Edited By Pardeep,Updated: 14 Apr, 2018 03:03 AM
गत दिनों एस.सी./एस.टी. वर्ग बारे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मद्देनजर दलितों द्वारा किए गए ‘भारत बंद’ से भाजपा के विरुद्ध एक बड़ी तथा सफल एकजुटता सामने आई है। इस बंद के दौरान सबसे अधिक तीव्र तथा हिंसक प्रदर्शन भाजपा शासित राज्यों में ही हुए मगर...
गत दिनों एस.सी./एस.टी. वर्ग बारे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मद्देनजर दलितों द्वारा किए गए ‘भारत बंद’ से भाजपा के विरुद्ध एक बड़ी तथा सफल एकजुटता सामने आई है। इस बंद के दौरान सबसे अधिक तीव्र तथा हिंसक प्रदर्शन भाजपा शासित राज्यों में ही हुए मगर केन्द्र तथा भाजपा के शासन वाली राज्य सरकारें इसका पहले से अनुमान लगाने में असफल रहीं। उन्होंने इस बंद को गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया था।
उनको यह अनुमान ही नहीं था कि जो विरोधी ताकतें लम्बे समय से दलितों में भाजपा विरोधी आक्रामकता पैदा करने की कोशिश में लगी हुई थीं, वे इस बंद के समर्थन में इस तरह से आ जुटेंगी। हालांकि भाजपा अथवा संघ का दलित विरोधी होना स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि संघ हिंदू संगठन है और यह समाज में जाति, भेदभाव का अंतर दूर करना चाहता है। वास्तव में भाजपा एक ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिसका विचारक आधार संघ रहा है और इसको दलितों, आदिवासियों की वोटें भी मिलती रही हैं।
मोदी सरकार ने देश में बनी अब तक की सभी सरकारों के मुकाबले डा. अम्बेदकर को अधिक महत्व दिया है और दलितों, आदिवासियों के लिए योजनाएं भी लाई है, मगर अब 2019 के आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए मोदी-भाजपा विरोधियों द्वारा दलितों के एक बड़े वर्ग में यह धारणा पैदा की जा रही है कि भाजपा उनकी विरोधी है। इस मामले में कोई एन.जी.ओ. अथवा दलितों के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टियां नहीं बल्कि भाजपा की सभी विरोधी ताकतें एक हैं। यदि आने वाले आम चुनावों की बात करें तो इनमें अभी एक वर्ष बाकी है।
चुनौतियों का सही मूल्यांकन करने और स्थिति को सम्भालने के लिए पार्टी के पास काफी समय है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को चाहिए कि वे आगे आएं तथा नाराज कार्यकत्र्ताओं, समर्थकों की जिला स्तरीय बैठकें लें, उनकी शिकायतें सुनें और उन शिकायतों को दूर करने का भरोसा दें। उनके साथ केन्द्रीय तथा राज्य के मंत्रियों की बैठकें भी करवाई जाएं क्योंकि भाजपा तथा संघ परिवार के कार्यकत्र्ताओं की शिकायत है कि वे अपनी ही सरकारों द्वारा नजरंदाज किए जा रहे हैं। यह बात भाजपा के लिए सबसे अधिक चिंताजनक है कि उसके कार्यकत्र्ता भाजपा विरोधी अभियान के विरुद्ध खुलकर सामने क्यों नहीं आए?
ऐसे लोग हर क्षेत्र में हैैं जिन्होंने 2014 में भाजपा को जिताने के लिए जी-तोड़ मेहनत की मगर सरकार बनने के बाद चार वर्षों में किसी ने उनको नहीं पूछा। मोदी सरकार को लेकर कुछ समय पहले तक जो सकारात्मक वातावरण देश में बना था, वह तेजी से बदल गया और इसको हर कोई महसूस भी कर रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए तथा देश का विकास ठप्प करने के लिए जिम्मेदार भी ठहराया। भाजपा को अब ऐसे लोग तलाश करने चाहिएं जो इसके लिए दबाकर मेहनत कर रहे थे लेकिन बाद में उन्हें दरकिनार कर दिया गया। यदि ये लोग दोबारा सक्रिय हो जाएं तो भाजपा इनके सहारे विरोधियों का मुकाबला करने में सक्षम हो सकेगी। मगर जहां तक इस आरोप की बात है कि भाजपा दलित विरोधी है, पार्टी को शीघ्र इससे छुटकारा पाना पड़ेगा नहीं तो आगामी चुनावों में भगवा पार्टी को यह आरोप महंगा पड़ सकता है।