आयातों का मोह त्याग देश में उत्पादन बढ़ाना होगा

Edited By ,Updated: 30 Nov, 2021 06:22 AM

abandonment of imports will have to increase production in the country

वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत के निर्यात बुलंद हैं और इनके बल पर हम तीव्र आर्थिक विकास हासिल कर लेंगे। यही मंत्र विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य पश्चिमी संस्थाएं पिछले 50 वर्षों से हमें सिखा..

वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत के निर्यात बुलंद हैं और इनके बल पर हम तीव्र आर्थिक विकास हासिल कर लेंगे। यही मंत्र विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य पश्चिमी संस्थाएं पिछले 50 वर्षों से हमें सिखा रही हैं। लेकिन इस नीति का परिणाम है कि देशों के बीच असमानता बढ़ती ही जा रही है और हम वैश्विक दौड़ में पिछड़ रहे हैं। 

विश्व व्यापार से हमें दूसरे देशों में बना सस्ता माल उपलब्ध हो जाता है लेकिन इससे आर्थिक विकास जरूरी नहीं है। ऐसे समझें कि चीन के शंघाई में किसी बड़ी फैक्ट्री में सस्ते फुटबाल का उत्पादन होता है। उस सस्ते फुटबाल का भारत में आयात किया जाता है और हमारे उपभोक्ता को फुटबाल कम मूल्य पर उपलब्ध हो जाता है। लेकिन साथ ही भारत में फुटबाल बनाने के उद्योग बंद हो जाते हैं क्योंकि उनके द्वारा बनाए गए फुटबाल महंगे पड़ते हैं। हमारे उद्योग में रोजगार उत्पन्न होना बंद हो जाता है। हमारे श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। उनके हाथ में क्रयशक्ति नहीं रह जाती। अत: आयात से सस्ता माल उपलब्ध होता है लेकिन उस सस्ते माल को खरीदने के लिए क्रयशक्ति समाप्त हो जाती है और वह माल केवल एक सपने जैसा रह जाता है। 

इसके विपरीत यदि भारत में ही फुटबाल का उत्पादन करें, यद्यपि इसका मूल्य चीन की तुलना में अधिक पड़ता हो, लाभप्रद होता है। तब भारत में फुटबाल बनाने से रोजगार उत्पन्न होंगे, उस रोजगार से श्रमिकों को वेतन मिलेंगे। उनके हाथ में क्रयशक्ति आएगी। विश्व व्यापार के माध्यम से हमें सस्ता माल मिलता है लेकिन क्रयशक्ति समाप्त होती है और हम भूखे मरते हैं; जबकि घरेलू उत्पादन से हमें महंगा माल मिलता है लेकिन हाथ में क्रयशक्ति होती है और हम कम मात्रा में खरीदे गए महंगे माल से जीवित रहते हैं। 

वर्तमान में कोविड संकट के बाद वैश्विक स्तर पर अंतरमुखी अर्थव्यवस्था को अपनाया जा रहा है। तमाम देशों ने पाया कि कोविड संकट के दौरान विदेशों से माल आना बंद हो गया और उनके उद्योग और रोजगार संकट में आ गए। इसलिए वर्तमान समय में हम निर्यातों को बढ़ा पाएंगे, इसमें संशय है। अर्थशास्त्र में मुक्त व्यापार के सिद्धांत का आधार यह है कि हर देश उस माल का उत्पादन करेगा जिसमें वह सफल है। जैसे यदि चीन में फुटबाल सस्ता बनता हो और भारत में दवा सस्ती बनती हो तो चीन और भारत दोनों के लिए यह लाभप्रद है कि भारत चीन से फुटबाल का आयात करे और चीन भारत से दवाओं का। तब चीन में फुटबाल के उत्पादन में रोजगार बनेंगे और भारत में दवाओं के उत्पादन में। ऐसी परिस्थिति में व्यापार दोनों के लिए लाभप्रद होता है। 

ऐसा भी संभव है कि चीन में फुटबाल सस्ता बने और चीन में ही दवा भी सस्ती बने। ऐसी स्थिति में यदि भारत मुक्त व्यापार को अपनाता है तो चीन से फुटबाल और दवा दोनों का आयात होगा और भारत में उत्पादन समाप्तप्राय हो जाएगा और हमारे नागरिक बेरोजगार और भूखे रह जाएंगे। इसलिए पहले हमको यह देखना चाहिए कि किन क्षेत्रों में हम उत्पादन करने में सफल हैं। उन क्षेत्रों को बढ़ाते हुए हमें निश्चित करना चाहिए कि हम निर्यात बढ़ा सकें। जब निर्यात हो जाएं तब हम उतनी ही मात्रा में आयात करें तो कांटे में संतुलन बनता है। लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि अपने देश से निर्यात कम और आयात ज्यादा हो रहे हैं।

फलस्वरूप अपने देश में उत्पादन कम हो रहा है, रोजगार कम पैदा हो रहे हैं और हमारी आर्थिक विकास दर लगातार गिर रही है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम हर प्रकार के आयातों पर प्रतिबंध लगाएं। कुछ माल ऐसे होते हैं जिनका हम उत्पादन नहीं कर पाते। जैसे मान लीजिए कि इंटरनैट के राऊटर बनाने की हमारे पास क्षमता नहीं है। ऐसी परिस्थिति में हमें राऊटर का आयात करना ही होगा। लेकिन अनावश्यक वस्तुओं जैसे चॉकलेट और आलू चिप्स जैसी विलासिता के माल के लिए यदि हम निर्यात करते हैं तो हम मुश्किल में आते हैं। 

हमें समझना होगा कि हमारे अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए हमें अपने उत्पादन को सफल करना होगा और वैश्विक स्तर पर सस्ता माल बनाना होगा। फिलहाल ऐसी परिस्थिति नहीं दिख रही है कि भारत का माल सस्ता बन रहा हो इसलिए हमें आयातों से बचना चाहिए क्योंकि बिना रोजगार सस्ते फुटबाल की तुलना में रोजगार के साथ महंगा फुटबाल बनाना ज्यादा तर्कसंगत लगता है। 

हमें चीन के उदाहरण का अनुसरण समझ-बूझ कर करना चाहिए। चीन की घरेलू आर्थिक बचत दर हमसे बहुत अधिक है। हम अपनी आय का लगभग 20 प्रतिशत बचत और निवेश करते हैं जबकि चीन लगभग 45 प्रतिशत। इसलिए चीन ने जो निर्यात का मॉडल अपनाया उसमें दोनों कारक हैं। एक निर्यात, दूसरा बचत। इसमें भी चीन ने निर्यात का मॉडल उस समय अपनाया था जब विदेश व्यापार का वैश्विक स्तरीय विस्तार हो रहा था। इसलिए चीन के मॉडल को अपने देश में अपनाने में 2 संकट हैं। 

पहला यह कि वैश्विक स्तर पर आज विश्व व्यापार का संकुचन हो रहा है और दूसरा यह कि हमारी घरेलू बचत दर चीन की तुलना में कम है। इसलिए चीन का मॉडल हमारे देश में सफल नहीं होगा। हमें निर्यातों के पीछे भागने के स्थान पर अपने उद्योगों को पहले संरक्षण देना होगा। उनकी जड़ें मजबूत करने के लिए हमें उन समस्याओं को दूर करना चाहिए जिनके कारण हमारे देश में उत्पादन महंगा पड़ता है, इनमें  से विशेषकर सरकारी भ्रष्टाचार प्रमुख है।-भरत झुनझुनवाला

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