अध्यापकों की कमी से जूझ रहे देश के हजारों स्कूल

Edited By ,Updated: 12 Dec, 2019 02:14 AM

thousands of schools in the country are facing shortage of teachers

हालांकि लोगों को सस्ती और स्तरीय चिकित्सा एवं शिक्षा, पीने का साफ पानी व लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु स्वतंत्रता के 72 वर्ष बाद भी वे इसमें विफल रही हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में प्रगति का...

हालांकि लोगों को सस्ती और स्तरीय चिकित्सा एवं शिक्षा, पीने का साफ पानी व लगातार बिजली उपलब्ध करवाना हमारी केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परंतु स्वतंत्रता के 72 वर्ष बाद भी वे इसमें विफल रही हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में प्रगति का एकमात्र माध्यम शिक्षा ही हो सकती है, इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2009 में भारत में शत-प्रतिशत साक्षरता प्राप्त करने के उद्देश्य से ‘राइट टू एजुकेशन’ लागू किया गया था। 

इसके अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य की गई है परंतु राजधानी दिल्ली सहित अधिकांश सरकारी स्कूल बुनियादी ढांचे और अध्यापकों के भारी अभाव से जूझ रहे हैं :

दिल्ली के 1030 सरकारी स्कूलों में छठी से 10वीं कक्षाओं के अध्यापकों के 3825 पद खाली हैं व कई स्कूलों में प्रिंसिपल और वाइस पिं्रसीपल भी नहीं हैं। पंजाब के 1000 स्कूलों में मात्र एक ही अध्यापक है। चंडीगढ़ के स्कूलों में लगभग 600 अध्यापकों की कमी है। हरियाणा में पी.जी.टी. अध्यापकों के 12048 पद खाली पड़े हैं। यहां तक कि 2423 सैकेंडरी और सीनियर सैकेंडरी स्कूलों में अंग्रेजी, गणित और विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषयों के अध्यापकों के पद भी खाली हैं। हिमाचल के स्कूलों में विभिन्न श्रेणियों के अध्यापकों के 3636 पद रिक्त पड़े हैं जिन्हें प्रदेश सरकार ने ठेके के आधार पर भरने का निर्णय लिया है। 

मध्य प्रदेश में लगभग 22,000 स्कूलों में एक-एक ही अध्यापक है। केंद्रीय स्कूलों में 6000 अध्यापकों के पद खाली हैं। आई.आई.टी. व आई.आई.एम. सहित अनेक शिक्षा संस्थानों में भी पूरे अध्यापक नहीं हैं। यह तो मात्र कुछ राज्यों में अध्यापकों की कमी का हाल है जबकि देश के अन्य भागों में भी स्थिति ऐसी ही है। आज जबकि देश बेरोजगारी की भारी समस्या से जूझ रहा है, अध्यापकों के खाली पड़े स्थान जल्दी भरने से जहां देश में बेरोजगारी की समस्या से कुछ राहत मिलेगी वहीं देश में शिक्षा का स्तर भी कुछ सुधरेगा और ‘शिक्षा के अधिकार’ को अमली जामा पहनाने में भी सहायता मिलेगी।—विजय कुमार   

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