असभ्य शिक्षकों के लिए कौन जिम्मेदार

Edited By Pardeep,Updated: 16 Jul, 2018 03:36 AM

who is responsible for rude teachers

19 वर्षीय कॉलेज छात्रा एन. लोगेश्वरी की उस समय मौत हो गई जब 13 जुलाई, शुक्रवार को उसे कॉलेज की दूसरी मंजिल से नीचे अन्य छात्रों द्वारा पकड़े सिक्योरिटी नैट में कूदने को विवश किया गया। कूदने से झिझक रही लोगेश्वरी को मॉक ड्रिल करवा रहे इंस्ट्रक्टर ने...

19 वर्षीय कॉलेज छात्रा एन. लोगेश्वरी की उस समय मौत हो गई जब 13 जुलाई, शुक्रवार को उसे कॉलेज की दूसरी मंजिल से नीचे अन्य छात्रों द्वारा पकड़े सिक्योरिटी नैट में कूदने को विवश किया गया। कूदने से झिझक रही लोगेश्वरी को मॉक ड्रिल करवा रहे इंस्ट्रक्टर ने धक्का दे दिया। 

इस घटना के वायरल वीडियो में नजर आता है कि संतुलन खोकर गिर रही लड़की का सिर पहली मंजिल की बालकनी से टकरा गया। कॉलेज के पास इस अभ्यास के लिए किसी प्रकार की स्वीकृति नहीं थी। घटना दक्षिणवर्ती राज्य तमिलनाडु में और एक कॉलेज में हुई है तो कहा जा सकता है कि यह अपने आप में कोई पृथक घटना है परंतु इसके बावजूद इसे न तो क्षमा किया जा सकता है और न ही नजरअंदाज। इस घटना में बेहद लापरवाही से एक युवती की जान को जोखिम में डाल दिया गया। शिक्षकों की ओर से असंवेदनशील तथा गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हमारे सिस्टम में तेजी से फैल रहा है। 

दिल्ली के एक स्कूल में कुछ बच्चियों को इसलिए बंद कर दिया गया क्योंकि उनके माता-पिता ने स्कूल फीस नहीं भरी थी। सभी 16 नन्हीं बच्चियां किंडरगार्टन की छात्राएं हैं जिनकी उम्र 4 से 6 साल के बीच बताई जाती है। उन्हें बंद भी क्लास में नहीं किया गया था, उनके माता-पिता उन्हें लेने के लिए स्कूल पहुंचे तो यह जान कर दहल गए कि उनकी बच्चियों को एक तहखाने में बंद किया गया था। साढ़े 7 से साढ़े 12 बजे तक बिना पानी के वे मासूम उस गर्म तहखाने में कैद रही थीं। कुछ अभिभावकों के अनुसार उन्होंने स्कूल को अपनी बच्ची की फीस पहले ही दे रखी थी और इसका सबूत दिखाने के बावजूद प्रिंसीपल को न तो अफसोस था और न ही किसी तरह की शर्म। 

ये दोनों मामले उस विशाल ‘हिम शैल’ जैसे हैं जिसका केवल सिरा ही नजर आता है। किसी अन्य देश में ऐसा होता तो कॉलेज बंद और प्रिंसिपल पुलिस की गिरफ्त में होता। दिल्ली के स्कूल के प्रिंसीपल का भी यही हश्र होता। उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होती तथा कड़ी सजा दी जाती परंतु हमारे देश में ऐसा कुछ नहीं हुआ। दोनों ही मामले जनता के सामने हैं तथा पुलिस इनके बारे में सब जानती है और कुछ कार्रवाई करने के लिए विचारशील प्रक्रिया में है। ऐसे प्रिंसीपलों को सबक देने के लिए कानून प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा एक बड़ा मुद्दा है कि हमारी टीचर ट्रेनिंग में कहां खामी हो रही है। क्या बी.एड ट्रेनिंग कॉलेज भावी शिक्षकों को छात्रों के प्रति संवेदनशीलता का पाठ नहीं पढ़ा रहे हैं, क्या अब शिक्षकों की साइकोलॉजी की क्लास नहीं ली जाती है? 

यहां कुछ मामलों के बारे में बताना तो बेहद दुखदायी तथा भयावह है। जैसे कि अरुणाचल प्रदेश के एक गल्र्स स्कूल के छात्र संघ का कहना था कि वहां 88 लड़कियों को कपड़े उतारने को मजबूर किया गया जिस पर पुलिस ने कहा कि स्कूल के प्रिंसीपल तथा एक शिक्षिका के बीच अफेयर के बारे में कथित रूप से नोट लिखने पर केवल 19 लड़कियों को इस तरह दंडित किया गया था। कक्षा को इस तरह दंडित करने वाली तीनों महिला शिक्षक थीं। यह गत नवम्बर की घटना है परंतु मार्च में उत्तर प्रदेश के एक रैजीडैंशियल स्कूल की 10 वर्षीय 70 छात्राओं के माता-पिता को बेहद परेशान करने वाली बात पता चली थी कि मासिक धर्म के खून की जांच करने के लिए उनके कपड़े उतार दिए गए थे। 

प्रश्न उठता है कि क्या मानवीय मर्यादा की भावना अब मर चुकी है? क्या अब हमारे देश का भविष्य पैसे बनाने वाली मशीनों के हाथों में है? वे विनम्र, ज्ञानी तथा प्रेरणास्पद शिक्षक कहां गए जो हमें पढ़ाया करते थे? स्कूलों में कम हो रही शिक्षकों की संख्या को अक्सर उनके रूखे तथा असभ्य व्यवहार की वजह बताया जाता है क्योंकि एक क्लास में 20 से 30 छात्रों की बजाय अब 50 से 60 छात्र होते हैं। डी.यू. जैसी यूनिवर्सिटीज में शिक्षकों के 9000 पद रिक्त हैं जबकि असम में 1200 छात्रों के लिए एक शिक्षक है। इसके बावजूद शिक्षकों के अमानवीय व्यवहार को किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है-चाहे वह कॉलेज के छात्रों के साथ हो या किंडरगार्टन के। तो ऐसे व्यवहार का जिम्मेदार कौन है- कोई भी नहीं अथवा नाममात्र कार्रवाई करने वाली पुलिस, शिक्षक समुदाय अथवा हमारा सारा समाज?

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!