एक कहानी दो अलग-अलग व्यक्तियों की

Edited By ,Updated: 23 Sep, 2022 05:29 AM

a story of two different people

गत सप्ताह 2 व्यक्तियों, एक महिला तथा एक पुरुष, ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। महिला, मंजरी जरूहार एक सेवानिवृत्त आई.पी.एस. अधिकारी तथा मेरी बहुत प्रिय मित्र हैं। पुरुष, अरविंद केजरीवाल

गत सप्ताह 2 व्यक्तियों, एक महिला तथा एक पुरुष, ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। महिला, मंजरी जरूहार एक सेवानिवृत्त आई.पी.एस. अधिकारी तथा मेरी बहुत प्रिय मित्र हैं। पुरुष, अरविंद केजरीवाल एक प्रमुख राजनीतिज्ञ हैं। मैं महिला से शुरूआत करूंगा क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री खुद देश की प्रगति सुनिश्चित करने के लिए भारतीय महिलाओं की भूमिका को और महत्वपूर्ण बनाने की बात करते हैं। 

क्या एक महिला आई.पी.एस. अधिकारी पुरुषों के पुलिसिंग जगत में फिट होकर अपराधियों को नियंत्रित कर सकती है? उत्तर है ‘हां’। मैं पहली बार 1986 में मंजरी से मिला था। वह आई.पी.एस. के बिहार काडर में एक युवा पुलिस अधीक्षक थीं। मैं केंद्रीय गृह मंत्रालय में एक डैस्क जॉब कर रहा था। यह बिना वर्दी के मेरी पहली तथा अंतिम नियुक्ति थी। 

मुझे यह ड्यूटी मेरे बॉस केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अरुण नेहरू ने हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में एक स्टाफ असाइनमैंट के लिए एक उपयुक्त महिला आई.पी.एस. अधिकारी की पहचान करने के लिए लगाई थी। डायरैक्टर ए.ए. अली ने इसके लिए निवेदन किया था। सरकार को इस निवेदन में गुणवत्ता दिखाई दी और यह काम मुझ पर छोड़ दिया गया। 

मैंने किरण बेदी से पूछा कि क्या वह इच्छुक हैं? तुरन्त जवाब आया- ‘न’। उनके इंकार ने मुझे सिविल लिस्ट का अध्ययन करने तथा महिला अधिकारियों के नामों पर नजर डालने के लिए बाध्य किया। बिहार काडर में मंजरी जरूहार का रिकार्ड वास्तव में प्रभावशाली था। उन्हें चुनने की एक अतिरिक्त वजह यह थी कि उनका विवाह उसी आई.पी.एस. बैच के एक सहयोगी काडर के व्यक्ति से हुआ था। राकेश जरूहार का रुझान शोध तथा स्कॉलरशिप की ओर था। यह जोड़ी आदर्श रूप से प्रतिष्ठित पुलिस ट्रेङ्क्षनग संस्थान के अनुकूल थी। अत: मैंने बिहार के डी.जी.पी. से बात की, जो अनमने ढंग से अपने दो अच्छे अधिकारियों को अलग करने के लिए सहमत हो गए। 

इसके बाद मैं मंजरी से दो-एक बार मिला जब मैं अकादमी में किसी काम के लिए गया। वर्षों बाद जब मैंने सुना कि वह सेवा से रिटायर हो गई हैं, मैंने उनसे फोन पर बात की तथा उन्हें देश में भारतीय संगीत उद्योग के आई.पी.आर. प्रोटैक्शन आप्रेशन्स का नेतृत्व करने के लिए मना लिया। तब से हम एक-दूसरे के सम्पर्क में हैं। मंजरी का मुम्बई में रहता एक बेटा है। जब भी वह अपने पोते से मिलने के लिए आती हैं, मेरी पत्नी और मुझसे बात करती हैं। 

एक सप्ताह या एक पखवाड़ा पूर्व उन्होंने दिल्ली से मुझे अपनी पुस्तक ‘मैडम सर’ मुम्बई में रिलीज करने के लिए फोन किया। उन्होंने मेरे अवलोकन के लिए एक प्रति भेजी। मैं अपनी आयु व स्वास्थ्य के कारण पुस्तक रिलीज कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सका, मगर मुझे वास्तव में पुस्तक पढ़कर मजा आया। मेरे विचार में मंजरी एक ऐसी अधिकारी हैं जैसा कि एक अच्छे पुलिस अधिकारी को होना चाहिए। गलत तरह की पुलिस कार्रवाइयों की मांग करने वाले राजनीतिज्ञों, भीड़ों के साथ जिस तरह से वह निपटीं, देश के सभी पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में इस पुस्तक को पढऩा अनिवार्य बना देता है। 

महाराष्ट्र के आई.पी.एस. काडर के उत्कृष्ट पुलिस अधिकारी सतीश साहनी आने वाले सप्ताहांत में मुम्बई में मंजरी की स्मृतियों को जारी करेंगे। मंजरी सच से विवाहित हैं। वह कुछ भी दिल में नहीं रखतीं, भारतीय विदेश सेवा के एक अधिकारी के साथ अपनी पहली असफल शादी सहित। इसके बाद बिहार से ही एक आई.पी.एस. सहयोगी के साथ एक अत्यंत सफल विवाह ने उन्हें एक वरिष्ठ पुलिस कर्मी के साथ-साथ 2 छोटे लड़कों की मां की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने को बाध्य किया। उन्होंने वह टैस्ट भी पास कर लिया। 

जब उन्होंने पहली बार पटना स्थित डी.जी.पी. के कार्यालय में ड्यूटी के लिए रिपोर्ट किया, पुलिस प्रमुख प्रत्येक पुलिस अधिकारी के सामने आने वाली मुश्किलों से निपटने में एक महिला की क्षमता बारे संदिग्ध थे। मंजरी ने उन्हें तथा अपने सभी शीर्ष अधिकारियों को इस मायने में गलत साबित कर दिया। उन्होंने जनता की नजरों में खुद को एक सक्षम तथा स्पष्टवादी व्यक्ति के तौर पर स्थापित किया जो अपने किसी भी पुरुष सहयोगी जितनी ही सक्षम (यदि अधिक सक्षम नहीं) हैं। इस पुरुष आधिपत्य वाले व्यवसाय में महिला अधिकारियों को लेकर मेरा अपना अनुभव यह है कि ङ्क्षलग अधिक मायने नहीं रखता, अंतत: व्यक्ति का व्यवहार तथा कारगुजारी मायने रखती है। और इस परीक्षा में मंजरी बहुत ऊंचे कद के साथ उत्तीर्ण हुईं। 

एक अन्य व्यक्ति जिसने गत सप्ताह तरंगें पैदा कीं, ‘आप’ सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल थे। एक प्रमुख अंग्रेजी समाचार चैनल ने लगातार 3 शामों को उन्हें आमंत्रित किया जिसमें पत्रकारों तथा दर्शकों ने उनसे सीधे प्रश्र किए। दर्शकों में मुख्य रूप से युवा थे जो 19-20 की उम्र के थे। उनके द्वारा चतुराईपूर्ण दिए गए उत्तरों की लगभग सभी ने प्रशंसा की। ऐसे ही एक प्रश्र ने मुझे काफी प्रभावित किया।

मैं उनसे पूछा गया सटीक प्रश्र भूल गया हूं लेकिन केजरीवाल चतुराई से सीधा प्रश्र टाल गए और दर्शकों का ध्यान मोदी शासन की उन राज्यों में सरकारें बनाने की आदत की ओर स्थानांतरित कर दिया जहां वह मतपेटी के माध्यम से नहीं जीतीं बल्कि विधायकों की खरीद-फरोख्त या उन्हें अपने पाले में करने के लिए उन पर जोर-आजमाइश की। ई.डी., सी.बी.आई. या आयकर की जांच का सामना करने की पर्याप्त संभावनाएं होती हैं। जिस चीज ने मेरा ध्यान खींचा वह यह कि इन युवा दर्शकों ने बिना किसी हिचकिचाहट के उनसे अपनी सहमति जताई।

मैं अरविंद केजरीवाल से केवल एक बार करीब 20 वर्ष पहले मिला था। वह तब दिल्ली में नियुक्त आयकर अधिकारी थे। पूर्व कैबिनेट सचिव बी.जी. देशमुख पब्लिक कंसर्न फॉर गवर्नैंस ट्रस्ट (पी.सी.जी.टी.) नामक मुम्बई स्थित एक एन.जी.ओ. के संस्थापक चेयरमैन थे। उन्होंने अरविंद को ट्रस्टियों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया तथा हम कुछ लोग इस युवा व्यक्ति को सुनने के लिए मुम्बई में वर्ली सी-फेस पर राज मोहन गांधी के फ्लैट कुमारम पर एकत्र हुए थे। केजरीवाल ने बताया कि कैसे उन्होंने बिना रिश्वत दिए पैनकार्ड तथा रिफंड आर्डर प्राप्त करने के लिए लोगों की मदद के लिए दिल्ली के आयकर कार्यालय के बाहर फुटपाथ पर एक मेज-कुर्सी लगा दिया था। लोगों ने उसका बड़ा लाभ उठाया। स्वाभाविक है अरविंद केजरीवाल बहुत से सहयोगियों के बीच अलोकप्रिय बन गए। 

इस एक परियोजना की सफलता ने उन्हें अपनी नौकरी छोडऩे तथा लोगों को अपने उन अधिकारों के लिए इकट्ठा होने के लिए प्रेरित किया जिसके वे कानूनी रूप से पात्र थे। और इस तरह से एक व्यावसायिक आंदोलनकारी तथा भविष्य का राजनेता पैदा हुआ जिसने अधिक सीधे-सादे लेकिन समाज के सम्मानित सदस्यों का इस्तेमाल किया, जैसे कि अन्ना हजारे और अब वह देश के प्रमुख विपक्षी नेताओं में से एक हैं। एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह केजरीवाल ने तब अन्ना हजारे को खुड्डे लाइन लगा दिया जब वह उनके काम के नहीं रहे तथा सारी जिम्मेदारी खुद उठा ली। मोदी पत्रकारों के साथ आमने-सामने के साक्षात्कारों से इंकार करके उन्हें घेरने के सभी प्रयासों से बचे हैं तो दूसरी ओर केजरीवाल ने ऐसे अवसरों का लाभ उठाया। हाजिर जवाबी उनका प्रमुख गुण है और अपने लाभ के लिए वह इसका इस्तेमाल करते हैं।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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