‘बेलगाम’ होती नेताओं की ‘जुबान’ पर कब लगेगी ‘लगाम’

Edited By ,Updated: 06 Nov, 2020 02:42 AM

when will the tongue of the leaders become unbridled

हमारे देश में विभिन्न राजनीतिक दलों के छोटे-बड़े नेताओं द्वारा कटुतापूर्ण, चुभने वाले तथा ऊल-जलूल और बेलगाम बयान देने का एक रुझान सा चल पड़ा है जो चुनावों में तो और भी बढ़ गया है। पिछले मात्र 3 सप्ताह में दिए हुए ऐसे ही बेहूदा बयानों के 11 नमूने...

हमारे देश में विभिन्न राजनीतिक दलों के छोटे-बड़े नेताओं द्वारा कटुतापूर्ण, चुभने वाले तथा ऊल-जलूल और बेलगाम बयान देने का एक रुझान सा चल पड़ा है जो चुनावों में तो और भी बढ़ गया है। पिछले मात्र 3 सप्ताह में दिए हुए ऐसे ही बेहूदा बयानों के 11 नमूने निम्र में दर्ज हैं : 

* 15 अक्तूबर को मध्यप्रदेश के ‘सांवेर’ में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने एक चुनाव सभा में बोलते हुए कहा, ‘‘भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय साड़ी पहन कर, बाल बढ़ा कर तंत्र-मंत्र करते थे। जैसे-जैसे दशहरा पास आता है उनका चेहरा रावण जैसा लगने लगता है।’’वह यहीं पर नहीं रुके और बोले, ‘‘कैलाश विजयवर्गीय मुख्यमंत्री बनने के सपने देखते थे। भाजपा ने उन्हें बंगाल में फैंक दिया जहां उनसे भी बड़ी ‘जादूगरनी ममता बनर्जी’ बैठी है।’’

* 26 अक्तूबर को मध्यप्रदेश से कांग्रेस के विधायक डा. गोविंद सिंह ने कहा, ‘‘हम तो कानून तोडऩे वाले हैं। हमने आज तक मास्क नहीं लगाया और सैनीटाइजर का इस्तेमाल नहीं किया। यह सब मोदी का किया-धरा है जो मोदी करेगा, ठीक उल्टा चलेंगे हम। दिन भर हाथ धोने से अच्छा है कि एक पैग लगा लो। कोरोना वैसे ही भाग जाएगा।’’
* 28 अक्तूबर को भाजपा नेता ‘तुषार भोंसले’ ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चेतावनी दी, ‘‘यदि सरकार ने मंदिरों को फिर से खोलने बारे 1 नवम्बर तक निर्णय नहीं लिया तो हम मंदिरों के ताले तोड़ देंगे।’’
* 29 अक्तूबर को ‘शिअद’ सुप्रीमो सुखबीर बादल ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा, ‘‘यदि कैप्टन भाजपा के साथ चले जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। मौजूदा समय में कांग्रेस की हालत जिस प्रकार की है उसमें ऐसा होना संभव है।’’ 

* 29 अक्तूबर को ही जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर को एक खुली जेल में बदल दिया गया है।’’
* 30 अक्तूबर को भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के लिए ‘चुन्नू-मुन्नू’ शब्द का इस्तेमाल किया जिस पर उन्हें चुनाव आयोग ने ऐसे शब्दों का उपयोग न करने की हिदायत दी। 
विजयवर्गीय ने एक चुनाव सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘‘दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ये दोनों ‘चुन्नू-मुन्नू’ बड़े कलाकार हैं जिन्होंने सूबे के मतदाताओं से विश्वासघात किया है।’’ 
बाद में सफाई देते हुए विजयवर्गीय बोले ‘‘हम तो प्यार कर रहे हैं। घर के बच्चों को चुन्नू-मुन्नू बोलते हैं।’’ परंतु बाद में अपनी सफाई में उन्होंने यह भी कह दिया कि ‘‘ये छोटे लोग हैं।’’

* 31 अक्तूबर को गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत बोले, ‘‘यदि भगवान भी देना चाहें तो सभी उम्मीदवारों को नौकरी नहीं दे सकते। यदि कल को भगवान मुख्यमंत्री बन जाते हैं तो भी यह संभव नहीं है।’’
* 1 नवम्बर को केरल प्रदेश कांग्रेस समिति के प्रधान एम. रामचंद्रन ने रेप का शिकार हुई महिलाओं पर विवादित बयान देते हुए कहा, ‘‘यदि रेप की शिकार किसी लड़की में आत्म-सम्मान होगा तो वह एक बार रेप होने पर ही आत्महत्या कर लेगी या रेप को दोबारा होने से रोकेगी।’’ इन्हीं महोदय ने कुछ समय पूर्व राज्य की स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा को ‘कोविड रानी’ व ‘निपाह राजकुमारी’ कह कर उनका मजाक उड़ाया था। 

* 3 नवम्बर को ‘हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा’ के अध्यक्ष तथा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बहादुरपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘युवा नौकरी मत करें, नौकरी करना नीच का काम है।’’
* 5 नवम्बर को बिहार के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विन चौबे ने मधुबनी में एक चुनाव सभा में राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और लालू यादव को ‘पप्पू’, ‘लप्पू’ और ‘गफ्फू’ करार दिया।
* 5 नवम्बर को ही नवाबगंज, बाराबंकी नगर पालिका परिषद के चेयरमैन तथा भाजपा नेता रंजीत श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘ये सारी मरी हुई लड़कियां बाजरे, मक्के, गन्ने और अरहर के खेत में ही क्यों मिलती हैं। लड़की ने लड़के को प्रेम प्रसंग के चलते बाजरे के खेत में बुलाया होगा। अब वह किसी परिजन द्वारा पकड़ ली गई होगी, क्योंकि खेत में तो यही होता है।’’ 

उपरोक्त बयानों के अलावा भी हमारे मान्य जनप्रतिनिधियों ने और न जाने कितने बयान देकर समाज में कटुता के बीज बोने का सिलसिला जारी रखा हुआ है जो कदापि उचित नहीं है। अत: मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर इस तरह की बेहूदा और बेलगाम बयानबाजी से क्या हासिल होता है और इस पर कब और कौन लगाम लगाएगा!—विजय कुमार 

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