आतंकी मंसूबे पालने वालों के लिए एक सबक

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2022 05:32 AM

a lesson for the terrorists

गत दिवस अदालत ने 2008 में अहमदाबाद में सीरियल धमाकों के दोषियों को भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में सुनाई गई अब तक की सबसे बड़ी सजा में 49 दोषियों में से 38 को फांसी सुनाई और 11 आखिरी सांस तक सलाखों के पीछे कैद रहेंगे। आतंकियों को लेकर देश में...

गत दिवस अदालत ने 2008 में अहमदाबाद में सीरियल धमाकों के दोषियों को भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में सुनाई गई अब तक की सबसे बड़ी सजा में 49 दोषियों में से 38 को फांसी सुनाई और 11 आखिरी सांस तक सलाखों के पीछे कैद रहेंगे। आतंकियों को लेकर देश में राजनीति किसी से छिपी नहीं है। ऐसे राजनीतिक परिदृश्य में माननीय न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा काबिले तारीफ और एक नजीर है। इससे पहले राजीव गांधी हत्याकांड में एक साथ 26 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। अहमदाबाद बम कांड में 29 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया गया है। 

अहमदाबाद धमाकों के करीब 14 साल बाद मामले में फैसला आया है। 26 जुलाई, 2008 को गुजरात के अहमदाबाद में 70 मिनट के भीतर एक के बाद एक 21 धमाकों से पूरा देश हिल गया था। इन धमाकों में 56 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक घायल हुए थे। बाद में विशेष जांच टीमों के प्रयास से धमाकों में शामिल 78 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इन धमाकों से कुछ ही दिन बाद सूरत में भी 29 बम मिले थे, लेकिन खुशकिस्मती से उनमें से किसी में भी विस्फोट नहीं हुआ। सजा पाने वाले सभी दोषी प्रतिबंधित संगठन स्टूडैंट्स इस्लामिक मूवमैंट ऑफ इंडिया (सिमी) और आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन (आई.एम.) से जुड़े थे। देश की अलग-अलग जेलों में बंद सभी दोषियों ने वीडियो कॉन्फ्रैंसिंग के जरिए अपनी किस्मत का फैसला सुना। आई.एम. ने गुजरात में 2002 में हुए गोधरा दंगों का बदला लेने के लिए आतंक की साजिश रची थी। 

जम्मू-कश्मीर, पंजाब और उत्तर-पूर्वी भारत के राज्यों को छोड़ कर देश के दूसरे हिस्सों में आतंकवादी हमलों की बात करें तो वर्ष 2005 से 2013 के बीच भारत में 39 बड़े आतंकवादी हमले हुए, जिनमें 750 नागरिक मारे गए और 33 जवान शहीद हुए। जबकि 2014 से 2019 के बीच देश में 21 आतंकवादी हमले हुए, जिनमें केवल 4 नागरिकों की मौत हुई। जमीयत के अध्यक्ष अरशद मदनी ने कोर्ट के फैसले पर अविश्वास जताते हुए कहा है कि संगठन दोषी ठहराए गए लोगों के साथ हाई कोर्ट में मजबूती से खड़ा होगा और उन्हें कानूनी सहायता मुहैया कराएगा। अदालत के निर्णय पर अविश्वास व्यक्त करना, अदालत की अवमानना और निरादर के सिवाय कुछ और नहीं है। असल में इससे देशविरोधी ताकतों के हौसले बुलंद होते हैं। विश्व हिंदू परिषद ने तो इसे लेकर जमीयत जैसे संगठनों के खिलाफ  कानूनी कार्रवाई तक की मांग की है। 

जरूरत तो इस बात की है कि इस्लाम को मानने वाले स्वयं आगे आएं और इस दानव की काली छाया से इस्लाम को मुक्त करें और दुनिया को बताएं कि यह मजहब किसी भी रूप में हिंसा की इजाजत नहीं देता। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर आज दुनिया के सभी देश आतंक के खिलाफ  ईमानदारी से आगे आएं तो यह खूनी खेल ज्यादा दिन नहीं टिक सकता, लेकिन राजनीतिक पैंतरेबाजी, पूर्वाग्रह और पाखंडपूर्ण सहानुभूति के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा। इसके लिए धर्म और देश की सीमाओं से परे होकर सोचना ही होगा, तभी आतंकवाद पर निर्णायक चोट संभव है। 

श्रीलंका में जब सीरियल ब्लास्ट करने वाले आतंकी पकड़े गए तो उनके खिलाफ पूरा देश एकजुटता से खड़ा हुआ और वहां के वकीलों ने उन आतंकियों का केस लडऩे से मना कर दिया। लेकिन अपने यहां न्यायिक व्यवस्था पर ही सवाल खड़ा कर देश बांटने की कोशिश हो रही है। चिंताजनक स्थिति यह है कि इसमें कुछ राजनीतिक दल भी संलिप्त हैं, जो आतंकियों के साथ न सिर्फ खड़े रहे हैं, बल्कि इनके नेता आतंकियों के एन्काऊंटर पर आंसू बहाते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि पुलिस और न्यायिक व्यवस्था के अभूतपूर्व प्रयासों से आतंकी अपने अंजाम तक पहुंचे हैं। पुलिस ने बिना किसी चश्मदीद के जांच को आगे बढ़ाते हुए कई राज्यों में फैले इस आतंकी षड्यंत्र के तार ढूंढ निकाले। जांच टीम से जुड़े लोग और जज कई दिनों तक अपने-अपने घर नहीं गए, क्योंकि उन्हें जान से मारने की धमकी मिली थी। उस स्थिति में इन आतंकियों के साथ खड़े रहना देशविरोधी ताकतों की पक्की हिमायत है। 

ऐसे सीरियल ब्लास्ट कहीं न कहीं हमारे खुफिया तंत्र की नाकामी की ओर भी इशारा करते हैं। इतने बड़े षड्यंत्र को आतंकी चुपचाप कैसे अंजाम देने में सफल रहे? 2007 में मीडिया के जरिए संगठन ने भारत में अपनी उपस्थिति का इजहार किया था। इसे गंभीर संकेत मानकर इस दिशा में सतर्क प्रतिक्रिया दी जाती तो शायद अहमदाबाद बम धमाकों को टाला जा सकता था। इसमें कोई शक नहीं है कि जटिल जांच प्रक्रिया और लंबी अदालती कार्रवाई के बाद आया फैसला आतंकी मंसूबे पालने वाले लोगों के लिए सबक है कि अपराधी कितने भी शातिर क्यों न हों, उन्हें एक दिन कानून के हिसाब से सजा मिलती ही है। साथ ही पुलिस प्रशासन को सतर्क रहते हुए ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।-राजेश माहेश्वरी 
 

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