नवाज शरीफ के ईश निंदा विरोधी अभियान का गुप्त एजैंडा क्या है

Edited By ,Updated: 19 Mar, 2017 10:29 PM

what is the secret agenda of nawaz sharif s anti naxal campaign

पाकिस्तान में सरकार और सेना के बीच संबंध के समीकरण में आमतौर पर सेना का पलड़ा ही भारी...

पाकिस्तान में सरकार और सेना के बीच संबंध के समीकरण में आमतौर पर सेना का पलड़ा ही भारी होता है, विशेषकर जब इस देश का राष्टपति सेना का कोई जरनैल हो। लेकिन अधिकांश निर्वाचित सरकारों के मामले में ऐसा लगता है जैसे सेना और सरकार में रस्साकशी का खेल चल रहा हो। 

एक ओर तो इस प्रक्रिया में निर्वाचित सरकार सेना की नीतियों के आगे सिर झुका देती है और दूसरी ओर ‘अपनी स्वतंत्र निर्वाचित सरकार की छवि’ बनाए रखने के लिए यह अधिक मुखर रूप से कट्टरवादियों और अपनी कारगुजारी के मामले में अधिक दमनकारी हो जाती है। अपने कार्यकाल की शुरूआत देश में शांति और खुशहाली के लिए आर्थिक विकास और मजबूत सरकार के लिए  ‘उम्मीद की किरण’ के रूप में करने वाली पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार शायद इसी स्थिति का सामना कर रही है। हाल ही में पाकिस्तान में अनेक सूफी मस्जिदों पर आतंकवादी हमले इस बात का संकेत हैं कि सरकार के सामने अधिक रूढि़वादी होने के सिवाय अन्य कोई विकल्प नहीं है। 

ऐसे ही एक पग के रूप में पाकिस्तान सरकार ने पाकिस्तानियों द्वारा सोशल नैटवर्क पर डाली जाने वाली ईश ङ्क्षनदा सामग्री की जांच करने में सहायता करने के लिए फेसबुक से कहा है। फेसबुक भी पाकिस्तान में अपनी एक टीम भेजने पर सहमत हो गया है ताकि सोशल मीडिया साइटों पर ऐसी सामग्री की जांच के मामले में सहायता दे सके। गत सप्ताह के शुरू में ही प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सोशल मीडिया पर ईश निंदा संबंधी सामग्री के विरुद्ध व्यापक अभियान छेडऩे की बात कही थी। इस संबंध में अपनी पार्टी के आधिकारिक ट्विटर अकाऊंट पर उन्होंने ईश निंदा को ‘अक्षम्य अपराध’ बताया था। 

उल्लेखनीय है कि धर्म से संबंधित अपराधों को भारत के अंग्रेज शासकों ने 1860 में कानूनबद्ध किया था जिसे 1927 में विस्तार दिया गया। पाकिस्तान को 1947 में अस्तित्व में आने पर यही कानून विरासत में मिले और 1980 एवं 1986 के बीच जनरल जिया-उल-हक की सैनिक सरकार ने इन कानूनों का इस्लामीकरण करने की अपनी इच्छा के तहत इनमें अनेक उप-धाराएं जोड़ीं। 

हालांकि अंग्रेजों के बनाए कानूनों में किसी धार्मिक समारोह को तितर-बितर करना एक अपराध करार दिया गया था और किसी के कब्रिस्तान से छेड़छाड़ धार्मिक मान्यताओं का निरादर और किसी धर्मस्थल का अपमान करने या उसे क्षति पहुंचाने को अपराध करार देते हुए इसके लिए 10 वर्ष जेल की सजा का प्रावधान किया था, इसके बावजूद जिया ने अहमदिया समुदाय को कानूनी तौर पर अलग करते हुए उन्हें 1973 में गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया।

1980 के दशक के दौरान ईश निंदा कानून का दायरा और बढ़ाकर इस्लामिक मान्यताओं के विरुद्ध किसी भी प्रकार की अपमानजनक टिप्पणी के लिए 3 वर्ष कैद की सजा का प्रावधान कर दिया गया। इसके बाद 1982 में ईश निंदा संबंधी कानूनों में एक और क्लॉज जोड़कर ‘कुरान का अपमान करने या हजरत मोहम्मद के संबंध में निंदात्मक टिप्पणी के लिए मृत्युदंड या उम्रकैद का प्रावधान कर दिया गया।’ 

पाकिस्तान के नैशनल कमीशन फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा प्रदत्त आंकड़ों से पता चलता है कि 1987 के बाद से 633 मुसलमानों, 494 अहमदियों, 37 ईसाइयों और 21 हिन्दुओं को इस कानून के अंतर्गत दंडित किया गया। हालांकि पाकिस्तानियों की बहुसंख्या इन कानूनों का समर्थन करती है परन्तु कुछ आलोचकों का कहना है कि नवाज शरीफ सरकार का नवीनतम पग देश में विरोध के स्वरों को दबाने के हथकंडे के सिवाय कुछ नहीं है। 

हाल ही में 5 उदारवादी ब्लागर और एक्टिविस्ट पाकिस्तान में लापता हो गए जिन्हें सोशल मीडिया पर ईश निंदा का दोषी ठहराया गया। यह एक बेहद रूढि़वादी देश में गंभीर आरोप है जिससे आरोपी जनरोष का शिकार बन सकते हैं। उन्हें न्यायपालिका से कोई सहायता भी नहीं मिलेगी और इस तरह सब विरोधी स्वर खामोश कर दिए जाएंगे। ऐसे ही एक मामले में इस कानून के प्रखर विरोधी पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल सलमान तासीर की उनके ही अंगरक्षक ने 2011 में हत्या कर दी थी। भविष्य में पाकिस्तान में ऐसी और घटनाएं हो सकती हैं।

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