Edited By ,Updated: 12 Jul, 2019 01:48 AM
लोकसभा चुनावों के पश्चात देश में अपनी मूल पार्टी को छोड़ कर दूसरी पाॢटयों में जाने का रुझान बढ़ता जा रहा है और इसके रुकने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे। पिछले मात्र 3 सप्ताह में देश में कम से कम 3 बड़ी दल बदलियों के अलावा छोटी-छोटी अनेक दल-बदलियां हुई...
लोकसभा चुनावों के पश्चात देश में अपनी मूल पार्टी को छोड़ कर दूसरी पार्टियों में जाने का रुझान बढ़ता जा रहा है और इसके रुकने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे। पिछले मात्र 3 सप्ताह में देश में कम से कम 3 बड़ी दल बदलियों के अलावा छोटी-छोटी अनेक दल-बदलियां हुई हैं।
20 जून को तेदेपा के 4 राज्यसभा सांसदों वाई.एस. चौधरी, टी.जी. वेंकटेश, जी.एम. राव तथा सी.एम. रमेश अपना अलग गुट बना कर भाजपा में जा मिले। 06 जुलाई को 14 विधायकों के त्यागपत्र देने से कर्नाटक की कांग्रेस-जद (स) गठबंधन सरकार संकट में आ गई और फिर 10 जुलाई को कर्नाटक के 2 और कांग्रेस विधायकों के त्यागपत्र से असंतुष्ट विधायकों की संख्या बढ़कर 16 हो जाने से इसके सामने बहुमत खोने का खतरा मंडराने लगा है। 10 जुलाई को ही गोवा में कांग्रेस टूट गई और इसके 15 में से 10 अर्थात दो-तिहाई विधायक भाजपा में जा मिले। कांग्रेस और जद (स) में लगी इस्तीफों की झड़ी के बीच पिछले कुछ दिनों में कुछ अन्य नेताओं ने दल बदली की है जिनमें :
03 जुलाई को हरियाणा में इनैलो नेता कुलभूषण गोयल और पार्टी प्रवक्ता प्रवीण अत्रे ने भाजपा का दामन थाम लिया है। 06 जुलाई को जम्मू में यूथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदेश उपप्रधान पंकज बसोत्रा और साहिल शर्मा, प्रदेश महासचिव चेतन वांचू आदि भी भाजपा में चले गए। 06 जुलाई को ही जननायक जनता पार्टी की नेता स्वाति यादव ने गुरुग्राम में आयोजित समारोह में भाजपा में शामिल होने की घोषणा की। 08 जुलाई को जम्मू के पूर्व कांग्रेसी नेता इकबाल मलिक भाजपा में जा मिले। उन्होंने राम माधव की उपस्थिति में भाजपा का दामन थामा। 08 जुलाई को हरियाणा के पूर्व डिप्टी स्पीकर गोपी चंद गहलोत ने अपने समर्थकों के साथ इनैलो छोड़ दी।
10 जुलाई को फिरोजपुर के पूर्व आर.एस.एस. एवं भाजपा नेता राजेश खुराना तथा उनकी पत्नी व भाजपा पार्षद साक्षी कांग्रेस में शामिल हो गई।हालांकि अपनी मूल पार्टी को छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल होने वालों को वहां उचित सम्मान नहीं मिलता फिर भी वे सत्ता के मोह में उस पार्टी से जुडऩे में संकोच नहीं करते जिसमें वे अपना भविष्य बेहतर मानते हों। दल-बदली की यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए कतई शुभ नहीं है। अत: यदि किसी व्यक्ति को अपनी पार्टी से कोई शिकायत हो भी तो उसे पार्टी में रहते हुए ही अपनी बात अपने नेताओं तक पहुंचानी चाहिए न कि पार्टी छोड़ कर अपनी विश्वसनीयता पर बट्टïा लगवाना। इसके साथ ही ऐसा कानून भी बनना चाहिए कि जो उम्मीदवार जिस पार्टी से चुना जाए वह अपना कार्यकाल समाप्त होने तक उसी पार्टी में रहे और दल न बदल सके।—विजय कुमार