मोदी 2.0 में होगी एक ‘नई सोच’ की शुरुआत

Edited By ,Updated: 12 Aug, 2019 02:51 AM

a new thinking will begin in modi 2 0

अपने दूसरे कार्यकाल में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार से लोगों की भारी उम्मीदों बारे अवगत हैं। यू.पी.ए. दौर को पीछे छोड़ते हुए (या नेहरू के दौर को भी पीछे छोडऩे) से भी जमी बर्फ नहीं पिघलेगी। उसे अंतत: प्रदर्शन और काफी अधिक दक्षता दिखाने की...

अपने दूसरे कार्यकाल में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार से लोगों की भारी उम्मीदों बारे अवगत हैं। यू.पी.ए. दौर को पीछे छोड़ते हुए (या नेहरू के दौर को भी पीछे छोडऩे) से भी जमी बर्फ नहीं पिघलेगी। उसे अंतत: प्रदर्शन और काफी अधिक दक्षता दिखाने की आवश्यकता होगी। 

नौकरशाही पर भारी भरोसा करने के लिए जाने जाने वाले मोदी ने महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे, प्रशासनिक सुधार और क्षमता विकास में परिवर्तन की अपनी खोज को जारी रखा है। प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) निर्णय लेने की प्रक्रिया के शीर्ष पर बना हुआ है। बाकी नौकरशाही पर इसका प्रभुत्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग के अचानक  से चले जाने से दोहराया गया है। इसने बाबुओं को हर जगह एक स्पष्ट संकेत भेजा है कि मोदी 2.0 उन लोगों के लिए सहन कर पाने की संभावना कम है जो दीवार पर नई ईबारत को पढऩे में पूरी तरह से विफल रहे हैं। 

अधिकांश का मानना है कि प्रधानमंत्री स्थिरता के लिए जोर देंगे। उन्होंने अपने पी.एम.ओ. के कर्मचारियों को बनाए रखा है और उनके प्रमुख सहयोगी उनके पक्ष में हैं। पी.एम.ओ. का कामकाज पहले जैसा है लेकिन इसके बारे में एक निश्चितता या विश्वास है जो अब अनुभव के साथ आता है। एक कानाफूसी हवा में घूम रही है कि हमेशा की तरह, शीर्ष स्तर के बदलावों के बारे में सिर्फ एक महीने की दूरी है। इस बारे में नए अपडेट्स के लिए यहीं पर नजर बनाए रखें। 

मोदी के काम करने का अंदाज स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष पहुंच, प्रक्रियाओं को सरल बनाने और निर्णय लेने व कार्यान्वयन में देरी को दूर करने के बारे में है। वह उम्मीद करते हैं कि नौकरशाह रचनात्मक रूप से सोचें और जोखिम उठाएं। ऐसे संकेत मिलते हैं कि एक नई कार्मिक प्रबंधन नीति को बंद करने की बात कही गई है, जहां कर्मचारियों को शासन में विश्वास और प्रशासन की प्राथमिकताओं के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है जैसा कि उनके पहले कार्यकाल के दौरान हुआ था। 

यह इस तथ्य के बावजूद है कि पी.एम. के पहले कार्यकाल ने पूरी नौकरशाही को हिला दिया था जिसमें हर स्तर पर मूल्यांकन प्रारूप, कार्यालयों और फाइलों का डिजिटलीकरण, ङ्क्षफगर-पिं्रट से उपस्थिति दर्ज होना, थोक में लगातार फेरबदल और अपने राज्यों के अधिकारियों की समय से पहले घर वापसी शामिल थे। 2014 में केन्द्र में मोदी के सत्ता संभालने के बाद अधिकारियों को लेकर जो भी कदम उठाए गए हैं, अधिकारियों ने उनको लेकर कभी सोचा भी नहीं था। ऐसे में अब यह कहना मुश्किल है कि नए बदलावों को लेकर अधिकारियों को क्या करना चाहिए। 

दृष्टिकोण में बदलाव की उम्मीद
इस प्रकार, मोदी के पहले कार्यकाल के दृष्टिकोण में बदलाव की उम्मीद है। मतदाताओं द्वारा उन्हें दिए गए विशाल जनादेश के साथ, पी.एम. मोदी नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे शानदार पूर्ववर्तियों की लीग में शामिल हो गए। उनकी तरह, मोदी भी नए विचारों की तलाश करके और उन्हें लागू करने के तरीकों और साधनों की खोज करके इतिहास बनाना पसंद कर सकते हैं। 

किसी भी मामले में, पी.एम. अब अपने पहले कार्यकाल की तुलना में नौकरशाही से अधिक परिचित हैं। इस बार नमो का एजैंडा 2022 तक अर्थव्यवस्था और राजनीति दोनों में उल्लेखनीय बदलावों के माध्यम से अपने प्रशासन की एक अलग पहचान सुनिश्चित करना है जब राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे करने जा रहा है। जन-समर्थक विधानों का जवाबदेह और कुशल कार्यान्वयन भारत को अगले स्तर तक ले जाने का एकमात्र तरीका है और मोदी रास्ता दिखाने के इच्छुक हैं।-दिल्ली का बाबू दिलीप चेरियन
 

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