इसके सदस्य इससे क्यों मुंह मोड़ रहे हैं भाजपा ध्यान दे

Edited By Pardeep,Updated: 28 Sep, 2018 04:28 AM

why bjp is turning their backs on it

इस समय देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा तथा उसके सहयोगी दलों का भले ही देश के 21 राज्यों पर शासन है परंतु पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। जहां इसके गठबंधन सहयोगी इससे नाराज चल रहे हैं वहीं पार्टी के भीतर भी बगावती सुर रह-रह कर सुनाई दे रहे हैं। पूर्व...

इस समय देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा तथा उसके सहयोगी दलों का भले ही देश के 21 राज्यों पर शासन है परंतु पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। जहां इसके गठबंधन सहयोगी इससे नाराज चल रहे हैं वहीं पार्टी के भीतर भी बगावती सुर रह-रह कर सुनाई दे रहे हैं। 

पूर्व वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे श्री यशवंत सिन्हा ने विभिन्न मुद्दों पर पार्टी से असहमति के चलते 21 अप्रैल को भाजपा के साथ अपने सभी संबंधों को समाप्त करने की घोषणा कर दी। और अब मात्र एक सप्ताह के अंदर राजस्थान, मध्यप्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भाजपा से जुड़ी 3 अन्य हस्तियों ने विभिन्न मुद्दों पर नाराजगी के चलते इससे किनारा कर लिया। सबसे पहले वाजपेयी सरकार में विदेश मंत्री रहे श्री जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह (विधायक) ने 22 सितम्बर को ‘‘कमल का फूल, हमारी भूल’’  कहते हुए भाजपा से त्यागपत्र दे दिया। बाड़मेर जिले में एक रैली में बोलते हुए उन्होंने यह कहा कि ‘‘2013 में पार्टी में शामिल होना मेरी भूल थी। हमारे घावों को कुरेदा जा रहा है।’’ 

मानवेन्द्र सिंह की पत्नी चित्रा सिंह ने आरोप लगाया कि ‘‘वसुंधरा राजे सरकार श्री सिंह के नजदीकी लोगों व अधिकारियों तक को 2014 से परेशान करती आ रही है तथा उनकी (मानवेन्द्र सिंह) शिकायतों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही। हम अपने लोगों को नहीं छोड़ सकते। उन्होंने यह निर्णय इसलिए लिया है क्योंकि लोग चाहते थे कि वह पार्टी छोड़ दें।’’ इसके 2 दिन बाद 24 सितम्बर को मध्यप्रदेश में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त कद्दावर नेत्री पद्मा शुक्ला ने अपने 150 समर्थकों के साथ भाजपा से  38 वर्ष पुराना नाता तोड़ कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि विजय राघवगढ़ के उपचुनाव के बाद से उन्हें तथा उनके समर्थक भाजपा वर्करों को परेशान किया जा रहा है और वह गांधारी की तरह वहां नहीं रह सकती थीं। अत: वहां की जनता के हित के कारण वह बिना किसी स्वार्थ के कांग्रेस में आ गई हैं। 

भाजपा छोडऩे वालों में तीसरा नाम जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर से पार्टी के उपाध्यक्ष हकीम मसूद-उल-हसन का है जिन्होंने 25 सितम्बर को यह कहते हुए पार्टी छोड़ कर अपने 12 समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा कर दी कि ‘‘पार्टी घृणा की राजनीति में संलिप्त हो रही है।’’ यहीं पर बस नहीं, 23 अक्तूबर 1996 से लेकर 27 अक्तूबर 1997 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे शंकर सिंह वाघेला ने भी भाजपा के विरुद्ध संघर्ष छेड़ दिया है। वह गुजरात के हैवीवेट नेताओं में गिने जाते हैं। उन्होंने अपना राजनीतिक करियर जनसंघ से शुरू किया। इससे पहले वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ सक्रियता से जुड़े हुए थे तथा 1970 के दशक से 1996 तक भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे। 

26 सितम्बर को संवाददाताओं से बात करते हुए श्री शंकर सिंह वाघेला ने मोदी सरकार पर चुनाव पूर्व किए गए वादे पूरे नहीं करने का आरोप लगाते हुए कहा कि वह अगले चुनाव में इस सरकार को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए भाजपा विरोधी सभी दलों का बिना शर्त समर्थन करेंगे। वाघेला ने कहा, ‘‘मैं किसी एक दल से नहीं हूं, अब मैं सिर्फ भाजपा विरोधी हूं। मैं अगले चुनाव के दौरान सभी दलों में अपने संबंधों का इस्तेमाल मोदी सरकार को अपदस्थ करने में करूंगा। मैं गुजरात माडल को कीचड़ माडल कहता हूं जिससे निकला कमल सत्ता के रूप में भाजपा के पास आ जाता है और कीचड़ जनता के पास रह जाता है।’’ एक ओर भाजपा लगातार सफलताएं अर्जित कर रही है तथा  दूसरी ओर इसके साथी इससे नाराज हो रहे हैं। पार्टी नेतृत्व को सोचना चाहिए कि इसके साथी इससे मुंह क्यों मोड़ रहे हैं? जिन लोगों ने पार्टी के लिए त्याग किए हैं और इसे अपना जीवन दिया है, क्या उनसे बातचीत करके और उनकी शिकायतों को दूर करके उन्हें फिर से अपने साथ नहीं जोड़ा जा सकता?—विजय कुमार 

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