‘यादों के झरोखों से’ श्री अटल बिहारी वाजपेयी

Edited By Pardeep,Updated: 18 Aug, 2018 02:14 AM

with memories of memories shri atal bihari vajpayee

श्री अटल बिहारी वाजपेयी आधुनिक दौर के संभवत: एकमात्र भारतीय राजनीतिज्ञ हैं जिनके विरोधी भी उनकी मुक्तकंठ से सराहना किया करते थे। वास्तव में उनके तो सिर्फ मित्र ही थे शत्रु तो कोई था ही नहीं और उन्हें अपने विरोधियों का दिल जीतने की कला खूब आती थी। आज...

श्री अटल बिहारी वाजपेयी आधुनिक दौर के संभवत: एकमात्र भारतीय राजनीतिज्ञ हैं जिनके विरोधी भी उनकी मुक्तकंठ से सराहना किया करते थे। वास्तव में उनके तो सिर्फ मित्र ही थे शत्रु तो कोई था ही नहीं और उन्हें अपने विरोधियों का दिल जीतने की कला खूब आती थी। आज जब वह हमारे बीच नहीं हैं उनके जीवन से जुड़ी चंद यादें निम्र में दर्ज हैं : 

25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर में ‘शिंदे की छावनी’ की तंग गलियों में ‘कमल सिंह के बाग’ में स्थित एक छोटे से घर में जन्म लेने वाले अटल जी अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे। उनके तीन भाई और तीन बहनें थीं। उन्हें सबसे पसंद था कंचे खेलना, बचपन में ही कवि सम्मेलनों में जाकर कविताएं और नेताओं के भाषण सुनना। अटल जी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज से बी.ए. किया तथा तीन विषयों हिन्दी, अंग्रेजी व संस्कृत में डिस्टिंक्शन प्राप्त किया। कालेज के दिनों में ही इन्हें आइने के सामने खड़े होकर अपने भाषण की रिहर्सल करने का शौक लग गया था। कालेज की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के वह हीरो हुआ करते थे। 

जिस समय उन्होंने कानपुर के डी.ए.वी. कालेज में वकालत की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया, उसी समय उनके पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने जोकि एक अध्यापक थे और वकील बनना चाहते थे, भी उनके साथ ही कालेज में दाखिला लिया। पिता और पुत्र दोनों एक ही क्लास में थे और होस्टल में उनका कमरा भी सांझा था। दोनों शाम को इकट्ठे खाना पकाते थे। जब कभी पिता जी क्लास में पहुंचने से लेट हो जाते तो अटल जी से प्रोफैसर पूछते थे कि कहां हैं आपके पिता जी? वहीं जब कभी अटल जी क्लास में नहीं होते थे तो उनके पिता जी से पूछा जाता था कि, ‘‘कहां रह गए आपके साहिबजादे?’’ अटल जी हिमाचल प्रदेश को अपना दूसरा घर कहते थे। यहां के मनाली जिले के प्रीनी गांव से उन्हें विशेष लगाव था जहां वह गर्मियों में आकर रहते थे। यहां अंतिम बार वह 2006 में आए और उसके बाद उनकी तबीयत खराब होती गई और वह फिर यहां नहीं आ सके। 

श्री वाजपेयी के पुराने साथी श्री लाल जी टंडन ने मृत्यु के संबंध में उनके दृष्टिïकोण को व्यक्त करते हुए उनकी एक कविता का निम्र अंश पढ़ा :
ठन गई, मौत से ठन गई, जूझने का मेरा कोई इरादा न था, 
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्ता रोक कर खड़ी हो गई,
यूं लगा जैसे जिंदगी से बड़ी हो गई। 

जब 1950 के शुरूआती दिनों में अटल जी तथा अडवानी जी दिल्ली में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे, वे दोनों एक ही कमरे में रहते थे। खाना वाजपेयी जी ही बनाते और अडवानी जी मजाक-मजाक में शिकायत करते हुए कहते कि उन्हें खिचड़ी कुछ ज्यादा ही खानी पड़ रही है। इन दोनों को फिल्में देखने का भी बहुत शौक था और दोनों ने कई फिल्में इकट्ठे देखीं। इनमें शामिल हैं शाहरुख की अधिकांश फिल्में और ऋतिक रोशन की ‘कोई मिल गया’। कविताएं लिखने के अलावा श्री वाजपेयी को अच्छा बोलने और स्वादिष्टï भोजन खाने और पकाने का बहुत शौक था। एमरजैंसी के दिनों में जब वह अन्य राजनीतिक कैदियों के साथ चंडीगढ़ जेल में बंद थे तो वहां एक तरह से ‘हैड कुक’ की जिम्मेदारी वही निभाते थे तथा खिचड़ी, खीर, मालपुए और भांग के खूब मजे लेते थे। 

ग्वालियर की हर मिठाई की दुकान से अटल जी की यादें जुड़ी हुई हैं। ग्वालियर की गलियों में लड्डू के जायके से ही शायद उनका सरल व्यक्तित्व बना था जो उनकी इस कविता से स्पष्ट है, ‘‘मेरे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना, गैरों को गले न लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना।’’ एक बार जब किसी व्यक्ति ने उनसे यह जानना चाहा कि पी.वी. नरसिम्हा राव के राजनीतिक पतन के बाद भी अपने घर में उनका चित्र क्यों लगा रखा है तो अटल जी ने उत्तर दिया था कि, ‘‘मैं राजनीतिक उतार-चढ़ाव के अनुसार अपने मित्र नहीं बदला करता।’’ अटल जी शाहजहांपुर में एक राजनीतिक बैठक में भाग लेने जा रहे थे। सड़क के दोनों ओर खड़े लोग हाथ हिला कर उनका अभिवादन कर रहे थे तो उन्होंने ड्राइवर से कार रोकने के लिए कहा लेकिन जब सुरक्षा कर्मियों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया तो अटल जी अपनी बात पर अड़ गए और बोले, ‘‘ये सब मेरे वोटर हैं अगर मैं उतर कर इनकी बात नहीं सुनूंगा तो फिर ये मुझे कैसे वोट देंगे।’’आज जब हर दिल अजीज नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी हमारे बीच नहीं हैं, उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप हमने उनके जीवन की चंद घटनाएं यहां दर्ज की हैं। आशा है पाठकों को इनसे उनके व्यक्तित्व के बारे में कुछ जानकारी मिलेगी।—विजय कुमार  

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