हमें अपनी धरोहरों को बचाना होगा

Edited By Pardeep,Updated: 07 May, 2018 03:07 AM

we have to save our heritage

आज हुमायूं के मकबरे पर जाने वाले लोगों के लिए इस बात पर विश्वास करना कठिन होगा कि यह वही स्मारक है, जिसका 8 साल पहले तक प्रवेश अवैध दुकानों से अवरुद्ध था और जिसके बगीचों का हाल भी बेहाल था। वह यू.पी.ए. सरकार थी जिसने इसके जीर्णोद्धार का काम ...

आज हुमायूं के मकबरे पर जाने वाले लोगों के लिए इस बात पर विश्वास करना कठिन होगा कि यह वही स्मारक है, जिसका 8 साल पहले तक प्रवेश अवैध दुकानों से अवरुद्ध था और जिसके बगीचों का हाल भी बेहाल था। 

वह यू.पी.ए. सरकार थी जिसने इसके जीर्णोद्धार का काम आगा खान ट्रस्ट को सौंपा था जिसके बाद इस स्मारक का जीर्णोद्धार ही नहीं हुआ, इसके बगीचों को दोबारा तैयार करने के अलावा आस-पास छोटे स्मारकों का भी जीर्णोद्धार किया जा रहा है। इन दिनों यहां इस स्मारक के निर्माण के संबंध में एक प्रदर्शनी भी चल रही है। 

यू.पी.ए. सरकार ने ताज होटल्स के नाम से जानी जाती इंडियन होटल्स कम्पनी को आगरा स्थित ताजमहल व दिल्ली स्थित जंतर-मंतर की देखरेख का जिम्मा भी सौंपा था पर यह सब बेहद छोटे स्तर पर हुआ क्योंकि शायद ही किसी अन्य देश में भारत जितने स्मारक होंगे, ऐसे जिनका इतिहास 4000 वर्ष तक प्राचीन है। 

यह कहने की जरूरत नहीं है कि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) के पास इन कमाल की धरोहरों की देखरेख के लिए धन नहीं है। हालांकि, एक अच्छी नीति इतनी बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित कर सकती है कि फ्रांस तथा तुर्की को विश्व के नम्बर एक पर्यटन स्थल के दर्जे से हटा कर भारत इतनी विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकता है कि धरोहरों की देखरेख के बाद मुनाफा भी हो जाए। इसी संबंध में भारत सरकार ने ‘अडॉप्ट ए हैरिटेज’ नामक योजना शुरू की है जिसके तहत सरकार निजी कम्पनियों को उन स्मारकों की देखरेख करने की स्वीकृति दे रही है जिनके लिए वे बोली लगाते हैं। 

पुरातत्त्वविदों ने पर्यटन मंत्री एल्फोंसो से इस बात पर चिंता प्रकट की है कि कार्पोरेट फम्र्स भारत की धरोहरों को बिगाड़ सकती हैं। पुणे के डैक्कन कॉलेज के पुरातत्त्वविद् अभिजीत दांडेकर मानते हैं कि ‘हमें इस बात पर करीब से निगाह रखनी होगी कि निजी कम्पनियां किस तरह का स्वामित्व इन धरोहरों पर लागू करती हैं क्योंकि स्मारकों का दोहन किसी भी प्रकार से नहीं होना चाहिए।’ कुछ दिन पहले इस संबंध में हुई पहली घोषणा के मुताबिक डालमिया ग्रुप दिल्ली के लाल किले को गोद ले रहा है, इसे लेकर लोगों में आक्रोश तथा संशय देखा गया परंतु गहराई से विचार किया जाए तो विशेषीकृत देखरेख तथा धन के अभाव में हमारी धरोहरें नष्ट हो रही हैं। 

अजंता-एलोरा की शानदार गुफाओं की देखरेख बड़े ही गलत ढंग से हो रही है जहां पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। खजुराहो के 23 मंदिर बेहद खूबसूरत हैं परंतु इसके आस-पास अवैध दुकानों तथा रेस्तरांओं की वजह से यूनैस्को उन्हें विश्व धरोहर स्थल का दर्जा देने से इंकार करता रहा है। हमारे ऐतिहासिक स्थलों के करीब शौचालयों आदि सुविधाओं तथा सोवेनियर शॉप्स की बात करना किसी सपने जैसा है। अप्रशिक्षित गाइड्स के साथ स्मारकों के महत्व तथा खूबसूरती का अधूरा ज्ञान ही हासिल होता है। ‘मॉन्यूमैंट मित्र’ (स्मारकों के मित्र) वह नीति है जिसके तहत सांस्कृतिक मंत्रालय तथा ए.एस.आई. के सहयोग से पर्यटन मंत्रालय ने पहले चरण में देश भर के 76 स्मारकों को गोद देने के लिए 24 कम्पनियों को शॉर्टलिस्ट किया है। 

वास्तव में इस अभियान को सितम्बर में लांच किया गया था जिसके तहत 105 स्मारकों तथा धरोहर स्थलों पर पर्यटन से जुड़ी सुविधाओं के निर्माण, संचालन तथा देखरेख की जिम्मेदारी कम्पनियों की होगी। इनमें शौचालयोंं व पेयजल की व्यवस्था, दिव्यांगों के लिए सुविधाएं उपलब्ध करवाना, सूचना पट्टिकाएं, ऑडियो गाइड्स, रोशनी से सजावट, कैंटीन, टिकटों की व्यवस्था तथा स्वच्छता और सुरक्षा के बंदोबस्त शामिल हैं। बदले में कम्पनियां अपने ब्रांड को वहां प्रदर्शित कर सकेंगी परंतु उन्हें जनता से किसी तरह की कमाई का अधिकार नहीं होगा जब तक कि सरकार इसकी स्वीकृति न दे। किसी भी तरह के मुनाफे को पर्यटक सुविधाओं की देखरेख तथा सुधार पर खर्च करना होगा। 

कम्पनी द्वारा ए.एस.आई. के दिशानिर्देशों का पालन नहीं करने पर करार को खत्म भी किया जा सकता है। इससे कम्पनियों को यह ङ्क्षचता भी सताने लगी है कि सरकारी निकायों से अत्यधिक स्वीकृतियों की आवश्यकता से विकास कार्य बाधित हो सकते हैं। चूंकि सरकार स्वयं विरासती संरक्षण के सक्षम नहीं इसलिए इस नई परिकल्पना को आजमाइश का मौका दिया जाना चाहिए, लेकिन छोटे-छोटे हिस्सों में। 

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