Edited By Pardeep,Updated: 15 Oct, 2018 02:16 AM
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करते हुए हम वर्षों गुजार चुके हैं परंतु हममें से अधिकतर लोग इसे लेकर जरा भी गम्भीर नहीं हैं जबकि इसका असर धरती तथा इंसानों पर दिखाई देना शुरू भी हो चुका है। गत दिनों केरल में अचानक आई बाढ़ से लेकर हाल के...
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करते हुए हम वर्षों गुजार चुके हैं परंतु हममें से अधिकतर लोग इसे लेकर जरा भी गम्भीर नहीं हैं जबकि इसका असर धरती तथा इंसानों पर दिखाई देना शुरू भी हो चुका है।
गत दिनों केरल में अचानक आई बाढ़ से लेकर हाल के वर्षों में टोरंटो (कनाडा), इम्मोकाली (फ्लोरिडा, अमेरिका), माकोको (नाईजीरिया), रियो-डि-जिनेरियो, साओपाओलो (ब्राजील), बेरूत (लेबनान), हैम्बर्ग (जर्मनी) आदि दुनिया भर के शहरों में जल भराव तथा अक्सर आ रही बाढ़ें इस बात के सबूत हैं कि यदि हम अब भी धरती के गर्म होने के तथ्य के प्रति उदासीन रहे तो इतना तय है कि जल्द ही हमें इसके और भी अधिक जानलेवा परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
अब तक ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के संदर्भ में वैज्ञानिक अक्सर भविष्य की सम्भावनाएं बयान करते थे कि कौन-से शहर सन् 2050 तक, कौन से सन् 2100 तक या अगले 50, 100 या 200 साल में डूब जाएंगे लेकिन यह एक सच्चाई है कि दुनिया भर में समुद्री जलस्तर बढऩे तथा बाढ़ से अधिक से अधिक लोगों का सामना अभी से होने लगा है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के ‘इन्टर गवर्नमैंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’(आई.पी.सी.सी.) द्वारा जारी की गई एक ऐतिहासिक रिपोर्ट में बताया गया है कि हमारी दुनिया अभी से औद्योगिकीकरण पूर्व के तापमान की तुलना में 1 डिग्री अधिक गर्म हो चुकी है।
दुनिया के शीर्ष जलवायु वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि समाज के सभी पहलुओं में तीव्र, दूरगामी तथा अभूतपूर्व परिवर्तन नहीं हुए तो जितना हम सोच रहे हैं उससे पहले ही हमारी धरती का तापमान 1.5 डिग्री सैल्सियस बढ़ जाएगा और जगह-जगह बाढ़, लू तथा सूखे से बड़ा नुक्सान होगा। रिपोर्ट के महत्वपूर्ण संदेशों में से एक का निष्कर्ष तो यही है कि आज धरती का तापमान 1 डिग्री सैल्सियस बढऩे से ही हम बेहद खराब मौसम, बढ़ते समुद्री जलस्तर तथा ध्रुवों से बर्फ के पिघलने का सामना कर रहे हैं और यदि इसी गति से तापमान बढ़ता रहा तो धरती पर सच में प्रलय आने में भी अधिक समय नहीं लगेगा।
धरती पर हो रहे इन बदलावों के सबसे तात्कालिक परिणामों में से एक है बाढ़। बढ़ता तापमान समुद्र के जलस्तर में वृद्धि तो करता ही है इसकी वजह से अचानक अत्यधिक वर्षा भी होती है क्योंकि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है उसके साथ ही वातावरण में जलवाष्प बढ़ जाते हैं। बाढ़ कोई नई आपदा नहीं है परंतु हाल के सालों में यह अधिक गम्भीर तथा नुक्सानदायक बन चुकी है। दुनिया भर में बाढ़ सबसे आम आपदा बन चुकी है जिसकी पहली वजह जलवायु परिवर्तन ही है। साथ ही बढ़ते शहरीकरण का भी इसमें योगदान है। समुद्र के साथ लगते इलाकों में तो जलस्तर बढऩे तथा अत्यधिक वर्षा दोनों का जोखिम अधिक है। यूरोपीय देश अपने शहरों को बाढ़ से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की संरचनाओं पर अरबों रुपए खर्च कर चुके हैं परंतु फिर भी यह कोई शर्तिया हल नहीं है।
ऐसा भी नहीं है कि जिन इलाकों में अभी तक बाढ़ नहीं आई है, वहां रहने वालों पर इसका कोई असर नहीं है। देश-दुनिया के किसी भी हिस्से में आने वाली बाढ़ अथवा प्राकृतिक आपदा का आर्थिक प्रभाव दूर-दूर तक होता है। अर्थशास्त्री अभी वैश्विक व्यापार तथा सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.), घरेलू आय से लेकर आर्थिक असमानता पर बढ़ते जलस्तर तथा बाढ़ के प्रभावों का अध्ययन ही कर रहे हैं परंतु आंशिक नतीजों से साफ है कि बाढ़ से होने वाली मानवीय तथा वित्तीय क्षति अभी से बहुत अधिक हो चुकी है और पहले की सोच के विपरीत इसका असर भी कहीं अधिक लम्बे समय तक होता है।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार बड़े कदम उठाए बिना जलवायु परिवर्तन के चलते अकेले नदियों की बाढ़ से वैश्विक स्तर पर कुल आर्थिक नुक्सान में अगले 20 वर्षों के दौरान 17 प्रतिशत तक वृद्धि होगी। बाढ़ की वजह से खाने-पीने से लेकर हर चीज महंगी होती है, स्थानीय कारोबार से लेकर संबंधित इलाके में पर्यटन भी ठप्प पड़ जाता है, अन्य बातों के अलावा बच्चों की पढ़ाई का भी नुक्सान होता है। अगर अब भी हम जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक नहीं हुए तो बाढ़ तथा उसके दूरगामी प्रभावों से हम खुद को अधिक समय तक बचा नहीं सकेंगे।