विरोधी दलों में एकता न हुई तो उनको पछताने के सिवा कुछ नहीं मिलेगा

Edited By Pardeep,Updated: 29 Nov, 2018 04:05 AM

unity in opposition parties nothing to repay them

हालांकि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले भी भाजपा विरोधी दलों में एकता की कुछ सुगबुगाहट सुनाई दी थी परंतु उसका कोई परिणाम नहीं निकल पाया और अब जबकि 2019 के चुनावों में थोड़ा समय ही रह गया है, एक बार फिर विरोधी दलों में एकता के प्रयास तेज हो गए...

हालांकि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले भी भाजपा विरोधी दलों में एकता की कुछ सुगबुगाहट सुनाई दी थी परंतु उसका कोई परिणाम नहीं निकल पाया और अब जबकि 2019 के चुनावों में थोड़ा समय ही रह गया है, एक बार फिर विरोधी दलों में एकता के प्रयास तेज हो गए हैं। 

इसी संदर्भ में भाजपा विरोधी दलों की जो बैठक पहले 22 नवम्बर को होने वाली थी, वह अब दिसम्बर के दूसरे सप्ताह में होने की सम्भावना है जिसमें भाग लेने वाले दल 2019 के लोकसभा चुनावों के सम्बन्ध में रणनीति निर्धारण पर चर्चा कर सकते हैं। विरोधी दलों के वरिष्ठï नेताओं ने कहा है कि देश में इन दिनों जारी पांच राज्यों के चुनावों के बाद 10 दिसम्बर को इस बैठक के लिए तैयारियां की जा रही हैं जबकि चुनावों के परिणाम 11 दिसम्बर को आएंगे। 

इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू, बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती, तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो तथा बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सी) के महासचिव सीता राम येचुरी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव तथा राकांपा के नेता शरद पवार तथा अन्य के भाग लेने की सम्भावना है। श्री सीता राम येचुरी के अनुसार चंद्र बाबू नायडू ने उनको फोन करके कहा है कि ‘‘नेतागण 10 दिसम्बर को आयोजित की जाने वाली (सम्भावित) बैठक में आने पर सहमत हो गए हैं।’’ 

कुछ नेताओं ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा है कि उन्होंने अपनी पिछली भूलों से सबक ले लिया है और वे दूसरों पर बैठक की तारीख थोपना नहीं चाहते। चंद्र बाबू नायडू द्वारा प्रस्तावित 22 नवम्बर वाली बैठक न हो पाने का यह भी एक कारण था। विरोधी दल के एक वरिेष्ठï नेता के अनुसार,‘‘शुरू में चंद्र बाबू नायडू ने शरद पवार, एच.डी. कुमारस्वामी तथा एम.के. स्टालिन जैसे नेताओं से विचार-विमर्श करके इस महीने बैठक करने का निर्णय लिया था, परंतु जब इस गठबंधन के मामले में मायावती से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने मध्यप्रदेश और राजस्थान में चुनावों के जारी रहते कांग्रेस नेताओं के साथ बैठने से मना कर दिया।’’ इसी नेता का कहना है कि ‘‘समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव भी 21 नवम्बर को अपना जन्मदिन होने के चलते उपलब्ध नहीं थे व ममता बनर्जी भी व्यस्त थीं परंतु इस बार नेताओं की सर्वसम्मति से बैठक चुनावों के बाद करने का फैसला लिया गया है।’’ 

इसी संदर्भ में एक कांग्रेसी नेता का कहना है कि ‘‘चुनाव अभियान तथा एक-दूसरे के विरुद्ध चुनावी कटुता समाप्त होने के बाद विरोधी दल अब इकट्ठे बैठ कर अगले वर्ष चुनावों में भाजपा को हराने के बड़े लक्ष्य की पूर्ति के लिए एक संयुक्त रणनीति बना सकते हैं।’’ इन नेताओं के अनुसार जहां तक 2019 के लिए गठबंधन का सम्बन्ध है, येचुरी तथा बनर्जी का दृढ़ विचार है कि राष्ट्रीय गठबंधन आम चुनाव पूरे होने के बाद किया जाना चाहिए तथा दिसम्बर की बैठक में राज्यों पर आधारित क्षेत्रीय समझौतों पर जोर दिया जाए ताकि भाजपा के विरुद्ध अधिकतम वोट जुटाए जा सकें। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर, फूलपुर और कैराना तथा कर्नाटक में बेल्लारी उपचुनावों के परिणामों का उल्लेख करते हुए, जहां भाजपा को उसके गढ़ में विपक्ष के सांझे उम्मीदवार हराने में सफल रहे, एक नेता ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश और कर्नाटक ने हमें सिखा दिया है कि भाजपा का मुकाबला किस प्रकार करना है।’’ 

इस प्रस्तावित बैठक में संभवत: इस बात का संकेत भी मिल जाएगा कि कितनी पार्टियां कांग्रेस के साथ सहमति बनाने के लिए तैयार हैं। अंतत: भाजपा विरोधी एक संयुक्त मोर्चा बनाने की दिशा में विरोधी दलों के प्रयास की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वे एक-दूसरे को ‘एडजस्ट’ करने के मामले में कितना लचीला रवैया अपना सकते हैं। इनके इकट्ठे होने से निश्चित ही देश के राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा मिलेगा और लोकतंत्र मजबूत होने के साथ-साथ भाजपा को भी ‘सुधरने’ का मौका मिलेगा। यदि अब इन्होंने यह मौका खो दिया तो इनके लिए पछताने के सिवा कुछ नहीं बचेगा। वैसे हम हमेशा लिखते रहे हैं कि न सिर्फ सरकारों का कार्यकाल 4 वर्ष का होना चाहिए बल्कि हर बार ये बदल-बदल कर आनी चाहिए ताकि विकास कार्य तेजी से हो सकें और देश तरक्की करे।—विजय कुमार  

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