‘पानी की जंग’ के चलते कर्नाटक और तमिलनाडु में ‘तबाही’

Edited By ,Updated: 14 Sep, 2016 12:42 AM

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802 किलोमीटर लम्बी कावेरी नदी का उद्गम तो कर्नाटक के ‘कोडागू’ जिले से है परन्तु यह तमिलनाडु के 44 ...

802 किलोमीटर लम्बी कावेरी नदी का उद्गम तो कर्नाटक के ‘कोडागू’ जिले से है परन्तु यह तमिलनाडु के 44 हजार वर्ग कि.मी. तथा कर्नाटक के 32 हजार वर्ग कि.मी. क्षेत्र से होकर गुजरती है और दोनों ही राज्यों के बीच इसके पानी के बंटवारे को लेकर 135 वर्षों से विवाद चला आ रहा है।

तमिलनाडु का कहना है कि उसने कावेरी के किनारे 3 लाख एकड़ भूमि कृषि के लिए विकसित की है तथा उसे इसके पानी की अधिक जरूरत है। इसके विपरीत कन्नड़ लोगों में इस बात को लेकर रोष है कि कर्नाटक को जल बंटवारे में बार-बार अन्याय का सामना करना पड़ रहा है।

यह विवाद सुलझाने हेतु ‘कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल’ ने 2007 में पिछले समझौतों को सही बताते हुए 58 प्रतिशत पानी तमिलनाडु को, 37 प्रतिशत कर्नाटक को, 4 प्रतिशत केरल को तथा 1 प्रतिशत पुड्डुचेरी को देने का फैसला सुनाया पर इसे स्वीकार करने को कोई भी राज्य तैयार नहीं हुआ।

5 सितम्बर, 2016 के अपने आदेश में सुप्रीमकोर्ट ने तमिलनाडु के किसानों की दयनीय हालत के दृष्टिगत कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए अगले 10 दिनों तक दैनिक 15,000 क्यूसिक पानी छोडऩे का निर्देश दिया था। इसका कन्नड़ समर्थक संगठनों और किसानों ने कड़ा विरोध किया। इसी मुद्दे पर 9 सितम्बर को ‘कर्नाटक बंद’ रखा गया तथा कर्नाटक सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका द्वारा अनुरोध किया कि राज्य में इस मुद्दे पर भड़के असंतोष के चलते तमिलनाडु को पानी देने का आदेश वापस लिया जाए।

इस पर सुनवाई के दौरान 12 सितम्बर को न्यायमूॢत दीपक मिश्रा और उदय उमेश ललित पर आधारित पीठ ने अपना पिछला आदेश बदलते हुए  कहा कि कर्नाटक अब तमिलनाडु को 15,000 की बजाय 12,000 क्यूसिक पानी अगली सुनवाई की तारीख 20 सितम्बर तक देना जारी रखे।

उन्होंने कहा कि कर्नाटक के जन असंतोष के कारण तमिलनाडु को पानी की आपूर्ति बंद करना अनुचित है तथा कानून व्यवस्था को बनाए रखने और सुप्रीमकोर्ट के आदेशों को लागू करवाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। दोनों राज्यों में सुलग रहा विवाद इस फैसले के आते ही गंभीर रूप धारण कर गया और कर्नाटक में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए जिन पर काबू पाने के लिए 1700 से अधिक सुरक्षा बल के सदस्य, केंद्रीय आर.ए.एफ. की 10 कम्पनियां व 700 दंगारोधी पुलिस बल तैनात किए गए हैं तथा कर्नाटक सरकार ने केंद्र से 20 और केंद्रीय अद्र्धसैनिक बलों की कम्पनियां भेजने को कहा है।

 उधर कन्नड़ फिल्म अभिनेताओं के विरुद्ध एक अपमानजनक टिप्पणी का वीडियो वायरल होने के बाद बेंगलूर में कुछ लोगों द्वारा एक तमिल कालेज छात्र को पीट देने के पश्चात अपेक्षाकृत शांत और सुंदर बेंगलूर शहर में ङ्क्षहसा भड़क उठी और अफरा-तफरी का माहौल बन गया।पुलिस फायरिंग से एक व्यक्ति की मृत्यु तथा अनेक लोग घायल हो गए। सोमवार को प्रदर्शनकारियों ने के.पी.एन. डिपो में खड़ी 20 से अधिक बसों में आग लगा दी जिसके बाद वहां 16 पुलिस थानों में कफ्र्यू लगा दिया गया। 

तोड़-फोड़ और आगजनी की घटनाओं के बीच कर्नाटक में जन-जीवन ठप्प हो गया। स्कूलों और कालेजों में छुट्टी कर दी गई है। कर्नाटक में तमिल बहुल आबादी और प्रतिष्ठानों के लिए खतरा पैदा हो गया तथा अनेक स्थानों पर तमिलनाडु के ट्रकों पर हमले करके उन्हें आग के हवाले कर दिया गया।उधर तमिलनाडु में चेन्नई के कन्नड़ स्वामित्व वाले एक होटल पर 15 दंगाइयों ने 6 देसी बमों से हमला कर दिया और भारी तोड़-फोड़ की तथा अन्य कन्नड़ सम्पत्तियों पर भी हमले किए गए। पुड्डुचेरी में भी तोड़-फोड़ की गई जिस कारण अब तक 25,000 करोड़ रुपए की क्षति हो चुकी है।
 
हिंसा से कोई भी समस्या हल नहीं की जा सकती। लोकतंत्र में हर समस्या का हल संयम व परस्पर वार्ता से ही ढूंढना चाहिए। बेशक अपने-अपने स्वार्थों को लेकर दोनों राज्यों के बीच छिड़ा यह विवाद अंतत: थम जाएगा लेकिन अपने पीछे बर्बादी के ऐसे निशान छोड़ कर जाएगा जिन्हें भरने में लम्बा समय लगेगा और लोगों के बीच पैदा हुई कटुता तथा द्वेष की भावना को दूर करने में तो शायद और भी अधिक समय लगे।      
    —विजय कुमार

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