Edited By ,Updated: 15 Jul, 2019 01:28 AM
ईसा पूर्व के धर्मों में अहिंसा जैन, हिन्दू तथा बौद्ध धमों काएक मूल गुण तथा सिद्धांत रहा है। उसके पश्चात अनेक धर्मों ने इसे स्थान दिया। इस धारणा से प्रेरणा लेते हुए कि प्रत्येक जीव में आध्यात्मिक ऊर्जा का अंश है, फिर चाहे वह जानवर ही क्यों न हो, उसे...
ईसा पूर्व के धर्मों में अहिंसा जैन, हिन्दू तथा बौद्ध धमों का एक मूल गुण तथा सिद्धांत रहा है। उसके पश्चात अनेक धर्मों ने इसे स्थान दिया। इस धारणा से प्रेरणा लेते हुए कि प्रत्येक जीव में आध्यात्मिक ऊर्जा का अंश है, फिर चाहे वह जानवर ही क्यों न हो, उसे नुक्सान पहुंचाना अपनी आत्मा को नुक्सान पहुंचाने के समान है।
एक सिद्धांत के रूप में अहिंसा का उद्भव वैदिक युग में हुआ। ऋग्वेद (1700 ईसा पूर्व से 1100 ईसा पूर्व) के स्तोत्र 10.22.25 में अहिंसा का उपयोग प्रार्थना में किया गया, फिर ईसा पूर्व 1000 से 600 के बीच यजुर्वेद में ईश्वर कहते हैं, ‘‘सभी जीवों को हम मित्र की दृष्टि से देखें।’’ जुलाई 2018 में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने देश में हो रही ‘मॉब लिंचिंग’ (भीड़ द्वारा हत्याओं) की घटनाओं को ‘भीड़तंत्र का जघन्य कृत्य’ करार देते हुए संसद से देश भर में हो रही ऐसी हत्याओं को रोकने के लिए नए कानून बनाने को कहा था। न्यायालय ने पुलिस को भी आदेश दिया कि इन कृत्यों के दोषी पाए जाने वालों के विरुद्ध धारा 153-ए के अंतर्गत एफ.आई.आर. दर्ज की जाएं।
दूसरी ओर चिकित्सा विशेषज्ञ महसूस करते हैं कि किसी व्यक्ति के लिए दूसरे व्यक्ति की हत्या करना आसान नहीं है। केवल मनोरोगी, मानसिक रूप से परेशान अथवा हमदर्दी तथा नैतिक मूल्य से विहीन व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। परंतु डाक्टर फिलिप जिम्बार्डो, जिन्होंने स्टैनफोर्ड में प्रिजन एक्सपैरिमैंट के अनुसार कहा, ‘‘यदि साधारण लोगों को समाज में ऐसी स्थिति में डाल दिया जाए, जहां वे गुमनाम महसूस करें तो वे अन्य के साथ अमानवीय व्यवहार भी कर सकते हैं।’’ यदि हमारा धर्म हिंसा की मांग नहीं करता, हमारा कानून इसकी इजाजत नहीं देता तो क्या यह समाज की विकृत मानसिकता या राजनीति की मांग है?
पिछले दिनों से ऐसी घटनाएं देश भर में रोजाना हो रही हैं। 24 वर्षीय तबरेज अंसारी को झारखंड में जय श्री राम के नारे लगाने के लिए जबरन मजबूर किया गया तो मुम्बई में 25 वर्षीय मुस्लिम टैक्सी ड्राइवर फैजल उस्मान और देश के पूर्वी हिस्से कोलकाता में 26 वर्षीय मुस्लिम टीचर हाफिज हैदर के साथ भी ऐसा ही हुआ। वास्तव में भीड़ द्वारा लोगों को जय श्री राम के नारे लगाने के लिए मजबूर करने या उनकी हत्या करने की घटनाओं के अलावा दलितों पर अत्याचार की भी कई घटनाएं हुई हैं और इनमें बढ़ौतरी हुई है। प्रश्न उठता है कि हिंदुओं द्वारा एक-दूसरे का अभिवादन करने वाला ‘राम-राम’ कब ‘हत्या घोष’ बन गया?
आखिर कानून से बेखौफ खुले घूमने वाले ये अमानुष कौन हैं? इन्हें किसका समर्थन है? क्या ये राजनीति से पे्ररित हैं या सामाजिक तथा आर्थिक रूप से हताश लोग हैं?इससे भी अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्यों हमारे नेता इन मामलों पर खुल कर आवाज नहीं उठा रहे और क्यों इंसानियत की आवाज को अनसुना किया जा रहा है? भूलना नहीं चाहिए कि इस तरह की हिंसा यदि समाज का हिस्सा बनती है तो यह सभी के घर तक अवश्य पहुंचती है।