Edited By ,Updated: 12 Mar, 2019 12:33 AM
जहां एक ओर देश में जनसंख्या कम करने की बातें हो रही हैं तो दूसरी ओर एक समुदाय की ओर से अपनी जनसंख्या बढ़ाने की बातें की जा रही हैं। इनमें विशेष रूप से पारसी और जैन समुदाय के लोग...
जहां एक ओर देश में जनसंख्या कम करने की बातें हो रही हैं तो दूसरी ओर एक समुदाय की ओर से अपनी जनसंख्या बढ़ाने की बातें की जा रही हैं। इनमें विशेष रूप से पारसी और जैन समुदाय के लोग शामिल हैं।
जहां भारत के पारसी समुदाय ने अपने युवाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए कहा है, वहीं दिगम्बर जैन समुदाय की शीर्ष संस्था ‘दिगम्बर जैन महासमिति’ ने भी देश में जैन समुदाय की कम जनसंख्या को गंभीरता से लेते हुए ‘हम दो हमारे तीन’ का नारा दिया है।
इंदौर में हाल ही में हुई समिति की बैठक में उक्त नारा देने के साथ ही 2 से अधिक बच्चों वाले जैन दम्पतियों को आर्थिक सहायता दिलवाने का वादा भी किया गया। समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक बडज़ात्या के अनुसार ‘‘हम चाहते हैं कि दम्पति इस बारे में विचार करें।’’ उन्होंने तीसरा बच्चा होने पर उसकी शिक्षा का पूरा खर्च समिति द्वारा उठाने की बात भी कही।
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में देश की जनसंख्या में होने वाली वृद्धि की दर के मुकाबले जैन समुदाय की जनसंख्या में कम वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की 120 करोड़ की जनसंख्या में जैन समुदाय की संख्या मात्र 44 लाख ही है। पारसी और जैन समुदाय की भांति ही विश्व के कुछ अन्य भागों में भी ऐसे मामले देखने में आ रहे हैं तथा जनसंख्या बढ़ाने के लिए लोगों को तरह-तरह के प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।
उदाहरण के लिए बुजुर्गों की बढ़ती जनसंख्या और तेजी से घटती जन्म दर से चिंताग्रस्त दक्षिणी जापान के कृषि प्रधान शहर ‘नागी’ में बच्चा पैदा करने वाले नागरिकों को अनेक सुविधाएं और नकद पुरस्कार दिए जा रहे हैं।
उक्त शहर का प्रशासन 2004 से यहां बच्चा पैदा करने के लिए ईनाम के तौर पर नकद रकम देकर दम्पतियों को प्रोत्साहित कर रहा है। वहां परिवार में पहला बच्चा पैदा होने पर लगभग 63,000 रुपए, दूसरा बच्चा पैदा होने पर 95,000 और पांचवां बच्चा पैदा होने पर लगभग 2.5 लाख रुपए देने के अलावा ऐसे परिवारों को सस्ते दाम पर मकान, मुफ्त टीकाकरण, स्कूल दाखिले में छूट जैसी सुविधाएं भी दी जा रही हैं।
इस शहर की एक अन्य विशेषता यह भी है कि यहां लोग 30 वर्ष की उम्र से पहले ही शादी करके परिवार बसाने के बाद अपने माता-पिता के साथ ही रहना पसंद करते हैं। दादा-दादी के साथ होने के कारण बच्चों की देखभाल की चिंता भी नहीं सताती। महिलाओं के लिए यहां विशेष रूप से पार्ट टाइम नौकरी की भी व्यवस्था है।
इसी प्रकार कम जनसंख्या की समस्या से जूझ रहे यूरोपीय देश हंगरी की सरकार द्वारा अधिक बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को अनेक प्रोत्साहन देने की घोषणा की गई है। इसके अनुसार 3 से अधिक बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को जीवनभर आयकर अदा करने से छूट, 25 लाख रुपए तक का ब्याज मुक्त ऋण, घर खरीदने के लिए विशेष सबसिडी और 7 सीट वाली गाड़ी खरीदने पर 6 लाख रुपए की सरकारी मदद भी दी जा रही है।
हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन का कहना है कि देश की जनसंख्या में प्रतिवर्ष 32000 की कमी आ रही है तथा मुस्लिम देशों से आ रहे शरणार्थियों की समस्या का सामना करने के लिए देश को और बच्चों की जरूरत है।
हंगरी से अलग दक्षिण-पश्चिम यूरोप के देश सर्बिया की सरकार ने भी युवा दम्पतियों से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील की है। यह यूरोप का ऐसा देश है जहां जन्म दर सबसे कम है।
जापान, हंगरी और सर्बिया में परिस्थितियां भिन्न होने के कारण वहां के प्रशासन द्वारा लोगों को अधिक बच्चों को जन्म देने के लिए कहने का औचित्य तो समझ में आ सकता है परंतु भारत में यह बात लागू नहीं होती। आज प्रत्येक माता-पिता अपनी संतानों को अच्छा जीवन देने के अलावा उच्च शिक्षा एवं अन्य सभी जीवनोपयोगी सुविधाएं देना चाहते हैं जो कम बच्चे होने पर ही संभव हैं।
यही कारण है कि जहां-जहां भी शिक्षा का प्रसार हुआ है वहां-वहां दम्पतियों ने स्वत: ही बढ़ रही सामाजिक आवश्यकताओं को देखते हुए एक या दो बच्चों का नियम अपनाना शुरू कर दिया है। अत: ‘दिगम्बर जैन महासमिति’ द्वारा ‘हम दो हमारे तीन’ के नारे से ज्यादा कुछ प्राप्त हो सकेगा, इसमें संदेह ही लगता है।
—विजय कुमार