अपने रास्ते से भटक कर माओवादी नेता भ्रष्ट और औरतखोर हो गए

Edited By Pardeep,Updated: 26 Sep, 2018 02:32 AM

wandering on their way the maoist leader became corrupt and lonely

गरीबों के उत्थान के नाम पर बंगाल के छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से 1967 में शुरू हुआ माओवादी आंदोलन पूरी तरह अपने रास्ते से भटक कर देश की एकता और अखंडता के लिए भारी खतरा बन चुका है। माओवाद प्रभावित इलाकों में हिंसक गतिविधियों में संलिप्त होकर ये बड़े...

गरीबों के उत्थान के नाम पर बंगाल के छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से 1967 में शुरू हुआ माओवादी आंदोलन पूरी तरह अपने रास्ते से भटक कर देश की एकता और अखंडता के लिए भारी खतरा बन चुका है। माओवाद प्रभावित इलाकों में हिंसक गतिविधियों में संलिप्त होकर ये बड़े पैमाने पर अधिकारियों के अपहरण, सुरक्षाबलों के जवानों व अन्य निर्दोष लोगों की हत्या, लूटपाट व जब्री वसूली तथा अपने ही गिरोहों में शामिल महिलाओं व अन्य महिलाओं का यौन शोषण कर रहे हैं। 

14 मई, 2017 को झारखंड पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने वाले 15 लाख के ईनामी माओवादी सरगना ‘कुंदन पाहन’ के अनुसार, ‘‘माओवादी नेता अब रास्ते से भटक गए हैं। वे भ्रष्ट और औरतखोर हो गए हैं। रंगीन जिंदगी बिताते हैं और बलात्कार करते हैं।’’ इसी वर्ष 19 जून को झारखंड में खूंटी जिले की कोचांग बस्ती में मानव तस्करी के विरुद्ध नुक्कड़ नाटक करने गई 5 युवतियों के अपहरण और गैंगरेप में शामिल सभी 7 आरोपी माओवाद के समर्थक बताए जाते हैं। 

माओवादियों द्वारा गरीब कबायली महिलाओं के शोषण के सैंकड़ों किस्से हैं। आत्मसमर्पण करने वाली महिला माओवादियों का आरोप है कि पुरुष कामरेडों ने उनका जम कर शोषण किया। एक महिला माओवादी के अनुसार उसे दार्जीलिंग और गोवा जैसे स्थानों पर ले जाकर लग्जरी होटलों में रखा गया। 2004 में माओवादी आंदोलन में शामिल हुए डा. संजय प्रमाणिक ने अपने बयान में कहा था कि उसे 4-5 लड़कियों के साथ ‘ग्रुप सैक्स’ पसंद है। 2008 में माओवादियों ने रांची में आई.सी.आई.सी.आई. बैंक की कैश वैन से 5 करोड़ रुपए लूटे। माओवादी सरगनों सुधाकर और माधवी ने ठेकेदारों पर दबाव डाल कर 50-50 लाख रुपए और आधा-आधा किलो सोना अपने परिवारों को हैदराबाद भिजवाया। 

कुछ समय पूर्व माओवादियों ने बंगाल में हथियारों के लिए कच्चा माल खरीदने पर एक करोड़ रुपए खर्च किए। इनकी बिहार-झारखंड की स्पैशल एरिया कमेटी के सदस्य प्रद्युम्न शर्मा ने गत वर्ष एक प्राइवेट मैडीकल कालेज में अपनी भतीजी के दाखिले के लिए 22 लाख रुपए फीस दी। माओवादी सरगना संदीप यादव ने नोटबंदी के दौरान 15 लाख रुपए के नोट बदलवाए। उसकी बेटी और बेटे मशहूर प्राइवेट शिक्षा संस्थानों में पढ़ते हैं। माओवादी आम लोगों, छोटे व्यापारियों, तेंदूपत्ता ठेकेदारों, सड़कों, पुलों, स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों में काम करने वाले सरकारी ठेकेदारों के अलावा कोयला एवं इस्पात उत्पादक क्षेत्रों, स्टोन क्रशरों, ट्रांसपोर्टरों व स्थानीय ठेकेदारों आदि से जब्री धन की वसूली करते हैं। इसका बड़ा हिस्सा हथियार, गोलाबारूद व विस्फोटक खरीदने पर खर्च किया जाता है। 

जहां तक लूटे हुए धन को संभालने की बात है, इसे संभालने के उनके तरीके भी चौंकाने वाले हैं और उन्होंने कई तरीकों से अपना धन ठिकाने लगाया है। वे नोटों की भारी-भरकम गड्डिïयों को पालीथिन के लिफाफों में लपेट कर उन्हें लोहे के बक्सों में बंद करके सुदूरवर्ती जंगलों में गड्ढे खोद कर दबा देते हैं। माओवादी इस धन को सोने के बिस्कुट और प्रापर्टी खरीदने के अलावा फिक्स डिपॉजिटों में लगा रहे हैं। वे प्रापर्टी डीलरों के पास अपनी रकम भी रख देते हैं क्योंकि वे उन्हें ज्यादा भरोसेमंद मानते हैं। राष्ट्रीय जांच एजैंसी ने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित 90 जिलों में 6 महीने पड़ताल के बाद यह जानकारी दी है कि शीर्ष माओवादी नेता प्रापर्टी, शेयर बाजार और व्यवसाय में निवेश करने के अलावा अपने बच्चों की पढ़ाई पर भी भारी रकमें खर्च करते हैं। 

राष्ट्रीय जांच एजैंसी वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में टैरर फंडिंग के 10 मामलों की जांच कर रही है तथा इसने अनेक लोगों से पूछताछ की है। विभिन्न एजैंसियों के मोटे अनुमान के अनुसार माओवादी प्रतिवर्ष कम से कम 100 करोड़ से 120 करोड़ रुपए इकट्ठे कर रहे हैं। माओवादियों की ऐसी ही देश विरोधी गतिविधियों को देखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इन्हें देश के लिए आतंकवाद से भी बड़ा खतरा बताया था जिसका दमन करने के लिए सरकार को उसी प्रकार कठोर पग उठाने की आवश्यकता है जिस प्रकार श्रीलंका सरकार ने लिट्टे उग्रवादियों के विरुद्ध कार्रवाई करके 6 महीने में ही अपने देश से उनका सफाया कर दिया था।—विजय कुमार

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