एक विराट शख्सियत थे अटल बिहारी वाजपेयी

Edited By Pardeep,Updated: 17 Aug, 2018 04:27 AM

a great personality was atal bihari vajpayee

विराट व्यक्तित्व अटल बिहारी वाजपेयी। जो भी पत्रकार, राजनीतिज्ञ बीते 6 दशक से दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, जयपुर में सक्रिय रहा है, हो नहीं सकता कि वह इस विराट व्यक्तित्व से अछूता रहा हो। आप चाहे वाजपेयी को आदरणीय मानें या दुश्मन, उनसे प्यार करें या घृणा,...

विराट व्यक्तित्व अटल बिहारी वाजपेयी। जो भी पत्रकार, राजनीतिज्ञ बीते 6 दशक से दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, जयपुर में सक्रिय रहा है, हो नहीं सकता कि वह इस विराट व्यक्तित्व से अछूता रहा हो। आप चाहे वाजपेयी को आदरणीय मानें या दुश्मन, उनसे प्यार करें या घृणा, उनसे सहमत हों या असहमत, उनको अच्छा मानें या बुरा, आप उनको खारिज नहीं कर सकते। यह इस शख्स की जिंदगी की सफलता का सबूत है। अपने को पसन्द नहीं करने वाले घोर विरोधी से भी अपने व्यवहार से सहज संबंध बना लेने की क्षमता भारतीय राजनीतिक शिखर के जिन कुछ गिने-चुने नेताओं में रही है, उनमें अटल बिहारी वाजपेयी का भी नाम है। 

कोई कितनी भी कड़वी बात कहे, उसका वह हंसते हुए जवाब देते। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर उनको गुरुदेव कहते थे लेकिन कई बार वह वाजपेयी जी को ऐसे कड़वे शब्द कहते थे कि वह तिलमिला कर रह जाते थे, पर जवाब सहज शब्दों में देते थे। एक बार वाजपेयी ने जब जार्ज फर्नांडीज का केन्द्रीय मंत्री पद से इस्तीफा ले लिया, तब चन्द्रशेखर ने उनको फोन किया। कहा, क्या गुरुदेव! बलि का बकरा बनाने के लिए जार्ज ही थे, जिस पर वाजपेयी ने कहा था, नहीं-नहीं, चन्द्रशेखर जी, ऐसा नहीं है। कुछ समय बाद वह फिर मंत्रिमंडल में वापस आ जाएंगे। 

एक और घटना चन्द्रशेखर जी से ही जुड़ी हुई है। संसद चल रही थी। चन्द्रशेखर लोकसभा में थे। उधर गुडग़ांव में उनके भोंडसी आश्रम जाने का रास्ता सी.आर.पी.एफ. ने बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया था। (भोंडसी आश्रम जाने का रास्ता सी.आर.पी.एफ. के क्षेत्र से होकर था), इसलिए आश्रम में कोई जा नहीं पा रहा था। आश्रम में रहने वालों ने चन्द्रशेखर के आवास साऊथ एवेन्यू में फोन कर सूचना दी। वहां से किसी लोकसभा सांसद को फोन करके, उसको लोकसभा में जाकर चन्द्रशेखर जी को यह खबर देने के लिए कहा गया। उस सांसद ने लोकसभा में जाकर चन्द्रशेखर जी को यह बात बताई। उसके बाद चन्द्रशेखर जी वहां से उठकर सीधे संसद भवन में प्रधानमंत्री के कमरे में चले गए। वाजपेयी जी वहां बैठे थे। 

उनसे कहा कि आपके गृहमंत्री लालकृष्ण अडवानी ने मेरे भोंडसी आश्रम जाने का रास्ता सी.आर.पी.एफ. से बंद करवा दिया है। मैं वहां जा रहा हूं, उनसे कह दीजिए रोकें। यह कहकर चन्द्रशेखर जी तेजी से बाहर निकल गए। यह सुनकर हैरान वाजपेयी कहते रह गए, चन्द्रशेखर जी, एक मिनट रुकिए, मैं सी.आर.पी.एफ. चीफ को फोन करता हूं, रास्ता खुलवाता हूं और पूछता हूं कि कैसे, किसके कहने पर रास्ता रोका गया। इधर चन्द्रशेखर संसद से बाहर निकल कार में बैठे और सीधे भोंडसी आश्रम निकल गए। वहां गए तो रास्ता खुला मिला और सी.आर.पी.एफ. वालों ने उनसे माफी मांगी। दरअसल उन दिनों अडवानी जी का परिवार में बहू से विवाद चल रहा था और बहू चन्द्रशेखर जी के मित्र की बेटी थी। अडवानी जी को लगता था कि चन्द्रशेखर जी की शह पर बहू परेशान (मुकद्दमा) कर रही है। 

एक घटना और है। केन्द्र में वाजपेयी की सरकार थी। उस समय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.), वाराणसी में एक छात्र की मौत हो जाने के कारण छात्र आंदोलित थे। तब वहां के कुलपति थे गौतम, जिनका कार्यकाल खत्म हो गया था लेकिन उनको दूसरा टर्म देने के लिए फाइल आगे बढ़ा दी गई थी। उस समय डा. मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन विकास मंत्री थे। सपा नेता व तब गाजीपुर के सांसद ओम प्रकाश ने इस मुद्दे को संसद में उठाया था लेकिन डा. जोशी तो गौतम को एक टर्म और देने पर अड़े हुए थे। उसके बाद कुछ सांसदों ने गौतम को दूसरा टर्म नहीं देने की चिठ्ठी तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन को लिखी। 

सपा के तत्कालीन वरिष्ठ नेता व लोकसभा सांसद मोहन सिंह सांसदों के पत्र को लेकर राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के पास गए और उनसे गौतम को बी.एच.यू. में दूसरा टर्म नहीं देने का आग्रह किया, जिसके बाद राष्ट्रपति ने गौतम वाली फाइल को वापस केन्द्र सरकार के पास भेज दिया लेकिन डा. जोशी अड़े हुए थे। वह दोबारा गौतम का ही नाम राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भिजवाने वाले थेे। इसको लेकर ओम प्रकाश चिंतित थे क्योंकि वह बी.एच.यू. छात्रसंघ के महासचिव रह चुके थे और बी.एच.यू. के छात्र उन पर दबाव बनाए हुए थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या करना चाहिए, मैंने कहा कि संसद भवन में प्रधानमंत्री के कमरे में जाइए और वाजपेयी जी के पैर पकड़ लीजिएगा, छोडि़एगा नहीं। बता दीजिएगा कि बी.एच.यू. में एक छात्र की मौत हो गई है, छात्र आंदोलित हैं, कुलपति गौतम को दूसरा टर्म देने का विरोध कर रहे हैं, राष्ट्रपति ने भी गौतम की नियुक्ति वाली फाइल लौटा दी है लेकिन डा. जोशी जी गौतम को दूसरा टर्म देने पर आमादा हैं। 

ओम प्रकाश ने यही किया। वाजपेयी जी ने उनकी पूरी बात सुनी और कहा कि जोशी जी भी गजब करते हैं। मैं देखता हूं। जाओ, बच्चों से कह दो, गौतम को दूसरा टर्म नहीं मिलेगा। यही हुआ। वाजपेयी जी को विपक्षी दलों के युवा सांसद गुरुजी कहते थे क्योंकि ये युवा सांसद जब कोई भी अच्छा काम लेकर जाते थे, वाजपेयी जी मना नहीं करते थे। कभी-कभी कुछ मुद्दों पर प्यार भरी डांट जरूर सुनने को मिलती थी कि तुम लोग मेहनत नहीं कर रहे हो, अध्ययन नहीं कर रहे हो। सपा नेता ओम प्रकाश का कहना है कि एक बार लखनऊ में वाजपेयी जी की सभा थी। उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी और वह (ओम प्रकाश) विधायक थे। 

ओम प्रकाश ने बताया कि उन्होंने व कुछ अन्य सपा विधायकों ने तय किया कि वाजपेयी जी की सभा में नारेबाजी की जाए। इसकी सूचना नेता जी (मुलायम सिंह यादव) को मिल गई। उन्होंने ओम प्रकाश को बुलाया और कहा कि वाजपेयी जी देश के बड़े नेता हैं। उनसे आप लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। आप लोग उनकी सभा में जाइए और चुपचाप बैठकर उनका भाषण सुनिए। उनसे सीखिए कि कैसे भाषण दिया जाता है। किसी मुद्दे पर किस तरह बोला जाता है। यह है वाजपेयी का व्यक्तित्व। यूं ही नहीं अक्खड़ चन्द्रशेखर उनको गुरुदेव कहते थे।-कृष्णमोहन सिंह

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