्कि अन्य समारोहों में भी अनुमानित आवश्यकता से कहीं अधिक भोजन पकाया जाता है और बचा हुआ फालतू भोजन जरूरतमंदों तक पहुंचाने की बजाय कूड़ेदानों में फैंक दिया जाता है। अन्न की यह बर्बादी प्राकृतिक संसाधनों को भी क्षति पहुंचाती है और गड्ढों में फैंके गए इस भोजन से निकलने वाली हानिकारक ‘मिथेन गैस’ ग्लोबल वाॄमग का कारण भी बनती है। इस तरह की निराशाजनक स्थिति को देखते हुए देश में कुछ संस्थाएं जरूरतमंदों की सहायता के लिए आगे आ रही हैं।
इसी सिलसिले में सबसे पहले 2013 में राजस्थान में ‘अन्न क्षेत्र फाऊंडेशन’ नामक एन.जी.ओ. ने विवाह-शादियों, पाॢटयों, होटलों तथा धर्म स्थानों का बचा हुआ भोजन साफ-सुथरे और वैज्ञानिक ढंग से इकठ्ठा करके जयपुर के जरूरतमंद लोगों के बीच बांटने का सराहनीय अभियान शुरू किया था।
इसी से प्रेरित हो कर कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में एक ‘रोटी बैंक’ की स्थापना की गई थी और अब गत वर्ष 5 दिसम्बर को महाराष्टर के औरंगाबाद में ‘हारून मुकाती इस्लामिक सैंटर’ के संस्थापक यूसुफ मुकाती ने एक ‘रोटी बैंक’ की स्थापना की है। यह भारत में ऐसा तीसरा ‘रोटी बैंक’ है। यूसुफ मुकाती के अनुसार अनेक जरूरतमंद बड़े, बूढ़े और बच्चों को भूखे पेट सोते देख कर उनके मन में यह रोटी बैंक बनाने का विचार आया।
उन्होंने इस विषय में अपनी पत्नी कौसर और चारों बहनों से सलाह की और 250 ‘रोटी डिपाजिटरों’ की सदस्यता से यह ‘बैंक’ शुरू कर दिया। धीरे-धीरे सदस्य बढ़ते गए और अब इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि जिन घरों में कोई विवाह या अन्य समारोह होता है वे भी सारा बचा भोजन अपने आप यहां आकर जमा करवाने लगे हैं।
इस ‘रोटी बैंक’ की सदस्यता की शर्त यह है कि ‘डिपाजिट कत्र्ता’ को अपने घर में बनी दो ताजा रोटियां दाल या सब्जी के साथ बैंक में जमा करवानी होती हैं। इन्हें जांच-परख कर साफ-सुथरे ढंग से फ्रीजरों में संभाल कर रखा जाता है और प्रतिदिन लगभग 500 जरूरतमंदों को बांट दिया जाता है जिसका समय सुबह 11 से रात 11 बजे तक है। यहां सभी धर्मों के लोगों को बिना भेदभाव के आदरपूर्वक भोजन दिया जाता है।
इसी प्रकार समय की पाबंदी के साथ मुम्बई के दफ्तरों और घरों में भोजन पहुंचाने के लिए विश्व भर में चॢचत ‘डब्बा वालों’ के सबसे बड़े संगठन ‘मुम्बई जीवन डब्बे वहातूक महामंडल’ के 400 सदस्यों ने मुम्बई के 30 बड़े विवाह समारोहों के आयोजकों के साथ एक ‘गठबंधन’ किया है और सामाजिक समारोहों में बचा हुआ भोजन इकठ्ठा करके जरूरतमंदों में बांटने के लिए ‘रोटी बैंक’ के नाम से एक अभियान शुरू किया है।
इसके अंतर्गत वे इन ‘डब्बा वालों’ को विवाह समारोह समाप्त होते ही बचा हुआ भोजन ले जाने के लिए फोन कर देते हैं और उनके निकटतम मौजूद ‘डब्बा वाले’ वहां से भोजन एकत्रित करके फुटपाथों, झोंपड़पट्टियों और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों में बांट देते हैं।
‘डब्बा वाले’ दोपहर को अपना काम समाप्त करने के बाद रोटियां बांटना शुरू करते हैं और जितना भी भोजन एकत्रित होता है उसे जरूरतमंदों तक पहुंचा कर ही दम लेते हैं। संगठन के प्रवक्ता सुभाष तालेकर के अनुसार, ‘‘आखिर बचा हुआ अन्न बर्बाद क्यों जाने दिया जाए! हम लोग समय पर लंच बॉक्स पहुंचाने के लिए विख्यात हैं। अब हम यह अन्न एकत्रित करके जरूरतमंदों का पेट भरना चाहते हैं।’’
भारत जैसे देश में 37 प्रतिशत जनता गरीबी की रेखा से नीचे रहती है और हर रात लगभग 20 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं। जरूरतमंदों की भूख मिटाने के लिए ये प्रयास बहुत ही अच्छे हैं तथा अन्य समाजसेवी संस्थाओं को भी इस संबंध में आगे आना चाहिए क्योंकि इतने बड़े देश में मात्र तीन-चार संस्थाएं बहुत कम हैं।
अच्छा होगा, यदि उक्त संगठनों को देखते हुए अन्य शहरों में भी इस प्रकार की संस्थाएं बनें और उन शहरों में विवाह समारोहों आदि के आयोजक उनके माध्यम से अपना बचा हुआ भोजन जरूरतमंदों तक पहुंचा कर उनका पेट भरने में सहायता करें।