‘न्यायपालिका की’‘तीन जनहितकारी टिप्पणियां’

Edited By ,Updated: 08 Sep, 2021 03:57 AM

three public interest comments by the judiciary

हमारे सत्ताधारियों को न्यायपालिका तथा मीडिया द्वारा कही जाने वाली खरी-खरी बातें चुभती हैं, परंतु यह कटु वास्तविकता है कि आज जबकि कार्यपालिका और विधायिका निष्क्रिय हो गई हैं, केवल न्यायपालिका और मीडिया ही जनहित से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकारों...

हमारे सत्ताधारियों को न्यायपालिका तथा मीडिया द्वारा कही जाने वाली खरी-खरी बातें चुभती हैं, परंतु यह कटु वास्तविकता है कि आज जबकि कार्यपालिका और विधायिका निष्क्रिय हो गई हैं, केवल न्यायपालिका और मीडिया ही जनहित से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकारों को झिंझोड़ रहे हैं। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट तथा बॉम्बे (मुम्बई) हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में की गई तीन जनहितकारी टिप्पणियां निम्र में दर्ज हैं : 

4 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट के मान्य न्यायाधीशों संजय किशन कौल तथा न्यायमूर्ति एम.एम. सुंद्रेश पर आधारित बैंच ने सी.बी.आई. के कामकाज पर नाराजगी व्यक्त करते हुए इसका रिपोर्ट कार्ड तैयार करने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट इस बात की जांच कर रही है कि सी.बी.आई. का ‘प्रासीक्यूटिंग विंग’ अपने काम में कितना कुशल है। अदालत ने पाया कि सी.बी.आई. द्वारा अपने काम में बहुत लापरवाही बरतने के कारण अदालतों में मुकद्दमे दायर करने में बेवजह देर होती है। इसी बारे अदालत ने सी.बी.आई. से जवाब मांगा था तथा सी.बी.आई. की ओर से पेश एडीशनल सोलिसिटर जनरल संजय जैन के उत्तर से असंतुष्ट मान्य न्यायाधीशों ने कहा,‘‘केवल केस दर्ज कर लेना ही काफी नहीं है।’’ 

‘‘सी.बी.आई. को जांच करके यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियोजन पूरा हो। अदालत सी.बी.आई. की कारगुजारी व जांच तथा मामलों को तर्कसंगत अंत तक ले जाने में उसकी सफलता की दर को भी आंकेगी।’’ इसके साथ ही अदालत ने सी.बी.आई. के निदेशक से उसके सामने उन मुकद्दमों/मामलों की संख्या रखने को कहा, जिनमें सी.बी.आई. आरोपियों  को सजा दिलाने में सफल रही है। 4 सितम्बर को ही बॉम्बे (मुम्बई) हाईकोर्ट ने प्रसव के 5 दिन बाद एक महिला की मृत्यु के मामले में 2 स्त्री रोग विशेषज्ञों को जिम्मेदार ठहराते हुए उनकी अंतरिम जमानत याचिका रद्द कर दी। इस संबंध में कठोर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति साधना जाधव ने कहा, ‘‘चिकित्सा पेशे में लापरवाह लोगों को बाहर निकालने का समय आ गया है।’’ 

अदालत ने सवाल किया कि ‘‘जब कोई डाक्टर अपने कत्र्तव्य से विमुख होता है तो क्या यह आपराधिक लापरवाही के समान नहीं है? अदालतें चिकित्सा पेशेवरों को उदारतापूर्वक कानूनी सुरक्षा प्रदान करके चिकित्सा कानून के नैतिक पहलू की उपेक्षा नहीं कर सकतीं। इन कत्र्तव्यों का उल्लंघन लापरवाही के आपराधिक कानून के दायरे में आ सकता है।’’ इसी प्रकार 6 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट में विभिन्न विवादों पर शीघ्र न्याय प्रदान करने के लिए गठित 15 प्रमुख ट्रिब्यूनलों में प्रिजाइडिंग अधिकारियों तथा तकनीकी सदस्यों आदि के खाली पड़े पदों को न भरने तथा ‘ट्रिब्यूनल रिफार्म एक्ट’ पास न करने के मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना, न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा : 

‘‘पीठासीन अधिकारियों, न्यायिक सदस्यों एवं तकनीकी सदस्यों की गंभीर कमी से जूझ रहे ट्रिब्यूनलों में अधिकारियों की नियुक्ति न करके केंद्र सरकार इन्हें ‘शक्तिहीन’ कर रही है।’’ पीठ ने कहा कि वह केंद्र सरकार के साथ किसी तरह का टकराव नहीं चाहती लेकिन चाहती है कि बड़ी संख्या में अधिकारियों की कमी का सामना कर रहे ट्रिब्यूनलों में केंद्र सरकार कुछ नियुक्तियां करे। 

पीठ ने कहा, ‘‘यह तो साफ है कि आप इस अदालत के फैसलों का सम्मान नहीं करना चाहते। अब हमारे पास ‘ट्रिब्यूनल सुधार कानून’ पर रोक लगाने या ट्रिब्यूनलों को बंद करने का विकल्प है या फिर हम स्वयं ही उनमें लोगों की नियुक्ति करें या अगला विकल्प है अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू कर दें।’’ उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व 7 अगस्त को भी अदालत ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए साफ तौर पर पूछा था कि ‘‘आप इन ट्रिब्यूनलों को जारी रखना चाहते हैं या बंद करना?’’ 

सी.बी.आई. की कारगुजारी, डाक्टरों द्वारा कत्र्तव्यपालन में लापरवाही तथा विभिन्न ट्रिब्यूनलों में न्यायिक अधिकारियों की कमी से होने वाले नुक्सान के सम्बन्ध में न्यायपालिका की जनहितकारी टिप्पणियों से एक बार फिर इस कथन की पुष्टिï हो गई है कि आज न्यायपालिका ही वह सब काम कर रही है जो सरकारों को स्वयं करने चाहिएं।—विजय कुमार

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