Edited By ,Updated: 16 Oct, 2019 12:30 AM
अपने पोते आदित्य ठाकरे के चुनावी राजनीति में शामिल होने के विचार पर शिवसेना के पूर्व प्रमुख दिवंगत बाला साहेब ठाकरे कैसे प्रतिक्रिया देते, जबकि ठाकरे परिवार को अभी तक अत्यंत सतर्कतापूर्वक इससे बाहर रखा गया था? वह दबी हुई हंसी हंस देते। अभी तक परिवार...
अपने पोते आदित्य ठाकरे के चुनावी राजनीति में शामिल होने के विचार पर शिवसेना के पूर्व प्रमुख दिवंगत बाला साहेब ठाकरे कैसे प्रतिक्रिया देते, जबकि ठाकरे परिवार को अभी तक अत्यंत सतर्कतापूर्वक इससे बाहर रखा गया था? वह दबी हुई हंसी हंस देते। अभी तक परिवार ने खुद चुनाव लड़े बगैर महाराष्ट्र में एक शक्तिशाली राजनीतिक दल का संचालन किया है। सबसे युवा ठाकरे आदित्य ने आने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मुम्बई की वर्ली सीट से चुनाव लड़ कर इस रुझान को तोड़ दिया है।
बाला साहेब ने एक बार मुझे बताया था कि उन्होंने 3 निर्णय लिए हैं-वह कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे, वह अपनी आत्मकथा नहीं लिखेंगे तथा कोई भी सरकारी पद ग्रहण नहीं करेंगे और अंत तक वह इस पर अडिग रहे। पहली शिवसेना-भाजपा सरकार बनने (1995-1999) के बाद बाला साहेब आमतौर पर चुटकी लेते थे कि वह अपने हाथ में ‘रिमोट कंट्रोल’ के साथ राज्य पर शासन करते हैं।
बाला साहेब के बेटे उद्धव ठाकरे ने न केवल हैरानीजनक रूप से पार्टी को जीवित रखा, बल्कि अपने पिता की रिमोट कंट्रोल की नीति का भी अनुसरण किया लेकिन 29 वर्षीय आदित्य अलग हैं। वह आकांक्षावान महाराष्ट्रीयन युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके छवि-निर्माता उन्हें एक विनीत तथा अंग्रेजी बोलने वाले शिवसेना नेता के तौर पर पेश करने का प्रयास कर रहे हैं। 9 वर्ष पूर्व खुद बाला साहेब ने अक्तूबर 2010 में अपने पोते का परिचय करवाया था और आदित्य को पार्टी की नवगठित युवा इकाई का अध्यक्ष बनाया था।
समय बिल्कुल सही
ठाकरे परिवार के उत्तराधिकारी के लिए समय बिल्कुल सही है क्योंकि भाजपा-शिवसेना गठबंधन इस बार विधानसभा चुनाव जीतने की ओर अग्रसर है। हालांकि यह हैरानीजनक नहीं था, आदित्य ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘मैंने यह चुनाव इसलिए चुना क्योंकि मैंने सोचा कि यह सही समय है।’’ महाराष्ट्र में युवा नेतृत्व का अभाव है, जिसे भरने की वह आशा करते हैं।
खुद आदित्य ने स्वीकार किया है कि एक बच्चे के तौर पर वह अपने पिता तथा दादा के साथ यात्राएं करते थे और इसी कारण राजनीति में उनकी रुचि बन गई। आदित्य ने इसका औचित्य बताते हुए कहा कि ‘‘यदि आप समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं तो राजनीति इसका रास्ता है। मैं गत 5 वर्षों से अपनी यात्रा बारे सोच रहा था। हमने कई आंदोलन किए हैं। शिवसेना अंदाज में महाराष्ट्र को कैसे बेहतर तरीके से बचाना है? मैंने हमेशा सोचा कि मुझे अपने पार्टी विधायकों में शामिल होना चाहिए।’’ अपनी चुनावी पारी शुरू करने से पहले उन्होंने 2019 की सफलता के लिए मतदाता का धन्यवाद करने हेतु जुलाई में ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ निकाली थी मगर उनका वास्तविक इरादा अपनी खुद की चुनावी शुरूआत के लिए जनता के मूड का आकलन करना था।
युवा ठाकरे बदलते हुए राजनीतिक परिदृश्य
का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा इसमें शिवसेना की संस्कृति को भी विकसित करते हैं। बाला साहेब के समय से बहुत कुछ बदल चुका है। महाराष्ट्र की राजनीति में पार्टी की ताकत निश्चित तौर पर कम हुई है। राजनीति बदल गई है, मतदाता बदल गए हैं तथा भाजपा-शिवसेना गठबंधन के शुरूआती दिनों में अपने दबदबे के मुकाबले शिवसेना गठबंधन में जूनियर पार्टनर भी बन गई है।
पुराने कथानक को बदलने का प्रयास
आदित्य एक अलग तरह की राजनीति का प्रयोग करते हुए पुराने कथानक को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। शिवसेना की छवि शक्ति प्रदर्शन की राजनीति की रही है और यदि वह सफल होना चाहते हैं तो इसे बदलना होगा। शिवसेना अब विद्रोहात्मक पार्टी नहीं रही। अतीत में यह दक्षिण भारतीयों, गुजरातियों, बिहारियों तथा मुसलमानों के खिलाफ आंदोलन छेड़ती रही है। आज गैर-महाराष्ट्रीयन मतदाताओं को लुभाने के प्रयास में इसके प्रचार में बहुभाषीय पोस्टर शामिल हैं। वह धर्म अथवा हिन्दुत्व का जिक्र नहीं करते तथा इसकी बजाय रोजगारी और विकास जैसे रोजी-रोटी से जुड़े मुद्दे उठाने को अधिमान देते हैं। वह प्लास्टिक पर प्रतिबंध, समुद्र तटों की सफाई तथा पर्यावरण की बात करते हैं। आदित्य अधिक महानगरीय, अधिक आधुनिक तथा आधुनिक युग की चुनावी राजनीति के लिए खुले हैं। उन पर ‘पेज-3’ समूह के साथ सहज होने के आरोप लगते हैं लेकिन वह सामान्य युवाओं को आकॢषत करने का भी प्रयास कर रहे हैं।
दूसरे, आदित्य युवाओं में आधार बनाकर अपने दादा का अनुसरण कर रहे हैं। बाला साहेब को जीवनपर्यंत निष्ठावान युवाओं का समर्थन हासिल रहा। जब तक वह जीवित रहे, प्रत्येक विजयदशमी को हजारों की संख्या में युवा शिवाजी पार्क में उनकी रैली में शामिल होते थे। आदित्य को एक संवेदनशील आधुनिक युवा नेता के तौर पर पेश किया जा रहा है, जो लचकीला तथा नए विचारों के लिए खुला है। तीसरे, आदित्य को चुनावी मैदान में उतारने के लिए समर्थन परिवार का सोचा-समझा निर्णय था। बाल ठाकरे रिमोट कंट्रोल के माध्यम से सरकार चला सकते हैं। उद्धव भी ऐसा करने में सफल रहे लेकिन अपनी मां रश्मि द्वारा प्रोत्साहित आदित्य का मानना है कि रिमोट कंट्रोल के दिन चले गए तथा शासन चलाने के लिए सिस्टम में शामिल होने की जरूरत है।
खुद को ताकतवर बनाना चाहती है शिवसेना
सबसे बढ़ कर, शिवसेना इस डर से कि भाजपा पार्टी को निगल सकती है, खुद को ताकतवर बनाना चाहती है। परिवार महसूस करता है कि आगामी मंत्रिमंडल में जूनियर ठाकरे की उपस्थिति उन्हें कुछ नियंत्रण प्रदान करेगी। आदित्य चुनावी राजनीति में अपनी पहली जंग जीतने की ओर अग्रसर हैं तथा यदि भाग्य उन पर मेहरबान होता है तो वह उपमुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। हालांकि उद्धव अब कहते हैं कि ‘‘राजनीति में पहले कदम का अर्थ यह नहीं कि आप राज्य के मुख्यमंत्री बनें। वह अभी राजनीति में शामिल ही हुआ है, यह महज शुरूआत है।’’ जब समय आएगा वह अपने बेटे के लिए दबाव बनाएंगे। आदित्य साबित करना चाहते हैं कि वह एक शक्तिशाली राजनीतिक परिवार के मात्र एक अन्य बेटे नहीं हैं बल्कि अपने बूते पर एक जमीनी स्तर के नेता हैं। आने वाला चुनाव आदित्य के लिए एक अग्रि परीक्षा होगा।-कल्याणी शंकर