आखिर बार-बार क्यों आते हैं भूकम्प

Edited By ,Updated: 19 Jun, 2020 03:17 AM

after all why do earthquakes come again and again

पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, आेडिशा और हरियाणा के दक्षिण-पूर्वी इलाके रोहतक में कम तीव्रता के भूकम्प के झटके आ चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक सप्ताह में देश में कम तीव्रता के 25 भूकम्प आए हैं। रोहतक में 18 जून को...

पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, आेडिशा और हरियाणा के दक्षिण-पूर्वी इलाके रोहतक में कम तीव्रता के भूकम्प के झटके आ चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक सप्ताह में देश में कम तीव्रता के 25 भूकम्प आए हैं। रोहतक में 18 जून को तड़के भूकम्प के झटके महसूस किए गए। रिक्टर पैमाने पर इस भूकम्प की तीव्रता 2.1 रही। इससे पहले कश्मीर में 16 जून को एक मध्यम तीव्रता का भूकम्प का झटका महसूस किया गया। इसकी रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 5.8 मापी गई। भूकम्प का केंद्र तजाकिस्तान क्षेत्र में था और इसकी गहराई पृथ्वी की सतह के भीतर 100 किलोमीटर थी। 

किसी के भी हताहत होने या सम्पत्ति को नुक्सान होने की कोई रिपोर्ट अब तक कहीं से नहीं मिली है। भूकम्प की दृष्टि से कश्मीर एेसे क्षेत्र में स्थित है जहां भूकम्प आने की अत्यधिक आशंका रहती है। पहले भी कश्मीर में भूकम्प ने खासा कहर बरपाया है। 8 अक्तूबर, 2005 को रिक्टर पैमाने पर 7.6 तीव्रता के भूकम्प से जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एल.आे.सी.) के दोनों आेर 80,000 से अधिक लोग मारे गए थे। उधर गुजरात के राजकोट जिले में 15 जून को हल्की तीव्रता के दो भूकम्प आए। इसके एक दिन पहले 14 जून को क्षेत्र में 5.3 तीव्रता का भूकम्प आया था। दिल्ली और एन.सी.आर. में एक बड़ा भूकम्प आने की संभावना है।

भूकम्प क्यों आता है, इसका वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया है, परन्तु यह कब और कहां आएगा, अभी इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। धरती क्यों डोलती है? इसे समझने के लिए सबसे पहले हमें पृथ्वी की संरचना को समझना होगा। दरअसल, पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है, जिसके नीचे तरल पदार्थ लावा के रूप में है। ये प्लेटें लावे पर तैर रही होती हैं। इनके टकराने से ही भूकम्प आता है। 

यह धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है, जिन्हें इनर कोर, आऊटर कोर, मैैंटल और क्रस्ट कहा जाता है। क्रस्ट और ऊपरी मैंटल को लिथोस्फेयर कहा जाता है। ये 50 किलोमीटर की मोटी परतें होती हैं, जिन्हें टैक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। ये टैक्टोनिक प्लेट्स अपनी जगह पर हिलती रहती हैं, घूमती रहती हैं, खिसकती रहती हैं। ये प्लेट्स अमूमन हर साल करीब 4-5 मि.मी. तक अपने स्थान से खिसक जाती हैं। इस क्रम में कभी कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है। इस दौरान कभी-कभी ये प्लेट्स एक-दूसरे से टकरा जाती हैं। ऐसे में ही भूकम्प आता है और धरती हिल जाती है। ये प्लेटें सतह से करीब 30 से 50 कि.मी. तक नीचे हैं। 

भूकम्प का केंद्र वह जगह होती है, जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकम्प का कंपन ज्यादा महसूस होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती है, इसका प्रभाव कम होता जाता है। इसकी तीव्रता का मापक रिक्टर स्केल होता है। रिक्टर स्केल पर यदि 7 या इससे अधिक तीव्रता का भूकम्प आता है तो आसपास के 40 कि.मी. के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकम्पीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कंपन की आवृत्ति ऊपर की तरफ होती है तो प्रभाव क्षेत्र कम होता है। भूकम्प जितनी गहराई में आता है, सतह पर उसकी तीव्रता भी उतनी ही कम महसूस की जाती है। भूकम्प की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर स्केल का इस्तेमाल किया जाता है। इसे रिक्टर मैग्नीच्यूूड टैस्ट स्केल भी कहा जाता है। 

भूकम्प की तरंगों को रिक्टर स्केल 1 से 9 तक के आधार पर मापता है। रिक्टर स्केल पैमाने को सन् 1935 में कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कार्यरत वैज्ञानिक चाल्र्स रिक्टर ने बेनो गुटेनबर्ग के सहयोग से खोजा था। रिक्टर स्केल पर भूकम्प की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 8 रिक्टर पैमाने पर आया भूकम्प 60 लाख टन विस्फोटक से निकलने वाली ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है। रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकम्पों को हल्का माना जाता है। साल में करीब 6000 एेसे भूकम्प आते हैं। हालांकि ये खतरनाक नहीं होते, पर यह काफी हद तक क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है।

भूकम्प के खतरे के हिसाब से भारत को चार जोन में विभाजित किया गया है। जोन-2 में दक्षिण भारतीय क्षेत्र को रखा गया है, जहां भूकम्प का खतरा सबसे कम है। जोन-3 में मध्य भारत है। जोन-4 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत के तराई क्षेत्रों को रखा गया है, जबकि जोन-5 में हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा कच्छ को रखा गया है। 

जोन-5 के अंतर्गत आने वाले इलाके सबसे ज्यादा खतरे वाले हैं। दरअसल, इंडियन प्लेट हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है। यह हिमालय के दक्षिण में है, जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है, जिसमें चीन आदि देश बसे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इंडियन प्लेट उत्तर-पूर्व दिशा में यूरेशियन प्लेट की तरफ बढ़ रही हैं। यदि ये प्लेटें टकराती हैं तो भूकम्प का केंद्र भारत में होगा। यदि अचानक भूकम्प आ जाए तो घर से बाहर खुले में निकलें। घर में फंस गए हों तो बैड या मजबूत टेबल के नीचे छिप जाएं। घर के कोनों में खड़े होकर भी खुद को बचा सकते हैं। भूकम्प आने पर लिफ्ट का प्रयोग बिल्कुल न करें।-निरंकार सिंह
 

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