एक घेरा, जिससे भारत को हर कीमत पर बचना चाहिए

Edited By ,Updated: 19 Jul, 2022 11:59 AM

a circle that india must avoid at all costs

भारत पहचान, धर्म, नफरत फैलाने वाले भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने और राज्य सरकारें गिराने के कुटिल खेल को लेकर निंदनीय लड़ाई से खुद को विचलित कर रहा है

भारत पहचान, धर्म, नफरत फैलाने वाले भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने और राज्य सरकारें गिराने के कुटिल खेल को लेकर निंदनीय लड़ाई से खुद को विचलित कर रहा है, वहीं नए गठबंधनों के आधार पर एक नई विश्व व्यवस्था विकसित हो रही है। इस व्यवस्था की रूपरेखा भारत के सामरिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है। इस उभरते हुए प्रतिमान के केंद्रबिंदू में चीन है।

 

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण शुरू करने से पहले 5 फरवरी, 2022 को पेइचिंग में चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसका शीर्षक था एक नए युग में प्रवेश करने वाले अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक सतत विकास पर रूसी संघ और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना। रूस और चीन दोनों मौजूदा यथास्थिति को आक्रामक रूप से चुनौती देना चाहते हैं।

 

दस्तावेज में निम्नलिखित पाठ यह सब कहता है, ‘‘कुछ भागीदार, जो प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दों का समाधान करने और बल का सहारा लेने के लिए बहुत कम संख्या में एकतरफा दृष्टिकोण की वकालत करना जारी रखते हैं, वे अन्य राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करते हैं, उनके वैध अधिकारों और हितों का उल्लंघन करते हैं और अंतिर्विरोधों, मतभेदों और टकराव को उकसाते हैं तथा इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विरोध के खिलाफ मानव जाति के विकास और प्रगति में बाधा डालते हैं।’’

 

यूक्रेन में यदि रूसी सफल होते हैं तो चीनियों से ज्यादा खुश कोई नहीं होगा, क्योंकि तब एक कमजोर यूरोप को चीन को एक बाहरी संतुलनकर्त्ता के रूप में देखना पड़ सकता है। हालांकि, ऐसा लगता है कि पिछले साढ़े 4 महीनों में अब तक उल्टा हुआ है और यूरोप रूस के खिलाफ पहले से कहीं अधिक संगठित दिख रहा है। हालांकि पुतिन ने अमंगलकारी चेतावनी दी है कि उन्होंने अभी शुरुआत की है।

 

हालांकि चीन-रूस धुरी ही नई दिल्ली को चिंतित करने वाली एकमात्र बात नहीं है। उत्तर कोरिया से लेकर ईरान तक, जिसमें चीन और पाकिस्तान शामिल हैं, परमाणु हथियार राज्यों का एक भौतिक सच है। इस बात के बावजूद कि भारत ने ईरान के प्रति जो कुछ भी किया हो, तथ्य यह है कि ईरान के अमरीका के साथ प्रतिकूल संबंध हैं और अमरीका और इसराईल दोनों के साथ भारत की अनुरूपता भारत-ईरान संबंधों में एक मौलिक असंगति पैदा करती है। 

 

मार्च 2021 में चीन और ईरान के बीच 25 साल की रणनीतिक सांझेदारी ने इस बेचैनी को और बढ़ा दिया। यह कोई संयोग नहीं कि जब चीन और ईरान के बीच यह समझौता वार्ता के अंतिम चरण में था, भारत 2020 के नवम्बर में चब्भार-जैदान रेलवे लिंक परियोजना से बाहर हो गया था।
यदि ईरान चीन कीओर निर्णायक रूप से झुकता है, यह देखते हुए कि भारत के नाम डी.पी.आर. कोरिया के साथ नाममात्र के संबंध हैं और चीन अप्रैल 2020 से भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जाधारी है और पाकिस्तान के साथ विभाजन के समय से ही 70 साल पुराना झगड़ा है, तो सुदूर पूर्व से पश्चिम तक एशियाई हृदयभूमि में फैले परमाणु हथियार राज्यों के गुट से भारत कैसे निपटेगा?

 

चीन सहयोग की इस नई धुरी के केंद्र में है, यह न केवल उत्तर कोरिया-ईरान संबंधों को प्रोत्साहन प्रदान कर रहा है, बल्कि उत्तर कोरिया को पारंपरिक और अपरंपरागत क्षमताओं को उन्नत करने के लिए सहायता भी प्रदान कर रहा है, जैसा कि 2020 के अक्तूबर में उसकी 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित सैन्य परेड में प्रदर्शित किया गया था। जून 2020 में जर्मनी के एक प्रांत बाडेन-वुर्टेमबर्ग के संविधान के संरक्षण कार्यालय की एक रिपोर्ट ने उत्तर कोरिया, पाकिस्तान और चीन के बीच परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियार कार्यक्रमों पर सहयोग बारे विस्तृत जानकारी दी और यह रेखांकित किया कि ‘‘उनका लक्ष्य मौजूदा शस्त्रागार को पूरा करना, सीमा को परिपूर्ण करना, अपने हथियारों की तैनाती और प्रभावशीलता और नई हथियार प्रणाली विकसित करना, मौजूदा निर्यात प्रतिबंधों और प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए जोखिम वाले राज्यों को अपनी खरीद विधियों को लगातार विकसित और अनुकूलित करना है। वास्तविक अंतिम उपयोगकत्र्ता को छिपाने के लिए वे विशेष रूप से स्थापित कवर कंपनियों की सहायता से जर्मनी और यूरोप में सामान खरीद सकते हैं और विशेष रूप से, दोहरे उपयोग वाले सामानों को जोखिम वाले राज्यों में ले जा सकते हैं। विशिष्ट बाईपास देशों में तुर्की और चीन शामिल हैं।’’

 

भारत को यह चिंता क्यों होनी चाहिए, इसका मुख्य कारण यह है कि ईरान न केवल मध्य पूर्व में शिया क्रिसेंट में एक बड़ा प्रभाव पैदा करने में सक्षम रहा है, जहां भारत के महत्वपूर्ण ऊर्जा हित हैं, बल्कि इन 4 शक्तियों के बीच तालमेल का भारत की सुरक्षा पर सीधा असर पड़ता है, क्योंकि अफगानिस्तान अब तालिबान के माध्यम से वास्तविक पाकिस्तानी नियंत्रण में है और एक मित्रवत ईरान रणनीतिक गहराई का एक आरामदायक स्तर प्रदान करता है जिसकी पाकिस्तान हमेशा से आकांक्षा रखता है। सीरिया में, मरमंस्क से बोस्पोरस जलडमरूमध्य तक का यह नया प्रतिमान एक दुर्जेय गुट के रूप में उभर सकता है। रूस को छोड़कर अन्य डी.पी.आर. कोरिया, चीन, पाकिस्तान, ईरान और यहां तक कि तुर्की का भारत के साथ या तो एक विरोधी या अच्छा ‘बहुत औपचारिक’ संबंध है।

मनीष तिवारी
manishtewari01@gmail.com

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