आखिर मोदी कहां तक पार्टी को ‘ठेलते’ रहेंगे

Edited By ,Updated: 25 Dec, 2019 03:20 AM

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लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड तीसरा राज्य है जहां भाजपा की हालत खराब हुई है। हरियाणा में बहुमत नहीं जुटा। दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर बहुमत मिला लेकिन सरकार नहीं बना पाई। झारखंड में तो सीधे-सीधे हार...

लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड तीसरा राज्य है जहां भाजपा की हालत खराब हुई है। हरियाणा में बहुमत नहीं जुटा। दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर बहुमत मिला लेकिन सरकार नहीं बना पाई। झारखंड में तो सीधे-सीधे हार हुई। वजह क्या है ...राम मंदिर पर फैसले के बाद पहला चुनाव होता है उसमें भाजपा हार जाती है। नागरिकता संशोधन कानून के बाद पहला चुनाव होता है जिसमें भाजपा हार जाती है। इसे मुद्दा बनाने की कोशिश प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह करते हैं लेकिन दाल नहीं गल पाती। 

अमित शाह ने कहा था कि चार महीने में राम मंदिर बनेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कपड़ों से गड़बड़ी करने वालों को पहचाना जाता है लेकिन जनता ने नकार दिया। नागरिकता संशोधन कानून के बाद झारखंड में 81 सीटों पर चुनाव हुआ जिनमें से भाजपा सिर्फ  25 सीटें जीत पाई। सारा दोष अब मुख्यमंत्री रघुवर दास पर मढ़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि घर-घर रघुवर का नारा नहीं चला। मोदी जी ने डबल इंजन का नारा दिया, यह भी नहीं चला।

छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी राज्य के बाद झारखंड जैसे आदिवासी राज्य को हार जाना भाजपा के साथ संघ के लिए भी ङ्क्षचता का विषय होना चाहिए। आखिर संघ ने वनवासी कल्याण आश्रम के माध्यम से ईसाई मिशनरियों के क्षेत्र में बहुत काम किया है लेकिन वोटों में इसे तबदील नहीं किया जा सका। झारखंड में पांच साल पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन यह प्रयोग नहीं चल पाया है। अगर पार्टी और सरकार के बीच गुटबाजी थी तो उसे दूर करना पार्टी का ही काम था। कहा जा रहा है कि संघ ने पहले ही आगाह कर दिया था तो उस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया गया। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या यह सब बहानेबाजी है और हार के मूल मुद्दे को क्या अभी भी नहीं समझा जा रहा है? 

जब बेरोजगारी हो, आर्थिक मंदी हो, गांवों में बदहाली हो, किसानों के बीच आक्रोश हो, उनकी कमाई कम हो रही हो, ऐसे में चुनाव लडऩा खतरनाक होता है। इससे भी ज्यादा खतरनाक होता है जब आॢथक मंदी पर नेता फालतू के बयान देते हैं। वित्त मंत्री प्याज की कीमत पर कहती हैं कि वह नहीं खातीं। कारें नहीं बिकतीं तो कहती हैं कि युवा ओला-उबर कर रहे हैं। मंत्री रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि एक हफ्ते में 3 फिल्मों ने सवा सौ करोड़ कमा लिए, कहां है महंगाई। एक अन्य मंत्री कहते हैं कि रेलगाडिय़ां फुल जा रही हैं, बारातें जा रही हैं, शादियों में पैसा खर्च हो रहा है तो महंगाई कैसी। सवाल उठता है कि क्या महंगाई और उस पर ऐसे बयान झारखंड जैसे आदिवासी राज्य में भाजपा पर भारी पड़े। प्रधानमंत्री मोदी ने मेहनत की। नौ सभाएं कीं। पांच चरणों का चुनाव था, हर चरण में गए। आखिरी चरणों में तो दौरों की संख्या में इजाफा किया। सवाल उठता है कि आखिर मोदी कहां तक पार्टी को ठेलते रहेंगे। राज्य सरकार की विफलताओं पर चादर डालने की कोशिश करते रहेंगे। यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि क्या केन्द्र की आयुष्मान, उज्ज्वला, फसल बीमा योजना आदि का लाभ सिर्फ केन्द्र के लोकसभा चुनावों में ही मिलता है या मिला। क्या राज्य के विधानसभा चुनावों के समय वोटर इस कोण से भी सोचता है। 

आखिर भाजपा की मोदी सरकार किसानों को 6 हजार रुपए, 2-2 हजार रुपए की 3 किस्तों में दे रही है जिसका लाभ उसे लोकसभा चुनावों में मिला भी लेकिन राज्य के चुनाव में क्यों नहीं मिला। क्या वोटर एक योजना पर एक वोट का फैसला कर चुका है। यह बात हमने हरियाणा में देखी थी जहां किसानों का कहना था कि पुलवामा के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने का वोट भाजपा को लोकसभा चुनावों में दे दिया। विधानसभा चुनावों में क्यों इसे भुनाते हो। अगर ऐसी ही सोच है तो भाजपा को विधानसभा चुनावों से पहले लंबी लकीर खींचनी होगी। 

झारखंड में गठबंधन बनाम गठबंधन नहीं करना भी हार-जीत का बड़ा कारण बना। महागठबंधन बिना किसी विरोध या तकरार के बन गया। कांग्रेस हो या लालू, दोनों ने हेमंत सोरेन को अपना नेता मान लिया। सीटों को लेकर पचड़ा नहीं किया। सीटों की संख्या को लेकर भी पचड़ा नहीं किया। इसका लाभ महागठबंधन को मिला। उधर भाजपा ने आल झारखंड स्टूडैंट यूनियन का साथ छोड़ा। पासवान की पार्टी ने ज्यादा सीटें मांगीं तो उससे भी भाजपा ने किनारा कर लिया। नीतीश कुमार की पार्टी ने भी अलग लडऩे का फैसला किया। उसे भी मनाया नहीं जा सका या फिर भाजपा ने किसी की परवाह ही नहीं की। महाराष्ट्र में शिवसेना को झटक चुकी भाजपा अपने सहयोगियों की कद्र नहीं करती, यह संदेश कहीं-कहीं गया। 

सवाल उठता है कि इस हार का राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर पड़ेगा। पहला, राज्यसभा में भाजपा को बिल पास कराने में और दिक्कत आ सकती है। जैसे-जैसे वह राज्य हार रही है उसे देखते हुए राज्यसभा में बहुमत हासिल करना मुश्किल हो जाएगा। दूसरा, विपक्ष में नई जान आएगी। विपक्ष को लगेगा कि एक होकर, मतभेद भुलाकर भाजपा को हराया जा सकता है। तीसरा, कांग्रेस ने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन किया तो लगा था कि मुस्लिम हाथ से निकल जाएगा लेकिन झारखंड में कांग्रेस पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। अब ऐसे बेमेल गठबंधन आगे भी होते रहेंगे। चौथा, कांग्रेस में और विपक्ष में सोनिया गांधी का कद बढ़ेगा।-विजय विद्रोही
 

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