उपचुनावों में हार को लेकर भाजपा-सहयोगी दलों में भारी हलचल

Edited By Pardeep,Updated: 01 Jun, 2018 04:03 AM

a lot of bitter opposition in the bjp allies over defeat in bypolls

कर्नाटक में 15 मई को घोषित विधानसभा के चुनाव परिणामों और उसके बाद 23 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में कुमार स्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष ने उपस्थित होकर अपनी एकता का भारी प्रदर्शन किया। इसके बाद 4 लोकसभा व 10 विधानसभा सीटों पर...

कर्नाटक में 15 मई को घोषित विधानसभा के चुनाव परिणामों और उसके बाद 23 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में कुमार स्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष ने उपस्थित होकर अपनी एकता का भारी प्रदर्शन किया। 

इसके बाद 4 लोकसभा व 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव तथा कर्नाटक के आर.आर. नगर विधानसभा क्षेत्र के चुनाव के लिए 28 मई को मतदान हुआ। सभी को इनके परिणामों की उत्सुकता से प्रतीक्षा थी क्योंकि इनमें उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठिïत कैराना लोकसभा सीट भी शामिल थी जहां भाजपा उम्मीदवार मृगांका सिंह के मुकाबले पर रालोद ने तबस्सुम हसन को खड़ा किया था। सपा, बसपा व कांग्रेस ने एकता दिखाते हुए उनके विरुद्ध कोई उम्मीदवार नहीं उतारा और तबस्सुम हसन ने इसमें मृगांका सिंह को भारी अंतर से हरा कर भाजपा से यह सीट छीन ली। 

महाराष्ट्र के पालघर में तो भाजपा अपने नाराज गठबंधन सहयोगी शिव सेना के प्रत्याशी को हरा कर यह सीट बचाने में सफल रही परंतु गोंदिया-भंडारा की सीट राकांपा ने उससे छीन ली। अलबत्ता नागालैंड में भाजपा की सहयोगी एन.डी.पी.पी. अपनी सीट बचाने में अवश्य सफल रही है। विधानसभा उपचुनावों में उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब में भाजपा तथा इसके गठबंधन सहयोगियों जद (यू) व शिअद को भारी झटका लगा। उत्तर प्रदेश की नूरपुर सीट सपा ने भाजपा से छीन ली तथा बिहार में राजग सहयोगी जद (यू) को हरा कर राजद ने जोकीहाट सीट जीत ली। 

उत्तराखंड के थराली में भाजपा, बंगाल के महेशतला में तृणमूल कांग्रेस, झारखंड में गोमिया व सिल्ली सीटों पर जे.एम.एम., केरल में चेंगनूूर में माकपा व महाराष्ट्र के पलुस एवं मेघालय के अमपाती में कांग्रेस ने अपनी सीटों पर कब्जा कायम रखा। कैराना में इस हार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ की विजेता वाली छवि को भी गलत सिद्ध कर दिया तथा वहां योगी का प्रभाव मात्र 20 प्रतिशत रह गया है। इनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से प्रदेश में 5 सीटों पर हुए 3 लोकसभा और 2 विधानसभा उपचुनावों में भाजपा सिर्फ एक सीट पर ही जीत सकी है। 

जहां तक पंजाब के शाहकोट विधानसभा उपचुनाव का संबंध है, यह ग्रामीण सीट शुरू से ही शिअद का गढ़ रही है। अत: यहां विजय का अंतर कम रहने की आशा थी परंतु शिअद प्रत्याशी 38,802 मतों के अंतर से हारा। बंगाल में हाल ही में सम्पन्न पंचायत चुनावों में तृणमूल कांग्रेस पर सरकारी मशीनरी और स्थानीय पुलिस के इस्तेमाल के आरोप लगाए गए थे जिसे देखते हुए इन चुनावों में वहां केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की गई और इसके बावजूद वहां तृणमूल कांग्रेस की सफलता दर्शाती है कि अभी भी वह वहां अपना मजबूत जनाधार कायम रखे हुए है। 

केरल में भाजपा तथा इसके सहयोगी दलों ने हिन्दुओं के दमन जैसे मुद्दे उठाए लेकिन वहां भाजपा के पिछडऩे से स्पष्टï है कि अभी केरल और बंगाल में इसे अपने पांव जमाने में समय लगेगा। बेशक 2014 में केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद से भाजपा ने 14 राज्य जीते हैं लेकिन उक्त चुनाव नतीजों ने विपक्षी एकता को नवजीवन दिया है और भाजपा को यह चेतावनी दी है कि उसके लिए आगे का मार्ग कठिन है और यदि विपक्ष एक साथ आया तो 2019 में नरेंद्र मोदी को हराना संभव है। अभी तो विपक्ष में पूरी एकता हुई भी नहीं है और यदि पूरी एकता होती तो भाजपा के लिए परिणाम शायद इससे भी बुरा हो सकता था। लिहाजा 2019 का साल भाजपा के लिए बड़ी चुनौती लेकर आने वाला है। 

इस बीच चुनाव परिणामों को लेकर भाजपा व सहयोगी दलों में घमासान शुरू होने के संकेत भी मिलने लगे हैं। बिहार के जोकीहाट उपचुनाव में जद (यू) ने अपनी हार का ठीकरा पैट्रोल व डीजल की बढ़ती कीमतों पर फोड़ा है। जद (यू) के महासचिव के.सी. त्यागी के अनुसार, ‘‘उप-चुनाव के नतीजे राजग के लिए चिंता का विषय हैं। राजग में सभी सहयोगी अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 2 बड़े दल एक साथ आ गए हैं। इसलिए वहां के नतीजे खतरे की घंटी बन सकते हैं।’’ इसी प्रकार शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने इस पराजय के बाद पालघर में मतगणना में भारी गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए दोबारा काऊंटिंग की मांग करते हुए कहा है कि भाजपा ने पिछले 4 साल में बहुमत गंवा दिया है और भाजपा को अब दोस्त की जरूरत नहीं रही।—विजय कुमार 

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