आखिर कैसे ‘सुधरे ’भारतीय अर्थव्यवस्था

Edited By ,Updated: 29 Dec, 2019 01:29 AM

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हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर कहना है कि अर्थव्यवस्था इस समय गंभीर सुस्ती के दौर में है और सरकार को  इसे उबारने के लिए तत्काल नीतिगत उपाय करने होंगे। इसके मुताबिक इस सुस्ती की वजह वित्तीय क्षेत्र का संकट है। इसी...

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर कहना है कि अर्थव्यवस्था इस समय गंभीर सुस्ती के दौर में है और सरकार को  इसे उबारने के लिए तत्काल नीतिगत उपाय करने होंगे। इसके मुताबिक इस सुस्ती की वजह वित्तीय क्षेत्र का संकट है। इसी सप्ताह भारत सरकार ने जी.डी.पी. यानी सकल घरेलू उत्पाद के नए आंकड़े जारी किए और इन आंकड़ों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार खराब दौर से गुजर रही है। मौजूदा तिमाही में जी.डी.पी. 4.5 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछले 6 साल में सबसे निचले स्तर पर है। पिछली तिमाही की भारत की जी.डी.पी. 5 फीसदी रही थी। 

इस साल जुलाई में बजट पेश होने के बाद से सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इन कदमों में सबसे अधिक चर्चा जिस बात की हुई है वह है कॉर्पोरेट टैक्स कट की। 20 सितम्बर को कॉर्पोरेट टैक्स में कमी करने की घोषणा हुई थी, सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि क्या इस नई कटौती का अर्थव्यवस्था को कोई फायदा हुआ या नहीं। अभी तक की स्थिति को देखें तो पता चलता है कि उसकी वजह से भारत में अब तक कोई नया निवेश नहीं आया है लेकिन इसके पीछे एक बड़ी वजह भी है। इस तरह के किसी फैसले का असर देखने में दो-तीन महीने लगते हैं। कभी-कभी 6 महीने तक भी लग जाते हैं। 

अगर शेयर बाजार में देखें तो बजट में सुपर रिच सरचार्ज जो बढ़ाया गया था उसका बुरा असर शेयर बाजार पर पड़ा था। बाद में सरकार ने यह कदम वापस ले लिया था लेकिन शेयर बाजार को तब तक हानि पहुंच चुकी थी। शेयर बाजार उस स्थिति से बहुत जल्दी नहीं उबर पाया। उसके बाद अब भारतीय शेयर बाजार में जो स्थिति देखने को मिल रही है उसके लिए देश केभीतर के घटक उतने जिम्मेदार नहीं हैं जितना कि वैश्विक आर्थिक स्थिति है। अमरीका और चीनके बीच जो व्यापार युद्ध की स्थिति है उस कारण पूरीदुनिया की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है। भारतीयअर्थव्यवस्था के प्रभावित होने का सबसे बड़ा कारण यही है। 

दूसरा कारण यह है कि यूरोप, अमरीका, पूरे अफ्रीका या फिर पूरे एशिया में-दुनिया के तमाम देशों में कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी हुई है। कई जगहों पर मंदी की स्थिति है। ऐसे में सिर्फ  किसी भी देश की कमाई होने के लिए ज़रूरी है कि देश में बनने वाला सामान बिके। अगर हमारा सामान देश के बाहर बिकेगा तभी तो कमाई होगी, भारत के ऊपर तो दोहरी मार है। भारत के भीतर घरेलू बाजार में भी माल नहीं बिक रहा और रही बात विदेशी बाजार की तो वहां हमारा माल खरीदने वाला कोई नहीं क्योंकि वहां स्थिति खराब है। ये वे कारण हैं जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक प्रभावित किया है। भारत ने अब तक निवेश बढ़ाने के उपाय किए हैं लेकिन जरूरी यह भी है कि साथ-साथ खपत बढ़ाने के बारे में क़दम उठाए जाएं। अर्थव्यवस्था नाम की गाड़ी निवेश और खपत दो पहियों पर चलती है। अगर सरकार निवेश बढ़ाती है लेकिन खपत बढ़ाने के लिए कदम नहीं उठाती तो उसका कुछ न कुछ असर दिखता है। 

बात बजट की हो या फिर उसके बाद की हो, खासतौर पर कॉर्पोरेट टैक्स में कमी करने की बात हो-यह निवेश बढ़ाने के लिए बड़ा कदम था। खपत बढ़ाने के लिए सरकार को आयकर में भी कमी करने की जरूरत होगी, आयकर में कमी की जाएगी तो लोगों के हाथों में अधिक पैसे आएंगे। इसके साथ अगर लोगों को भरोसा दिलाया जाता है कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है और उनकी नौकरियां सुरक्षित हैं, तो खपत करना शुरू करेंगे। खपत बढ़ेगी तो उद्योग जगत अधिक निवेश करने और अधिक सामान बनाने के लिए उत्साहित होगा। पूरी व्यवस्था में जो एक दुरुस्ती दरकार है कि खपत बढ़ाने के लिए लोगों के हाथों में अधिक पैसे देने का इंतजाम नहीं किया गया है। अगर प्रशासनिक व्यवस्था ने यह काम कर दिया तो भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति कुछ बेहतर हो सकती है।-डा. वरिंद्र भाटिया

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