Edited By ,Updated: 21 Apr, 2019 02:04 AM
दो मुख्य प्रतिस्पर्धी वही होने के बावजूद भारत में प्रत्येक लोकसभा चुनाव विलक्षण होता है। इसका एक कारण यह है कि दो मुख्य प्रतिस्पर्धियों के अलावा अन्य राजनीतिक दल चुनावों के बीच अपनी स्थितियां बदलते रहते हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण कारण यह है कि एक मुख्य...
दो मुख्य प्रतिस्पर्धी वही होने के बावजूद भारत में प्रत्येक लोकसभा चुनाव विलक्षण होता है। इसका एक कारण यह है कि दो मुख्य प्रतिस्पर्धियों के अलावा अन्य राजनीतिक दल चुनावों के बीच अपनी स्थितियां बदलते रहते हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण कारण यह है कि एक मुख्य प्रतिस्पर्धी में अत्यंत बदलाव आता है, बेहतरी के लिए या बुरे के लिए और पार्टी का एक नए अवतार में लड़ाई में प्रवेश पहले की तरह नजर नहीं आ सकता। ऐसा ही 2019 में हुआ है।
2014 का पदधारी (कांग्रेस) मुख्य चुनौतीदाता बन गया है तथा 2014 का चुनौतीदाता (भाजपा) पदधारी है। हालांकि प्रत्यक्ष भूमिका बदलाव में एक मोड़ आया है क्योंकि 2019 की भाजपा 2014 वाली भाजपा नहीं है। 2014 की भाजपा एक ढांचे वाली राजनीतिक पार्टी थी जबकि 2019 की भाजपा ‘वन मैन शो’ है। नरेन्द्र मोदी भाजपा में सभी ढांचों को एक ओर करके खुद पार्टी बन गए हैं। परिणामस्वरूप युद्ध की रेखाएं भिन्न हैं। 2014 में भाजपा बनाम कांग्रेस था, अब यह मोदी बनाम कांग्रेस है।
धन तथा बल
मोदी को धन, बल तथा राजनीतिक अधिकार के सर्वाधिक शक्तिशाली मिश्रण का समर्थन है। मोदी की एक रैली पर कम से कम 10 करोड़ रुपए का खर्च आता है और एक दिन में वह 3-4 रैलियां करते हैं। इस खर्चे के एक मामूली से हिस्से की भी गणना नहीं की गई और मुझे हैरानी होगी यदि इस खर्चे को मंच पर मौजूद उम्मीदवार/उम्मीदवारों के खर्चे खाते/खातों में जोड़ दिया जाए। शक्तियों के मामले में यह सर्वविदित है कि मोदी संबंधित मंत्रियों को नजरअंदाज करते हुए शक्तियों के सभी लीवर्स को नियंत्रित करते हैं- इंटैलीजैंस ब्यूरो, गृह मंत्रालय, राजस्व विभाग तथा जांच एजैंसियां।
जहां तक राजनीतिक अधिकार की बात है, भाजपा में केवल वही एक आवाज है जो गठबंधन बनाने, उम्मीदवारों के चयन, चुनावी रणनीति तथा नैरेटिव बनाने में मायने रखती है। प्रसिद्ध ब्लाग राइटर का काम केवल पोस्ट के बाद जवाबदेही होता है। धन तथा बल के मामले में कांग्रेस भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती। यद्यपि इसने विचारों के क्षेत्र में से कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे चुरा लिए। चुनावी मौसम के प्रारम्भ में कांग्रेस को एहसास हो गया कि लोगों में कम शोर, अधिक सुरक्षा, अधिक नौकरियां की प्रचुरता, किसानों को राहत तथा गरीबों के कल्याण को लेकर तड़प है। कांग्रेस ने लोगों की आवाजें सुनने का निर्णय किया। बाद में उन अवाजों ने भारतीय राजनीति में सर्वाधिक चॢचत चुनावी घोषणा पत्र के लिए विचारों तथा नैरेटिव्स की आपूर्ति की।
2 अप्रैल को कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी होने के कुछ ही दिनों के भीतर युद्ध रेखा मोदी बनाम कांग्रेस नहीं रही, यह मोदी बनाम कांग्रेस घोषणा पत्र बन गई। मोदी के किसी भी भाषण को सुन लें। गांधी परिवार पर सामान्य झूठ बोलने व गालियां देने के अतिरिक्त मोदी कांग्रेस घोषणा पत्र पर टूट पड़ते हैं, ख्याली भूत खड़े करते हैं और उन्हें मार गिराने जैसी प्रतिक्रिया देते हैं। वह भाजपा के घोषणा पत्र बारे एक भी शब्द नहीं कहेंगे जो 2 अप्रैल के कुछ ही दिनों बाद जारी किया गया तथा भुला देने वाला साबित हुआ। मोदी को कांग्रेस घोषणा पत्र में शामिल विचारों की ताकत का एहसास हो गया है।
घोषणा पत्र ने कल्पना को छुआ
मैं अभी-अभी तमिलनाडु में 2 सप्ताहों तक थकाऊ चुनाव प्रचार से लौटा हूं और आपको बता सकता हूं कि किस चीज ने तमिल मतदाताओं की कल्पना को छुआ है। शीर्ष 6 इस तरह से हैं:
-गरीबी रेखा से नीचे परिवारों को प्रति वर्ष 72000 रुपए (6000 रुपए प्रति माह);
-कृषि ऋण को माफ करना (द्रमुक ने जौहरियों द्वारा लिए
गए छोटे ऋणों को भी शामिल किया है);
-मनरेगा पात्रता को वर्ष में 150 दिनों तक बढ़ाना;
-कई लाख नौकरियां पैदा करने के वायदे के अनुरूप 9 महीनों में 24 लाख सरकारी नौकरियां देना;
-महिलाओं, दलितों, अनुसूचित जातियों/जनजातियों, जंगलों में रहने वालों, पत्रकारों, लेखकों, शिक्षाविदों, एन.जी.ओज तथा व्यावहारिक रूप से प्रत्येक उस व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करना जो सरकारी शक्तियों के दुुरुपयोग (विपक्षी उम्मीदवारों तथा नेताओं पर आयकर छापे इस बात के ‘सबूत’ हैं) के कारण गुस्से में है, तथा
-तमिल भाषा, जाति, संस्कृति, प्रतीकों तथा इतिहास के लिए सम्मान।
नि:संदेह अधिकांश प्रीतिकर वायदे कल्याण से संबंधित थे मगर लोगों का मानना है कि रक्षा तथा अर्थव्यवस्था चुनी हुई सरकार की जिम्मेदारियां तथा पेचीदा मुद्दे हैं जिन्हें चुनाव प्रचार में नहीं उठाया जाना चाहिए। यदि चुनी हुई सरकार इन मुद्दों को बिगाड़ती है तो इसे एक कीमत चुकानी होगी (जैसे कि नोटबंदी, जिसके लिए लोग मोदी सरकार को दंड देंगे)।
विचारों की ताकत
यदि फील्ड रिपोर्टस निराशाजनक रूप से गलत नहीं होतीं, कांग्रेस का घोषणा पत्र तथा प्रत्येक विचार पर राहुल गांधी की नपी-तुली आवाज तमिलनाडु में द्रमुक नीत गठबंधन को शानदार विजय की ओर ले जाएंगे। इसके अतिरिक्त एम.के. स्टालिन ने कांग्रेस तथा द्रमुक के वायदों का चतुराईपूर्ण मिश्रण करके ‘कल्याण’ के विचार की ताकत का प्रदर्शन किया है। मगर ये प्रारम्भिक दिन हैं तथा चुनाव के केवल 2 चरण (186 सीटें) पूरे हुए हैं। महत्वपूर्ण है तीसरा (115 सीटें) तथा चौथा (71 सीटें) चरण जब विचारों की लड़ाई को हिंदी पट्टी में ले जाया जाएगा।
‘धन तथा कल्याण’ लोगों को एक शक्तिशाली संदेश है। मोदी इसे समझ जाएंगे यदि वह भारत के छोटे नगरों तथा गांवों की गलियों में चले लेकिन वह उडऩे को अधिमान देते हैं। यदि विपक्षी दल संदेश की क्षमता को समझते हैं और इसे देश के हर कोने में ले जाते हैं (यदि वे ऐसा अलग-अलग भी करते हैं) तो वे भाजपा के खिलाफ अपनी अलग-अलग लड़ाइयां जीत लेंगे। मैं ऐसी आशा करता हूं।-पी. चिदम्बरम