एक ऐसा भाषण जो मुझे देना चाहिए था

Edited By ,Updated: 07 Aug, 2022 05:09 AM

a speech i should have given

श्रीमान चेयरमैन, यह बहस कुछ दिन पूर्व होनी चाहिए थी। मैं संक्षेप में फर्क समझने में असफल हुआ कि एक विचार-विमर्श जोकि नियम 267 के अंतर्गत है तथा अन्य नियम के बीच में क्या फर्क है? सरकार हठी थी। लोगों ने इसके अभिमान के लिए जिम्मेदार

श्रीमान चेयरमैन,
यह बहस कुछ दिन पूर्व होनी चाहिए थी। मैं संक्षेप में फर्क समझने में असफल हुआ कि एक विचार-विमर्श जोकि नियम 267 के अंतर्गत है तथा अन्य नियम के बीच में क्या फर्क है?
सरकार हठी थी। लोगों ने इसके अभिमान के लिए जिम्मेदार ठहराया। आइए मूल्य वृद्धि पर बहस करते हैं। यह अर्थव्यवस्था की हालत पर बहस नहीं है। यदि इस पर बहस होती तो आर्थिक प्रबंधन के बारे में सैंकड़ों चीजें थीं जो कही जानी चाहिए थीं। शायद इस सरकार के कुप्रबंधन-जोकि बदनाम नोटबंदी के दौरान देखे गए। 

कीमतें उछाल ले रही हैं। मूल्य वृद्धि लोगों को त्राहि-त्राहि करने पर मजबूर कर रही है। विशेष तौर पर गरीब तथा मध्यम श्रेणी के लोगों के लिए उपभोग तथा बचत में गिरावट आई है। घरेलू ऋण ऊपर की ओर बढ़ रहा है तथा महिलाओं और बच्चों में विशेष तौर पर कुपोषण में वृद्धि हुई है। दुख की बात यह है कि सरकार इन तथ्यों को मानने के लिए तैयार नहीं है। कल मैं यह सुनकर डर गया कि हमारी माननीय वित्त मंत्री ने संसद के दूसरे हाऊस में कहा कि जी.एस.टी. कीमतों में वृद्धि से लोग प्रभावित नहीं हुए! ऐसा बयान एक साधारण टैस्ट के अंतर्गत आता है जिसका खुलासा मैं अपनी दखलअंदाजी की समाप्ति में करूंगा। 

कारण
मैं उम्मीद करता हूं कि सदन में बहस गलियों से पगडंडी तक भूल-भुलैयां में नहीं ले जाती। एक मुख्य ‘मैं-मैं तू-तू’ बहस से हमें कुछ नहीं मिलने वाला। मैं सरकार तथा अन्य सदस्यों से आग्रह करता हूं कि असहनीय मूल्य वृद्धि की वास्तविकता को स्वीकार करें तथा प्रासंगिक सवाल उठाएं कि सरकार मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लेने के लिए कौन-से पग उठा रही है। 
शुरूआती बिंदू वर्तमान मुद्रास्फीति के कारणों की पहचान करना है। मुझे वित्तीय घाटे के साथ अपनी शुरूआत करनी चाहिए। 

हम जानते हैं कि बड़ी और वृद्धि पा रहा वित्तीय घाटा मूल्यों को प्रभावित करता है। मेरे पास इतना समय नहीं कि मैं उनका व्याखान कर सकूं। इस वर्ष के बजट में सरकार ने वित्तीय घाटा अनुमानित 6.4 प्रतिशत अथवा 16,61,196 करोड़ रखा। अप्रैल-जून में वित्तीय घाटा 3,51,871 करोड़ को छू गया। हम जानते हैं कि सरकार खर्च को कम करके आंकती है और इसके लिए बजट में कुछ नहीं किया गया। क्या सरकार वित्त को भी कम करके आंकती है? क्या सरकार 6.4 प्रतिशत की दर वाला वित्तीय घाटा नियंत्रण करने के योग्य हुई है? हमें एक विशेष जवाब चाहिए। 

मानव निर्मित और कारण
अगला बिंदू वर्तमान लेखा घाटा है जिसे सी.ए.डी. कहा जाता है। सी.ए.डी. अप्रैल-जून में 30 बिलियन अमरीकी डालर के निकट था। वहीं जुलाई में व्यापार घाटा 31 बिलियन अमरीकी डालर था। यदि पूरे वर्ष के लिए सी.ए.डी. 100 बिलियन डालर को पार कर गई तो इसके तबाहकुन नतीजे होंगे। सरकार को इस सदन को बताना चाहिए कि वह सी.ए.डी. के बारे में क्या प्रस्ताव रखती है। फिर, श्रीमान चेयरमैन मैं एक विशेष जवाब चाहता हूं। तीसरी और हल्की ब्याज दर हम जानते हैं कि आर.बी.आई. द्वारा पॉलिसी दर तय की जाती है। सरकार ने मुद्रा पॉलिसी कमेटी के लिए 3 सदस्यों को नामित किया है। सरकार के सचिव आर.बी.आई. बोर्ड में हैं इसलिए सरकार यह निवेदन नहीं कर सकती कि इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। क्या सरकार ब्याज दरों की भविष्यवाणी हमारे साथ सांझा करेगी? 

चौथा बिंदू आपूर्ति पक्ष का है। कुछ समय के लिए क्योंकि उदारवादी निर्यात नकारे गए हैं तो सरकार घरेलू उत्पादन तथा सप्लाई बढ़ाने के लिए क्या प्रयास कर रही है? एम.एस.एम.ईज. गहरे संकट में है तथा उनकी मदद तब तक नहीं की जा सकती जब तक वे खुद अपनी मदद न करे। बड़ी कम्पनियां अधिक से अधिक लाभ कमाने में रुचि रखती हैं। इसी कारण वे कृत्रिम रूप से विवश होकर सप्लाई रखेंगी। कारोबार जी.एस.टी. कानूनों तथा दरों से प्रभावित हुआ है। मेरा सवाल यह है कि वस्तुओं तथा सेवाओं की अधिक सप्लाई के लिए सरकार की क्या करने की इच्छा है? 

मेरी सूची में अंतिम आइटम वह है जिसने लोगों को ज्यादातर समस्याओं में डाला है। यह आइटम सरकार की टैक्स पॉलिसी है। मैं सरकार को वास्तविक पाप के बारे में बताता हूं जिसने मुद्रास्फीति की आग में और घी डालने का काम किया है। पैट्रोल तथा डीजल पर असहनीय कर लगाए गए। सरकार ने तेल कम्पनियों से करों, अधिशेष और डिवीडैंड से 26,00,000 करोड़ की भारी-भरकम राशि एकत्रित की। यह सरकार निर्दयी और गरीबों के खिलाफ है। 

यह सरकार 6 वर्षीय बच्ची कृति दुबे का दर्द भी महसूस नहीं कर सकती जिसकी मां ने उसे उस समय डांटा जब उसने एक पैंसिल और पैन की मांग अपनी मां से कर डाली। उसकी मां शायद अपनी बेटी के लिए पैंसिल भी खरीदने के काबिल न थी। यदि इस सरकार का दिल और दिमाग है तो इसे तत्काल ही पैट्रोल, डीजल, एल.पी.जी. की कीमतों को कम करना होगा और साथ ही जीवनोपयोगी जरूरी वस्तुओं पर कर कम करने होंगे। 

श्रीमान चेयरमैन मुझे एक प्रस्ताव के साथ यह भाषण बंद करना होगा जिसका जिक्र पहले कर चुका हूं। आप श्रीमान चेयरमैन, माननीय वित्त मंत्री तथा मैं हम तीनों-लोगों से पूछें कि क्या वह ईंधन की कीमतों, एल.पी.जी. की कीमतों तथा जी.एस.टी. दरों से प्रभावित नहीं हुए। मैं लोगों के फैसले की पालना करूंगा और उम्मीद करता हूं कि एक आम आदमी के फैसले की पालना वित्त मंत्री करेंगी।-पी.चिदम्बरम

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