Edited By ,Updated: 14 Jun, 2019 11:57 PM
बुढ़ापे में बुजुर्गों को बच्चों के सहारे की अधिक जरूरत होती है। गृहस्थी बन जाने के बाद अधिकांश संतानें माता-पिता से उनकी जमीन- जायदाद अपने नाम लिखवा कर उनकी ओर से आंखें फेर लेती हैं। इसीलिए हम अपने लेखों में यह बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता...
बुढ़ापे में बुजुर्गों को बच्चों के सहारे की अधिक जरूरत होती है। गृहस्थी बन जाने के बाद अधिकांश संतानें माता-पिता से उनकी जमीन- जायदाद अपने नाम लिखवा कर उनकी ओर से आंखें फेर लेती हैं। इसीलिए हम अपने लेखों में यह बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने बच्चों के नाम अवश्य कर दें परंतु इसे ट्रांसफर न करें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं परंतु आमतौर पर बुजुर्ग यह भूल कर बैठते हैं जिसका खमियाजा उन्हें अपने शेष जीवन में भुगतना पड़ता है।
संतानों द्वारा अपने बुजुर्गों की उपेक्षा को रोकने और उनके ‘जीवन की संध्या’ को सुखमय बनाना सुनिश्चित करने के लिए सबसे पहले हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था। इसके अंतर्गत पीड़ित माता-पिता को संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने का अधिकार दिया गया व दोषी पाए जाने पर संतान को माता-पिता की सम्पत्ति से वंचित करने, सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां न देने तथा उनके वेतन से समुचित राशि काट कर माता-पिता को देने का प्रावधान है।
संसद द्वारा पारित ‘अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक देखभाल व कल्याण विधेयक-2007’ के द्वारा भी बुजुर्गों की देखभाल न करने पर 3 मास तक कैद का प्रावधान है तथा इसके विरुद्ध अपील की अनुमति भी नहीं है।कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी ऐसे कानून बनाए हैं। असम सरकार ने अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करने तथा उनकी देखभाल नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कटौती करने का कानून बनाया है।
और अब बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने 11 जून को एक बड़ा निर्णय किया है जिसके अनुसार अब संतानों के लिए माता-पिता की सेवा करना अनिवार्य होगा। इस बारे माता-पिता की शिकायत पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी और उनकी सेवा नहीं करने वाली संतानों को जेल भी जाना पड़ सकता है। इस मामले में जिला मैजिस्ट्रेट को सुनवाई करने का अधिकार दिया गया है।
इसके अलावा बिहार मंत्रिमंडल ने वृद्धजन पैंशन योजना को अब ‘राइट टू सॢवस एक्ट’ में शामिल कर दिया है तथा पात्र अधिकारी को इस पर 21 दिनों के भीतर निर्णय देना होगा। बुजुर्गों की देखभाल की दिशा में बिहार सरकार द्वारा उठाया गया यह पग सराहनीय है परंतु अभी भी अनेक ऐसे राज्य हैं जहां ऐसा कोई कानून नहीं है, अत: उनमें भी ऐसा कानून लागू करना आवश्यक है। —विजय कुमार