कब होंगे हमारे मंत्रियों के बयान सभ्य और सुलझे हुए

Edited By ,Updated: 20 Jan, 2020 12:59 AM

when will the statements of our ministers be civilized and settled

बुधवार 15 जनवरी को एक-दूसरे के एकदम विपरीत दो तस्वीरें सामने आईं। एक में भारतीय कुर्ते-जैकेट में सजे दुनिया के सबसे धनाढ्य व्यक्ति जैफ बेजोस महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर हाथ बांधे खड़े थे। वहां से उन्होंने ट्वीट किया ‘उत्साह, ऊर्जा, लोकतंत्र,...

बुधवार 15 जनवरी को एक-दूसरे के एकदम विपरीत दो तस्वीरें सामने आईं। एक में भारतीय कुर्ते-जैकेट में सजे दुनिया के सबसे धनाढ्य व्यक्ति जैफ बेजोस महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर हाथ बांधे खड़े थे। वहां से उन्होंने ट्वीट किया ‘उत्साह, ऊर्जा, लोकतंत्र, भारतीय सदी’। उसी दिन उनकी ओर से घोषणा हुई कि उनकी कम्पनी ‘अमेजोन’ लघु उद्योगों को ऑनलाइन होने में सहायता के लिए भारत में 1 बिलियन डॉलर निवेश करेगी। इसके ठीक विपरीत दूसरी तस्वीर रेलवे, उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की वह बयान देते हुए आई जिसमें उन्होंने नई दिल्ली में एक कांफ्रैंस में कहा, ‘‘अमेजोन ने बिलियन डॉलर निवेश किया है परंतु यदि उन्हें बिलियन डॉलर का घाटा हो रहा है तो वे उसका भी इंतजाम कर रहे होंगे इसलिए ऐसा नहीं है कि यह निवेश करके वे भारत पर कोई अहसान कर रहे हैं।’’ 

वीरवार, 16 जनवरी को भाजपा के विदेश मामले विभाग के इंचार्ज विजय चौथावले ने भी ट्वीट किया, ‘‘श्रीमान जैफ बेजोस इसे वाशिंगटन डी.सी. में अपने कर्मचारियों को बताइएगा।’’ ये दोनों ही वक्तव्य न केवल गैर-कूटनीतिक तथा कटु हैं इनका समय भी गलत है। ऐसे दौर में जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश की सख्त आवश्यकता है, किसी निवेशक को इस तरह झिड़कना अन्य निवेशकों को भारतीय बाजार में निवेश से हतोत्साहित ही करेगा। उचित व्यापार नियामक ‘कम्पीटिशन कमिशन ऑफ इंडिया’ (सी.सी.आई.) ने भी ई-वाणिज्य दिग्गज फ्लिपकार्ट तथा अमेजोन के विरुद्ध जांच के आदेश दिए हैं। उन पर अत्यधिक डिस्काऊंट देने तथा चुनिंदा विक्रेताओं से हाथ मिलाने के आरोप हैं। 

जैफ बेजोस के साथ इस रुखे व्यवहार के पीछे दो कारण माने जा रहे हैं। पहला, दिल्ली चुनावों के दृष्टिगत भाजपा उन व्यापारियों तथा खुदरा विक्रेताओं को नाराज नहीं करना चाहती जो बढ़ती ऑनलाइन शॉपिंग से प्रभावित हैं। दूसरा, भाजपा भारत के हालात तथा नीतियों पर वाशिंगटन पोस्ट की आलोचनात्मक रिपोॄटग से भी खुश नहीं है। इस समाचार पत्र के मालिक जैफ बेजोस ही हैं। यह बात रोचक है कि वाशिंगटन पोस्ट दक्षिणपंथी विचारधारा का समर्थक रहा है जिसने ओबामा तथा बर्नी सैंडर्स की वामपंथी नीतियों की आलोचना तो की ही साथ ही दक्षिणपंथी निक्सन के विरुद्ध ‘वाटरगेट’ जांच की रिपोॄटग भी की थी। यह 142 वर्ष पुराना समाचार पत्र काफी प्रतिष्ठित है। 2013 में इसे जैफ बेजोस ने खरीद लिया था।  परंतु भारतीय परिप्रेक्ष्य की बात करें तो भारतीय सरकार भला किस तरह किसी अमेरिकी समाचार पत्र के मालिक के साथ तुच्छ लड़ाई में पड़ सकती है। भारतीय विदेश नीति को उच्च नैतिक मूल्यों वाला माना जाता है। बेहद ध्यान से तैयार की गई हमारी आॢथक नीतियों की सराहना दुनिया भर में होती रही है। 

वास्तव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सफल विदेश नीतियों का लाभ उठाते हुए मंदी की ओर बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था में इन नीतियों को संभावनाओं में बदला जा सकता है लेकिन ऐसे बेतुके बयान हमारी अर्थव्यवस्था को नुक्सान ही पहुंचाएंगे। जहां तक वोटरों का संबंध है, यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेजोन की कम कीमतों से लाभान्वित होने वाले ग्राहकों की संख्या प्रभावित होने वाले व्यापारियों तथा खुदरा विक्रेताओं से कहीं अधिक है। भारतीय प्रतिष्ठा को और ठेस पहुंची जब अगले दिन पीयूष गोयल ने कदम पीछे खींचते हुए ट्वीट किया कि ‘हम भारत में अमेजोन के निवेश का स्वागत करते हैं। सही स्रोत से निवेश की सराहना है। कल के बयान को गलत ढंग से पेश किया गया।’ आमतौर पर सरकार किसी भी निवेशक के गलत कदम को आपसी सौदेबाजी के दौरान बातचीत के मेज पर दुरुस्त कर सकती है, सोशल मीडिया पर नहीं। 

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्राओं के दौरान दो बार जैफ बेजोस उनसे मिल चुके हैं और एक बार जब वह पहले भारत आए थे। उस समय भी वह कोई अनजान निवेशक नहीं थे। फिलहाल जैफ बेजोस इस मामले में एक बेहतर कूटनीतिज्ञ के रूप में नजर आए हैं। उन्होंने न केवल एक खुले पत्र के माध्यम से भारतीयों को एक मिलियन से ज्यादा नौकरियां देने की पेशकश की है बल्कि भारतीय निर्माताओं को अमेजोन के जरिए 10 बिलियन से ज्यादा निर्यात करने की उपलब्धि हासिल करने का भी विश्वास दिलाया है। दूसरी ओर वाशिंगटन पोस्ट के संपादक एली लोपेज ने एक ट्वीट से भाजपा के विदेश मामले विभाग के इंचार्ज चौथावले के बयान पर उन्हें जवाब देते हुए कहा है, ‘‘स्पष्ट कर दें : जैफ बेजोस वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकारों को यह नहीं बताते कि उन्हें क्या लिखना है। स्वतंत्र पत्रकारिता सरकारों की छवि चमकाने के लिए नहीं होती। यह जरूरी नहीं कि हमारे संवाददाताओं और स्तंभकारों का काम भारतीय लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुकूल फिट बैठता हो’’ ऐसे में एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में हमारे मंत्रियों को मर्यादित तथा पेशेवराना रुख प्रदॢशत करने की जरूरत है क्योंकि इस तरह की बातों तथा व्यवहार की नकल ऊपर से नीचे तक होती है।

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