Edited By ,Updated: 13 Aug, 2019 11:43 PM
लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग को लेकर चीन सरकार के विरुद्ध विश्व के अग्रणी शहरों में से एक हांगकांग के मूल निवासियों का आंदोलन थमने में नहीं आ रहा। इसे इंगलैंड ने 1997 में स्वायत्तता की शर्त के साथ चीन को सौंपा था तथा अगले 50 वर्ष...
लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग को लेकर चीन सरकार के विरुद्ध विश्व के अग्रणी शहरों में से एक हांगकांग के मूल निवासियों का आंदोलन थमने में नहीं आ रहा। इसे इंगलैंड ने 1997 में स्वायत्तता की शर्त के साथ चीन को सौंपा था तथा अगले 50 वर्ष तक हांगकांग को अपनी स्वतंत्रता, सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक व्यवस्था बनाए रखने की गारंटी दी थी। इसीलिए वहां के मूल लोग खुद को चीन का हिस्सा नहीं मानते तथा कुछ समय पूर्व चीन द्वारा लाए गए नए प्रत्यर्पण बिल ने उनकी चिंता बढ़ा दी है। उनका कहना है कि ‘प्रत्यर्पण बिल में संशोधन हांगकांग की स्वायत्तता को प्रभावित करेंगे।’
प्रदर्शनकारी प्रत्यर्पण विधेयक वापस लेने और लोकतंत्र बहाली की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि नया संशोधन हांगकांग के लोगों को भी चीन की दलदली न्यायिक व्यवस्था में धकेल देगा। इसी कारण इन संशोधनों के विरोध में हांगकांग के लोग चीन सरकार के विरुद्ध भारी प्रदर्शन व तोड़-फोड़ कर रहे हैं जिसके जवाब में पुलिस प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करने के अलावा रबड़ के बुलेट भी चला रही है।इन प्रदर्शनों को चीन सरकार ने दंगा करार देते हुए कहा है कि पिछले 2 महीनों से अधिक समय से शहर में सरकार विरोधी प्रदर्शन आतंकवाद का रूप धारण करने लगे हैं। इसे दबाने के लिए कठोर आतंकवाद निरोधक कानून और शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है जिसका परिणाम तिनानमिन चौक जैसे नरसंहार के रूप में भी निकल सकता है।
12 और 13 अगस्त को हांगकांग पुलिस की हिंसक कार्रवाई के विरोध में काले कपड़े पहने 5000 से अधिक प्रदर्शनकारी हांगकांग के हवाई अड्डों तक पहुंच गए। उन्होंने पुलिस अधिकारियों पर पैट्रोल बम फैंके जिस पर अधिकारियों ने बल प्रयोग द्वारा प्रदर्शनकारियों को वहां से खदेड़ दिया। प्रदर्शनों के कारण हवाई अड्डों से अनेक उड़ानों को रद्द करना पड़ा तथा हजारों यात्री हवाई अड्डों पर फंस गए। इन प्रदर्शनों को हांगकांग का हाल के वर्षों का सबसे बड़ा संकट माना जा रहा है।
जहां एक ओर चीन के अधिकार क्षेत्र में आने के बाद हांगकांग अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है वहीं दूसरी ओर ‘शी जिन पिंग’ के सत्ता में आने के बाद चीन सरकार सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रही है। प्रत्यर्पण कानून के विरोध में शुरू हुआ आंदोलन अब हांगकांग से चीन समर्थक शासन व्यवस्था हटाकर लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाने की मांग में बदल गया है और लगता है कि अब हांगकांग के मूल निवासी अपने लिए स्वायत्तता प्राप्त करके ही मानेंगे जो चीन के लिए सबक होगा कि दमन द्वारा लोगों के जनतांत्रिक अधिकारों को नहीं कुचला जा सकता।
—विजय कुमार