स्वतंत्रता संग्राम का एक भूला बिसरा पृष्ठ

Edited By ,Updated: 10 Apr, 2021 04:13 AM

a forgotten page of the freedom struggle

एक ऐसा पृष्ठ जिसने नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी बचाने के लिए अपने ही पति की हत्या कर दी। जेलर ने जिसके अधोवस्त्र तक उतार दिए। जेल की काल-कोठरी में जिसे कम्बल तक भी नहीं दिया जाता था। जिस स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त,

एक ऐसा पृष्ठ जिसने नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी बचाने के लिए अपने ही पति की हत्या कर दी। जेलर ने जिसके अधोवस्त्र तक उतार दिए। जेल की काल-कोठरी में जिसे कम्बल तक भी नहीं दिया जाता था। जिस स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त, साहसी, स्वाभिमानी, वीरांगना के दोनों स्तनों को जमूर से खींचा जाता रहा, जिसकी अंगिया को बाकी कैदियों के सामने फाड़ दिया गया। अंग्रेजों ने जिस महिला को ‘काले पानी’ (अंडमान-निकोबार) की सजा सुनाई, जिसे तरह-तरह की यातनाएं दीं और मरा हुआ समझ समुद्र में फैंक दिया। जिसे अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के जरवा आदिवासियों ने समुद्र से, बेसुधी की हालत में बाहर निकाला और इंडोनेशिया पहुंचा दिया। 

शायद यह 135 करोड़ का भारत उस वीरांगना को नहीं जानता? वह औरत भारत की पहली महिला जासूस थी। नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद ङ्क्षहद फौज में झांसी-रैजीमैंट की कैप्टन नीरा आर्या थी। बड़े-बड़े नामी गिरामी स्वतंत्रता सेनानियों के नाम तो हम जानते हैं परन्तु इस भूले-बिसरे नाम से सभी अपरिचित रहे। पांच मार्च 1902 को जन्मी इस बच्ची ने अपनी जवानी में ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में अपनी जगह बना ली। 

इन्हें अंग्रेजी फौज की जासूसी करने का उत्तरदायित्व सौंपा। दूसरी ओर इनके अंग्रेज भक्त पति श्रीकांत जयरंजनदास अंग्रेजी फौज में सी.आई.डी. इंस्पैक्टर थे। नीरा आर्या के पति ने सुभाष चंद्र बोस को ज्यों ही मारने के लिए गोली चलाई त्यों ही नीरा ने अपनी संगीन अपने पति के पेट में घोंप दी। गोली एक ड्राइवर को लगी। पति वहीं ढेर हो गया परन्तु नीरा आर्या ने पति को मार नेता जी को बचा लिया। 

नेता जी ने इनका आगे से नाम रखा ‘नीरा-नागिनी’। जब नेता जी की आजाद ङ्क्षहद फौज ने हार के बाद आत्म-समर्पण किया तो बाकी सैनिकों के साथ नीरा आर्या को भी पकड़ लिया गया। दिल्ली के लाल किले में इन सब पर मुकद्दमा चला। आजाद हिंद फौज के बाकी सिपाहियों को तो छोड़ दिया गया परन्तु पति की हत्या करने के जुर्म में नीरा आर्या को काले-पानी की सजा हुई। वहीं इन्हें कठिन यातनाएं दी गईं। इन्हें मरा समझ समुद्र में फैंक दिया। अंडमान-निकोबार के जरवा आदिवासियों ने नीरा आर्या को समुद्र से जिंदा निकाल लिया। वहां से वह इंडोनेशिया पहुंच गई। अंडमान-निकोबार से जिंदा बच कर निकलने वाली वह पहली महिला थीं। 

नेता जी का इन जासूस लड़कियों को आदेश था कि पकड़े जाने पर अपने आप को गोली मार लेना। हुआ यूं कि इनकी एक साथी दुर्गा अंग्रेजों की जासूसी करते पकड़ी गई। नीरा आर्या और सरस्वती राजामणि ने दुर्गा को अंग्रेजों की कैद से छुड़ाने की योजना बनाई। इन्होंने हिजड़े नर्तकों की वेशभूषा बना फौजी छावनी में प्रवेश किया। अफसरों को नशीली दवाई पिला बेहोश कर दुर्गा को अंग्रेजों की जेल से मुक्त करवा लिया। अंग्रेज सिपाहियों ने इनका पीछा किया। 

इस सर्च आप्रेशन में राजामणि के पैर में गोली लग गई। यह तीनों नेता जी की जासूसनें भूखी-प्यासी तीन दिन तक एक पेड़ पर चढ़ी रहीं। राजामणि के खून बहता रहा और वह सारी उम्र लंगड़ा कर चलती रहीं। नेता जी ने प्रसन्न होकर राजामणि को झांसी रैजीमैंट में लैफ्टिनैंट और नीरा आर्या को कैप्टन के पद से अलंकृत किया। सभी विचार कर लें कि आजादी के लिए दीवानों को क्या कुछ करना पड़ता है। नीरा आर्या हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली के अलावा कई अन्य भाषाएं जानती थी। 

जब मैंने उनकी आत्मकथा को पढ़ा तो आंखों में आंसू आ गए। वह कहती हैं जब मैं कोलकाता जेल की काल कोठरी में थी तो एक दिन मुझे रात काल कोठरी में बंद कर दिया क्योंकि मुझे कालेपानी ले जाना था। रात के दस बजे होंगे, फर्श पर बिना कम्बल सोना पड़ा। हाथों-पैरों में बेडिय़ां। सूर्य निकलने पर मुझे खिचड़ी मिली। हाथों-पैरों की बेडिय़ां काटने लोहार आ गया। हाथ की सांकल काटते हाथों की चमड़ी भी उतर गई। परन्तु पैरों की आड़ी-बेड़ी काटते समय जब हथौड़ा पड़ता तो असहनीय दर्द होता। जब पीड़ा होने लगी तो हथौड़ा चलाने वाले से बोली, ‘‘अंधा है जो पैरों पर मारता है?’’ हथौड़ा चलाने वाला बोला, ‘‘हम पैर तो क्या, हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’’ मैं बोली, ‘‘बंधन में हूं तुम्हारा कर भी क्या सकती हूं?’’ मैंने उसके मुंह पर थूक दिया और बोली, ‘‘औरत की इज्जत करना सीखो।’’ साथ खड़ा जेलर बोला, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा। 

यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेता जी कहां हैं?’’ मैं बोली, ‘‘वह तो हवाई दुर्घटना में चल बसे हैं।’’ वह चिल्लाया, ‘‘तुम झूठ बोलती हो, नेता जी जिंदा हैं।’’ मैंने उत्तर दिया, ‘‘हां, नेता जी जिंदा हैं।’’ जेलर कड़क कर बोला, ‘‘तो कहां है?’’ मैंने उत्तर दिया, ‘‘मेरे दिल में हैं।’’ जेलर को और गुस्सा आ गया और बोला, ‘‘तो तुम्हारे दिल से हम नेता जी को निकाल लेते हैं।’’ तो जेलर ने मेरे आंचल में हाथ डाल दिया। मेरी अंगिया को फाड़ दिया। 

लोहार से बोला, ‘‘पौधे छांगने वाला जमूर लाओ।’’ उसने मेरे ब्रैस्ट रिपर को उठा लिया। मेरे दोनों स्तनों को उस जमूर से दबा कर काटने लगा। उसने मेरे दोनों उरोजों को जमूर से उठा दिया। बोला, ‘‘यह तुम्हारे दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएंगे।’’ मैं असहनीय पीड़ा से कराह रही थी। ऊपर से जेलर ने गर्दन को जोर से पकड़ा हुआ था। उसने चिमटे से मेरी नाक को जोर से दबाया हुआ था। जेलर अभिमान से कह रहा था, ‘‘शुक्र मानो हमारी महारानी विक्टोरिया ने इस चिमटे को आग से नहीं तपाया नहीं तो तुम्हारे दोनों स्तन उखाड़ देता।’’ 

उपरोक्त वाक्यों को पढ़ कर क्या हम अंग्रेजों को एक सभ्य कौम कह सकेंगे? एक औरत से ऐसा क्रूर व्यवहार? निश्चय ही निंदनीय है। परन्तु आजाद भारत सरकार ने भी क्या नीरा आर्या जैसी वीरांगना का कोई सत्कार किया? नीरा आर्या का 26 जुलाई 1998 को निधन हो गया परन्तु उनका अंतिम संस्कार भी एक स्वयं सेवी संस्था ने किया।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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