Edited By ,Updated: 12 May, 2016 02:04 AM
उत्तराखंड में कांग्रेस नीत हरीश रावत सरकार 18 मार्च को संकट में पड़ गई जब पार्टी के 9 असंतुष्ट विधायकों ने श्री रावत के विरुद्ध विद्रोह करते हुए...
उत्तराखंड में कांग्रेस नीत हरीश रावत सरकार 18 मार्च को संकट में पड़ गई जब पार्टी के 9 असंतुष्ट विधायकों ने श्री रावत के विरुद्ध विद्रोह करते हुए भाजपा के 26 विधायकों के साथ राज्यपाल के.के. पाल से मिल कर राज्य सरकार बर्खास्त करने की मांग कर दी जिस पर श्री के.के. पाल ने रावत सरकार को 28 मार्च तक अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए कह दिया।
दूसरी ओर विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने 9 विद्रोही कांग्रेसी विधायकों को दल-बदल कानून के अंतर्गत नोटिस जारी कर दिया कि उनकी सदस्यता क्यों न समाप्त कर दी जाए। इसे रुकवाने के लिए बागियों ने नैनीताल उच्च न्यायालय में गुहार की जिसे न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया।
इससे पूर्व कि श्री हरीश रावत अपना बहुमत सिद्ध कर पाते, केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्टï्रपति प्रणव मुखर्जी ने 27 मार्च को राज्य में राष्टï्रपति शासन लागू करने सम्बन्धी अधिसूचना पर हस्ताक्षर कर दिए।
इसके विरुद्ध रावत ने नैनीताल उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिस पर मुख्य न्यायाधीश के.एम. जोसफ व न्यायमूॢत वी.के. बिष्ट ने 21 अप्रैल को राज्य में राष्टपति शासन हटाते हुए हरीश रावत को 29 अप्रैल तक अपना बहुमत सिद्ध करने का आदेश दे दिया और कहा ‘‘राष्टपति राजा नहीं हैं और ऐसा नहीं है कि उन (राष्टपति) से कोई गलती न हो।’’
इसे केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दे दी। इसके बाद के घटनाक्रम में एक ओर जहां 6 मई को उच्चतम न्यायालय ने रावत को एक मौका देते हुए 10 मई को विधानसभा में फ्लोर टैस्ट करवाने का आदेश दे दिया वहीं 9 मई को बागी विधायकों को राहत देने से इंकार करते हुए नैनीताल उच्च न्यायालय के उस फैसले पर मोहर लगा दी जिसमें उन्हें मतदान से दूर रखा गया था।
10 मई के फ्लोर टैस्ट का परिणाम उच्चतम न्यायालय ने 11 मई को घोषित किया और जैसी कि आशा थी, फ्लोर टैस्ट में हरीश रावत के सफल होने की घोषणा करके उनके दोबारा पद ग्रहण करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
इस घटनाक्रम की एक विशेषता यह रही कि अंतिम समय तक दोनों पक्ष जोड़-तोड़ की गोटियां चलते रहे। बहुमत परीक्षण से ठीक पहले पाला बदल कर कांग्रेस विधायक रेखा आर्य भाजपा के साथ और भाजपा द्वारा निलंबित विधायक भीम लाल आर्य पाला बदल कर कांग्रेस के साथ आ मिले।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अंतिम समय पर अपने पत्ते खोले और अपनी पार्टी के दोनों विधायकों का वोट कांग्रेस को दिलवाया। पी.डी.एफ. विधायकों ने भी कांग्रेस को वोट दिया और कांग्रेस को 33 व भाजपा को 28 वोट पड़े।
चल रहे इस घटनाक्रम के बीच 2 अन्य नाटकीय घटनाक्रमों में सिं्टग आप्रेशन में हरीश रावत फंसते नजर आए तथा रावत को विधायकों की खरीद-फरोख्त के लिए रिश्वत की पेशकश पर किसी से बातचीत करते हुए दिखाया गया।
बहरहाल इस सारे घटनाक्रम से जहां एक बार फिर भाजपा द्वारा हड़बड़ी में लिए जाने वाले अदूरदॢशतापूर्ण निर्णयों की झलक नजर आई वहीं इसकी रणनीतिक त्रुटियां भी देखने को मिलीं।
उत्तराखंड में इसके लिए भाजपा की भारी फजीहत हुई है। अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि ‘‘उत्तराखंड में शक्ति परीक्षण का नतीजा मोदी सरकार के लिए बहुत बड़ा झटका है। आशा है कि यह अब राज्य सरकारें गिराना बंद करेगी।’’
राहुल गांधी ने इस पर कहा है कि ‘‘केंद्र सरकार को जो बुरा करना था उन्होंने किया। इससे मोदी जी सीख लें, हम लोकतंत्र की हत्या नहीं होने देंगे।’’
इस घटनाक्रम में जहां भाजपा उपहास की पात्र बनी है वहीं 9 बागी कांगे्रसी विधायकों के भविष्य पर भी प्रश्रचिन्ह लग गया है। यह तो बार-बार सिद्ध हो चुका है कि मूल दल छोड़ कर दूसरे पाले में जाने वाले ‘न इधर के रहते हैं न उधर के’। दूसरी पार्टी में कभी भी उन्हें सम्मान नहीं मिलता क्योंकि उनकी निष्ठïा संदिग्ध रहती है व पार्टी के पुराने वर्कर भी उन्हें स्वीकार नहीं करते।
यह घटनाक्रम देश में शुरू हुए पाला बदल के खेल के नए रुझान का भी द्योतक है जो बंद होना चाहिए। इस मामले में राष्टपति प्रणव मुखर्जी भी किसी सीमा तक जिम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने उत्तराखंड बारे अधिसूचना पर हस्ताक्षर करने से पूर्व तथ्यों की समुचित जांच नहीं की।
एक दुखद तथ्य यह भी है कि जैसे-जैसे हमारे लोकतंत्र की आयु बढ़ रही है उसी अनुपात में इसमें परिपक्वता आने की बजाय यह पतन की ओर ही बढ़ रहा है। किसी चल रही सरकार को एकमात्र अपने राजनीतिक प्रभुत्व की स्थापना के इरादे से गिराना कदापि उचित नहीं।