विधवाओं और ‘जरूरतमंद बहनों के मसीहा’ ‘जगदीश बजाज’ नहीं रहे

Edited By ,Updated: 03 Nov, 2019 01:33 AM

widows and  messiahs of needy sisters  jagdish bajaj is no more

सन् 1997 की बात है, लुधियाना से जगदीश बजाज नामक एक 61-62 वर्षीय सज्जन मुझसे मिलने आए। उन्होंने कहा कि वहां बतौर चुंगी क्लर्क काम करते थे तथा पूज्य लाला जगत नारायण जी की स्मृति में जागरण करवाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आप उसमें अवश्य पधारें। मैं...

सन् 1997 की बात है, लुधियाना से जगदीश बजाज नामक एक 61-62 वर्षीय सज्जन मुझसे मिलने आए। उन्होंने कहा कि वहां बतौर चुंगी क्लर्क काम करते थे तथा पूज्य लाला जगत नारायण जी की स्मृति में जागरण करवाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आप उसमें अवश्य पधारें। मैं उसमें 2-3 अच्छे गायकों को बुला कर बड़ा लंगर भी लगाऊंगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारा परिवार शरणार्थी के रूप में लुधियाना आया था और जब मैं लक्कड़ बाजार स्थित सरकारी स्कूल में पढ़ता था तो 1952 में लाला जगत नारायण जी, जो उन दिनों शिक्षा मंत्री थे, हमारे स्कूल में आए थे।’’ 

‘‘मैंने उचक कर उन्हें नमस्ते की तो उन्होंने मेरी ओर देखा और अपने गले से उतार कर एक माला मेरे गले में पहनाकर कहा कि जब कभी तुम्हें कोई काम हो तो मेरे पास चले आना। मेरे मैट्रिक करने के बाद उन्होंने मुझे नौकरी दिलवाई और अब मैं रिटायर हो चुका हूं।’’ मैंने जागरण में जाने की हां नहीं की और वह इसके इंतजार में 2-3 घंटे बैठे रहे। तभी हमारे पास सहायता के लिए एक विधवा बहन आ गई। (‘शहीद परिवार फंड’ की वजह से हमें अनेक दानी सज्जन घरेलू उपयोग की वस्तुएं कम्बल, बर्तन, कपड़े, दालें व खाने-पीने की वस्तुएं दे जाते हैं जिन्हें हम पैकेट बनाकर जरूरतमंद बहनों को दे देते हैं।) 

वह बहन जब सामान लेकर चली गई तो श्री बजाज ने कहा कि क्या मैं भी कुछ ऐसा काम करूं? मैंने हामी भरी तो वह बोले, ‘‘ठीक है मैं विधवाओं के लिए मासिक राशन शुरू कर देता हूं। तब तो आपको मेरे समारोह में आना ही होगा।’’ उनकी यह बात सुन कर मैंने हां कह दी। उनके जाने के बाद मैंने राहत की सांस ली और सोचा कि बड़ा जिद्दी व्यक्ति है परंतु 10 दिन बाद ही वह दोबारा आए और 11 विधवा बहनों के पूरे विवरण सहित तैयार की हुई फाइलें मेरे आगे रख दीं जिन्हें देख कर मैं हैरान रह गया और मैंने उनके समारोह में जाना मान लिया। 

3-4 सप्ताह के बाद सितम्बर 1997 में एक रविवार के दिन लुधियाना में श्री बजाज के निमंत्रण पर ज्ञान स्थल मंदिर में पहुंचा जहां उन्होंने इस मंदिर का प्रधान होने के नाते यह समारोह आयोजित किया हुआ था। उन्होंने पहले ही समारोह में 51 विधवा बहनों को राशन दिया और बाद में यह संख्या बढ़कर 800 तक पहुंच गई। फिर उन्होंने जन कल्याण के लिए सिलाई स्कूल, ब्यूटीशियन और कम्प्यूटर के कोर्स आदि शुरू करवाने के अलावा समाज सेवी महिलाओं को सम्मानित करने, बच्चों को वर्दियां, स्वैटर, जूते, कापियोंं और स्कूल बैगों का वितरण, बच्चों की फीसें देना, मेहंदी और कुकिंग कोर्स, फ्री मैडीकल कैम्प लगवाने, नवजात बच्चियों को शगुन देने आदि के अभियान भी शुरू कर दिए। 

उन्होंने विकलांगों को ट्राईसाइकिल और जरूरतमंद परिवारों की बच्चियों की शादी आदि का अभियान भी शुरू किया। इस प्रयास में भी उन्हें अपने सहयोगियों व विभिन्न दानी संस्थाओं, धर्म स्थलों आदि का पूरा सहयोग मिला। इस बीच जब 26 अप्रैल, 2005 को उनकी धर्मपत्नी की मृत्यु हुई तो उसके अगले ही दिन जरूरतमंद विधवाओं को राशन देने का कार्यक्रम तय था। उन्होंने मुझे फोन करके पूछा कि आपकी क्या राय है? मेरी चुप्पी पर वह स्वयं ही बोल उठे, ‘‘जरूरतमंद बहनें आ रही हैं इसलिए यह समारोह तो मैं करूंगा ही।’’ 

जम्मू-कश्मीर के जरूरतमंदों के लिए उन्होंने जब राहत सामग्री का पहला ट्रक दिया और इसे बांटने गए तो एक बुजुर्ग महिला ने उन्हें कहा कि कंबल से ठंड नहीं मिटती। इस पर उन्होंने जरूरतमंदों के लिए रजाइयां भिजवाने का बीड़ा उठाया और रजाइयों के 39 ट्रक अब तक भिजवाए। जब भी लुधियाना से हमारे पास कोई जरूरतमंद सहायता के लिए आता तो हम उसे श्री बजाज के पास ही भेज देते थे। उनकी प्रेरणा पर ही पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में दानी संस्थाओं ने जरूरतमंद बहनों को राशन आदि देने के अभियान शुरू किए जो अभी तक जारी हैं। 

हालांकि यह काम तो सरकारों का है परंतु इसके सूत्रधार स्व. जगदीश बजाज ही हैं। बेशक आज पंजाब, हिमाचल और हरियाणा सरकारें बुढ़ापा पैंशन आदि दे रही हैं परंतु पंजाब में यह नियमित रूप से नहीं मिलती। अंतत: कुछ समय से बीमार चल रहे 85 वर्षीय श्री जगदीश बजाज का 1 नवम्बर को देहांत हो गया और इसके साथ ही विधवा और जरूरतमंद बहनों का मसीहा चला गया। इस दुख की घड़ी में हमारी यही प्रार्थना है कि परमात्मा उन्हें अपने चरणों में शरण दें और उनके पैरोकार उनका शुरू किया हुआ जरूरतमंदों की सहायता का काम जारी रखें। इससे बेहतर श्रद्धांजलि उन्हें और कोई नहीं हो सकती।—विजय कुमार  

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