‘सिखी’ को बढ़ावा देने के लिए ‘पंजाबी भाषा का विकास आवश्यक’

Edited By ,Updated: 26 Jun, 2019 03:46 AM

to promote  sikhi   punjabi language development is essential

आज के युवाओं में विदेश जाने का क्रेज बहुत बढ़ गया है। मां-बाप की भी यही इच्छा होती है कि उनके बच्चे अंग्रेजी पढ़-लिख कर योग्य बनें और विदेश जा सकें। इसीलिए ज्यादातर लोगों का रुझान अपने बच्चों को अंग्रेजी में दक्ष करने की ओर हो गया है।  इसी कारण लोग...

आज के युवाओं में विदेश जाने का क्रेज बहुत बढ़ गया है। मां-बाप की भी यही इच्छा होती है कि उनके बच्चे अंग्रेजी पढ़-लिख कर योग्य बनें और विदेश जा सकें। इसीलिए ज्यादातर लोगों का रुझान अपने बच्चों को अंग्रेजी में दक्ष करने की ओर हो गया है। इसी कारण लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों की बजाय अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में ही पढ़ाना तथा अंग्रेजी में निपुण बनाने को अधिमान देने लगे हैं। 

आज के युवा इसी कारण अपनी मातृभाषा से दूर हो रहे हैं। इसीलिए आज अधिकांश स्थानीय भाषाओं की पुस्तकों-पत्रिकाओं आदि की बिक्री कम होती जा रही है और यदि भाषायी लेखक अपनी पुस्तक छपवाना चाहें तो उन्हें अपने पल्ले से ही पैसे खर्च करने पड़ते हैं। 

मातृभाषा के प्रति बढ़ रही उदासीनता और अनभिज्ञता के चलते बच्चे अपने धर्म से भी विमुख हो रहे हैं जिसमें पंजाबी भी शामिल है। इसी को देखते हुए ‘दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी’ के अध्यक्ष मनजिंद्र सिंह सिरसा ने कहा है कि पंजाबी भाषा के विकास से ही ‘सिखी’ को बढ़ावा दिया जा सकता है। नई दिल्ली में करोल बाग के गुरुद्वारा सिंह सभा में आयोजित एक समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आज जब नई पीढ़ी पंजाबी भाषा से दूर होती जा रही है तो इस हालत में पंजाबी भाषा का विकास करके ही ‘सिखी’ को बढ़ावा दिया जा सकता है और नई पीढ़ी को पंजाबी के साथ जोड़ा जा सकता है।’’ 

उन्होंने यह भी कहा, ‘‘अगर हमारे बच्चे गुरमुखी को भूल जाएंगे तो वे अपने इतिहास को भूल जाएंगे और ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ की इलाही वाणी को पढऩे व समझने में समर्थ नहीं होंगे, अत: हमारा कत्र्तव्य है कि पंजाबी भाषा का अधिकतम प्रचार-प्रसार किया जाए।’’‘सिखी’ के प्रचार के लिए पंजाबी भाषा के विकास की आवश्यकता के संबंध में श्री सिरसा द्वारा व्यक्त विचार बिल्कुल सही हैं। अत: हमारी सभी बच्चों के अभिभावकों को यह सलाह है कि बेशक वे अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाएं परन्तु इसके साथ ही उन्हें अपनी मातृभाषा से दूर न होने दें क्योंकि यदि वे अपनी मातृभाषा से विमुख हो जाएंगे तो फिर उन्हें धर्म से भी विमुख होने में देर न लगेगी।—विजय कुमार

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