कानून का जानबूझ कर किया गया उल्लंघन है ‘एन.आर.सी.’

Edited By ,Updated: 08 Sep, 2019 01:41 AM

a deliberate violation of the law is  nrc

मुझे हैरानी होगी यदि आपको पता हो कि जिस आधार पर असम में नैशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स (एन.आर.सी.) बनाया गया है वह संसद द्वारा बनाए गए देश के कानून का जानबूझ कर किया गया जबरदस्त उल्लंघन है। इस मामले में जो सबसे खराब बात दिखाई देती है वह यह कि इसे सुप्रीम...

मुझे हैरानी होगी यदि आपको पता हो कि जिस आधार पर असम में नैशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स (एन.आर.सी.) बनाया गया है वह संसद द्वारा बनाए गए देश के कानून का जानबूझ कर किया गया जबरदस्त उल्लंघन है। इस मामले में जो सबसे खराब बात दिखाई देती है वह यह कि इसे सुप्रीम कोर्ट की स्वीकृति तथा सुरक्षा में किया गया है। और हां, मैंने उकसाहटपूर्ण विशेषणों का इस्तेमाल इसलिए किया है क्योंकि मैं आपका ध्यान इस ओर आकॢषत कर आपकी ङ्क्षचताओं को सांझा करना चाहता हूं। 

आधार क्या है
एन.आर.सी. इस आधार पर तैयार किया गया है कि जो लोग 24 मार्च 1971 की आधी रात से पूर्व असम में मौजूद हैं (सम्भवत: यह प्रवासियों के संदर्भ में किया गया है), उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा। यह एक महत्वपूर्ण तिथि है। यद्यपि 1955 का नागरिकता कानून एक बहुत अलग स्थिति स्थापित करता है। इसकी धारा 3 (1) कहती है कि ‘प्रत्येक वह व्यक्ति जो जनवरी 1950 के 26वें दिन को या के बाद लेकिन जुलाई 1987 के पहले दिन से पूर्व भारत में जन्मा, जन्म से भारत का नागरिक होगा।’ 

यह अंतर बहुत महत्वपूर्ण है। नागरिकता कानून के अंतर्गत 30 जून 1987 तक भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति देश का नागरिक है। इसके विपरीत एन.आर.सी. कट आफ प्वाइंट 16 वर्ष पूर्व निर्धारित करता है। यह उन लोगों की नागरिकता की पहचान नहीं करता जो 25 मार्च 1971 तथा 30 जून 1987 के बीच भारत में जन्मे हैं। जैसे कि एन.आर.सी. के संयोजक प्रतीक जहेजा 10 जुलाई 2019 को सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कहते हैं- ‘एन.आर.सी. में शामिल करने के लिए वंश द्वारा नहीं बल्कि विशुद्ध जन्म से नागरिकता वैध होगी।’ यह इस आधार पर है कि किसी ऐसे व्यक्ति के अभिभावक ‘संदेहपूर्ण मतदाता’ हो सकते हैं, एक ‘घोषित विदेशी’ या कोई ऐसा ‘जिसका नागरिकता का दावा विदेशियों के लिए किसी ट्रिब्यूनल में लंबित हो।’ 

हालांकि यह आधार धारा 3(1)(ए) लागू करने के लिए वैध अपवाद नहीं है। यह स्पष्ट तौर पर कहता है कि ‘भारत में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति’ और इसे उनके अभिभावकों अथवा उनके नागरिकता दर्जे की कोई परवाह नहीं। दरअसल नागरिकता कानून उन लोगों के वर्गों के प्रति बहुत विस्तार से कहता है जिन्हें जन्म के कारण नागरिकता से बाहर कर दिया गया है। यह धारा 3(2)(ए) तथा (बी) में बताया गया है और पंजीकृत कूटनीतिज्ञों के बच्चों तक सीमित है क्योंकि उनके अभिभावकों को ‘मुकद्दमों तथा कानूनी प्रक्रियाओं से छूट प्राप्त है’ और विदेशी दुश्मनों के बच्चे जो उस समय देश के उनके अधिकार वाले क्षेत्र में पैदा हुए हों।

आश्वासन भूली सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के मामले में हैरानी वाली बात यह है कि इसने न केवल ऐसा होने दिया बल्कि उसके ऐसा करने की रक्षा भी की। अपने 13 अगस्त 2019 के आदेश में अदालत ने आदेश दिया कि चूंकि एन.आर.सी. की पूरी कार्रवाई 24 मार्च 1971 की मध्य रात्रि को कट आफ के तौर पर लेते हुए की गई। इसलिए इसे एक ताजा कार्रवाई के आमंत्रण के माध्यम से कानून की धारा 3(1)(ए) के प्रावधानों की शक्तियों के तहत पुन: खोलने का आदेश नहीं दिया जा सकता। हालांकि चार दिन पूर्व अदालत ने स्पष्ट तौर पर आश्वासन दिया था कि 30 जून 1987 तक भारत में जन्मे लोगों को बाहर नहीं निकाला जाएगा। हालांकि अपने आदेश में इसे भुला दिया गया। परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने कानून तथा प्रभावी लोगों के अधिकारों के प्रति निष्ठा की बजाय प्रशासनिक सुविधा को प्राथमिकता दी। 

अत: एन.आर.सी. को पूर्ण करने तथा अवैध विदेशियों की पहचान करने की हड़बड़ी में हमने जानबूझ कर एक ऐसी प्रक्रिया चुनी जो भारत के वैध नागरिकों को अवैध प्रवासियों में बदल देगी। क्या यह गहरी ङ्क्षचता का विषय नहीं है? अपने 13 अगस्त के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने जिस घमंडी तरीके से इसका समाधान करने की कोशिश की, वह न केवल अपर्याप्त बल्कि विक्षुब्ध करने वाला है। 

प्रैस व विपक्ष की भूमिका
जो चीज स्थिति को और अधिक अकथनीय बनाती है वह यह कि प्रैस तथा विपक्ष या तो इससे अनजान हैं या इससे अविचलित हैं। सच में उनके लिए अज्ञानता आनंद की बात है। और क्या अब आप समझ सकते हैं कि क्यों मैं आपका ध्यान आकर्षित करने और प्रतिक्रिया के लिए इतना उत्सुक हूं? एन.आर.सी. निश्चित तौर पर ङ्क्षचताजनक व संदिग्ध है। यदि इसका समाधान नहीं किया गया तो यह कानून में हमारे विश्वास को तोड़ देगा।-करण थापर
 

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