‘चीन के बढ़ते संकट पर प्रधानमंंत्री जी को एक पत्र’

Edited By ,Updated: 14 Nov, 2020 03:51 AM

a letter to the prime minister on china s growing crisis

2014 के पूर्ण बहुमत से भाजपा सरकार बनने के बाद पिछले 6 वर्षों में आपके नेतृत्व में भारत बहुत आगे बढ़ रहा है। प्रत्येक क्षेत्र में प्रशंसनीय काम हो रहे हैं। प्रधानमंत्री का पद संभालने पर आपने अपने प्रथम भाषण में कहा था कि आप शहीदों के सपनों का भारत...

2014 के पूर्ण बहुमत से भाजपा सरकार बनने के बाद पिछले 6 वर्षों में आपके नेतृत्व में भारत बहुत आगे बढ़ रहा है। प्रत्येक क्षेत्र में प्रशंसनीय काम हो रहे हैं। प्रधानमंत्री का पद संभालने पर आपने अपने प्रथम भाषण में कहा था कि आप शहीदों के सपनों का भारत बनाएंगे। मुझे प्रसन्नता है कि आपके नेतृत्व में भारत उस ओर बढ़ रहा है। उन सब उपलब्धियों का जिक्र मैं नहीं करता परन्तु एक उपलब्धि के संबंध में अवश्य कहना चाहता हूं। 

आज से 67 वर्ष पहले डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ ने कश्मीर आंदोलन शुरू किया। पूरे देश से हजारों कार्यकत्र्ताओं ने सत्याग्रह किया। 19 वर्ष की आयु में तब मैंने भी सत्याग्रह किया था और आठ महीने जेल में रहा था। भारतीय जनसंघ के प्रथम अध्यक्ष डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कश्मीर में बलिदान हुआ था। उस सबके बाद भी कश्मीर पूरी तरह से भारत का हिस्सा नहीं बना। मुझे याद है कि कई बार बात होती थी। हम सबको लगता था कि जिस कश्मीर के लिए डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान हुआ, इतना लम्बा संघर्ष किया अब उसमें 370 को हटाना संभव नहीं है। 

कांगड़ा से पहली बार बाहर गया था। जून का महीना और हिसार की आग उगलती गर्मी। पूरा समय बनियान-कच्छे में काटा। जेल की यातनाएं सहीं। उस समय के सारे साथी 370 समाप्त होने की आशा में परलोक चले गए।  मैं उन सब परिचितों में अकेला भाग्यशाली हूं जिसने 67 साल पहले की उस साधना का सफल परिणाम देखा। आपकी दूरदर्शिता और साहस ने उस असंभव को भी संभव करके दिखा दिया। 1953 के सत्याग्रह के मेरी तरह जीवित कुछ लोगों के लिए वह बहुत बड़े आनंद का विषय था। आपके इस प्रकार के कुशल नेतृत्व के कारण भारत गौरवान्वित है। इसी प्रकार के और भी बहुत सी असंभव दिखने वाली समस्याओं का आपने समाधान कर दिखाया है। 

दो और अति आवश्यक विषयों के संबंध में आपसे निवेदन करने के लिए मैं यह पत्र लिख रहा हूं। 1950 में कांग्रेस सरकार द्वारा तिब्बत के संबंध में की गई एक भयंकर भूल को ठीक करने का आज एक अच्छा अवसर है। चीन जब तिब्बत में नरसंहार कर रहा था। विश्व के बहुत से देश यह चाहते थे कि भारत तिब्बत के विषय को राष्ट्रसंघ में उठाए परन्तु उस समय भारत की सरकार ने एक बहुत बड़ा पाप किया और तिब्बत को चीन के अधिकार में जाने दिया। उसी के कारण महामना दलाईलामा जी पिछले लगभग 60 वर्षों से भारत में शरणार्थी बन कर रह रहे हैं। 

उत्तरी सीमा पर चीनी संकट गंभीर होता जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में महामना दलाईलामा जी तथा तिब्बत बस्तियों में पिछले दिनों जासूसी करने का प्रयत्न किया गया। चीन पूरे विश्व के लिए एक संकट बनता जा रहा है और उस संकट से सबसे अधिक खतरा भारत को है। सेना प्रमुख श्री बिपिन रावत ने चीन से सीमा पर बातचीत असफल होने पर युद्ध की आशंका भी बताई है। आज से कई वर्ष पहले नेपोलियन के कहे ये शब्द सार्थक होते दिख रहे हैं। ‘‘चीन एक सोया हुआ अजगर है। इसे सोने दो-यह जाग गया तो पूरी दुनिया को पछताना पड़ेगा।’’ 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण के बाद मैंने भारत-चीन संबंधों का और चीन-तिब्बत के विषय का गहरा अध्ययन किया था। उस संबंध में मेरी पुस्तक ‘हिमालय पर लाल छाया’ उस समय ङ्क्षहदी में सबसे पहला महत्वपूर्ण प्रकाशन था। इस विषय पर मैं आज भी गहराई से पढ़ता और सोचता हूं। 

इस पत्र द्वारा मैं बड़ी नम्रता से आपको यह सुझाव दे रहा हूं कि वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में भारत को दो महत्वपूर्ण काम अतिशीघ्र करने चाहिएं। महामना दलाई लामा जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाए। विश्व का सबसे बड़ा सम्मान नोबेल पुरस्कार उन्हें मिल चुका है और भी बहुत से देशों के सर्वोच्च सम्मान उन्हें मिले हैं। महामना दलाईलामा जी इस समय विश्व में सबसे अधिक सम्मानित आध्यात्मिक नेता हैं। पिछले लम्बे समय से वे हिमाचल प्रदेश भारत में रह रहे हैं। वे भारत को अपना गुरु कहते हैं। 2014 में मैं संसद में सब पाॢटयों के संयुक्त तिब्बत मंच का अध्यक्ष था। तब मंच ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास करके महामना दलाईलामा जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का आग्रह किया था। उस प्रस्ताव पर संसद के 180 सांसदों ने हस्ताक्षर किए थे। एक शिष्टमंडल ने आपसे मिलकर वह ज्ञापन दिया था। 

भारत को तिब्बत के विषय को राष्ट्रसंघ में उठाना चाहिए। इतिहास में सदियों से तिब्बत एक स्वतंत्र देश रहा। 1914 में अंग्रेजों ने भारत-चीन सीमा के संबंध में शिमला समझौता करवाया था। उसमें भारत और चीन के साथ तिब्बत ने एक स्वतंत्र देश के रूप में भाग लिया था। इंटरनैशनल कमिशन ऑफ जूरिस्ट के अनुसार चीन ने तिब्बत में नरसंहार किया था। वह सर्वोत्तम समय था जब भारत को तिब्बत का विषय राष्ट्रसंघ में उठाना चाहिए था। अमरीका जैसे बहुत से देश यह चाहते थे। राष्ट्रसंघ में प्रबल समर्थन मिलता, तिब्बत बच जाता और भारत की सीमा चीन के साथ कभी न मिलती। उस समय कांग्रेस सरकार ने भयंकर गलती की। 

आज चीन विश्व भर में अकेला पड़ रहा है। अमरीका जैसा देश चीन के संकट से ङ्क्षचतित है। विश्वभर के लगभग सभी प्रमुख देश चीन से आशंकित हैं और उसे नियंत्रित करना चाहते थे। यह परिस्थिति भारत के लिए बहुत अधिक अनुकूल है। जिसमें महामना दलाईलामा जी को भारत रत्न देकर और राष्ट्रसंघ में तिब्बत के विषय को उठाकर चीन को विश्व में और भी अधिक अकेला किया जा सकता है। 

तिब्बत का नरसंहार इक्कीसवीं सदी की सबसे दुर्भाग्यशाली त्रासदी है। तिब्बत इतिहास में सदा एक स्वतंत्र देश रहा। एक धार्मिक शांतिप्रिय देश तिब्बत ने कभी किसी देश की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा। विश्व को महात्मा बुद्ध का शांति का संदेश दिया। उस तिब्बत में चीन ने नरसंहार किया। लाखों हत्याएं कीं। तिब्बत में धर्म संस्कृति व नस्ल को भी समाप्त कर रहा है। आज भी वे सब अत्याचार हो रहे हैं। शांतिप्रिय बौद्ध अनुयायी हजारों की संख्या में वहां आत्मदाह कर चुके हैं। 

जब भारत इस विषय को राष्ट्रसंघ में उठाएगा तो पूरा सभ्य विश्व प्रबल समर्थन देगा। चीन विश्व में अकेला तो आज भी पड़ गया है। राष्ट्रसंघ में तिब्बत विषय उठाने से चीन पूरी तरह बेनकाब हो जाएगा। मेरा आपसे बड़े आग्रह से निवेदन है कि भारत को इस सुनहरी मौके को हाथ से निकलने नहीं देना चाहिए।-शांता कुमार(पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)

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