दामिनी के बाद कितनी और मनीषा बनेंगी ‘दरिंदगी’ का शिकार

Edited By ,Updated: 09 Oct, 2020 02:04 AM

after damini how many more manisha will become victim of  darjeet

एक बार फिर भारत शर्मसार है। हाथरस पुलिस की लापरवाही और सवर्णों की दरिंदगी की दास्तान आज सारे देश की जुबान पर है। इस भयावह त्रासदी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार देश का वह मीडिया है जो पिछले

एक बार फिर भारत शर्मसार है। हाथरस पुलिस की लापरवाही और सवर्णों की दरिंदगी की दास्तान आज सारे देश की जुबान पर है। इस भयावह त्रासदी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार देश का वह मीडिया है जो पिछले तीन महीने से सुशांत सिंह राजपूत और बॉलीवुड के ड्रग के मायाजाल से बाहर नहीं निकल पा रहा है। क्या उनकी हत्या सुशांत सिंह राजपूत की तथाकथित हत्या से कम महत्वपूर्ण थी? अगर मीडिया ने निर्भया कांड की तरह हाथरस की मनीषा के सवाल को भी उसी तत्परता से उठाया होता तो शायद मनीषा की जान बच सकती थी। 

जहां तक बलात्कार की समस्या का प्रश्न है तो कोई पुलिस या प्रशासन इसे रोक नहीं सकता क्योंकि इतने बड़े मुल्क में किस गांव, खेत, जंगल, कारखाने, मकान या सुनसान जगह बलात्कार होगा, इसका अंदाजा कोई कैसे लगा सकता है? वैसे भी जब हमारे समाज में परिवारों के भीतर बहू-बेटियों के शारीरिक शोषण के अनेकों समाजशास्त्रीय अध्ययन उपलब्ध हैं, तो यह बात सोचने की है कि कहीं हम दोहरे मापदंडों से जीवन तो नहीं जी रहे? 

जहां तक पुलिस वालों के खराब व्यवहार का सवाल है तो उसके भी कारणों को समझना जरूरी है। 1980 से राष्ट्रीय पुलिस आयोग की रिपोर्ट धूल खा रही है। इसमें पुलिस की कार्यप्रणाली को सुधारने के व्यापक सुझाव दिए गए थे पर किसी भी राजनीतिक दल या सरकार ने इस रिपोर्ट को लागू करने के लिए जोर नहीं दिया। नतीजतन हम आज भी 200 साल पुरानी पुलिस व्यवस्था से काम चला रहे हैं। 

पुलिस वाले किन अमानवीय हालतों में काम करते हैं, इसकी जानकारी आम आदमी को नहीं होती। जिन लोगों को वी.आई.पी. बताकर पुलिस वालों से उनकी सुरक्षा करवाई जाती है, एेसे वी.आई.पी. अक्सर कितने अनैतिक और भ्रष्ट कार्यों में लिप्त होते हैं, यह देखकर कोई पुलिस वाला कैसे अपना मानसिक संतुलन रख सकता है? समाज में भी प्राय: पैसे वाले कोई अनुकरणीय आचरण नहीं करते। पर पुलिस से सब सत्यवादी हरीशचंद्र होने की अपेक्षा रखते हैं। पुलिस वालों को परेड और आपराधिक कानून के अलावा कुछ भी एेसा नहीं पढ़ाया जाता जिससे ये समाज की सामाजिक, आर्थिक व मनोवैज्ञानिक जटिलताआें को समझ सकें। ऐसे में हर बात के लिए पुलिस को दोष देने वाले नेताआें और मध्यमवर्गीय जागरूक समाज को अपने गिरेबां में झांकना चाहिए। 

8 वर्ष पहले मुम्बई के एक अति सम्पन्न मारवाड़ी युवा ने 65 वर्ष की महिला से बलात्कार किया तो सारा देश स्तब्ध रह गया। इस अनहोनी घटना पर तमाम सवाल खड़े किए गए। पिता द्वारा पुत्रियों से लगातार बलात्कार के सैंकड़ों मामले रोज देश के सामने आ रहे हैं। अभी दुनिया आस्ट्रिया के गाटफ्राइट नाम के उस गोरे बाप को भूली नहीं है जिसने अपनी ही सबसे बड़ी बेटी को अपने घर के तहखाने में दो दशक तक कैद करके रखा और उससे दर्जन भर बच्चे पैदा किए। इस पूरे परिवार को कभी न तो धूूप देखने को मिली और न ही सामान्य जीवन। घर की चारदीवारी में बन्द इस जघन्य कांड का खुलासा 2011 में तब हुआ जब गाटफ्राइट की एक बच्ची गंभीर रूप से बीमारी की हालत में अस्पताल लाई गई। 

एेसे कांडों के लिए आप किसे जिम्मेदार ठहराएंगे? पुलिस को या प्रशासन को? यह एक मानसिक विकृति है। जिसका समाधान दो-चार लोगों को फांसी देकर नहीं किया जा सकता। इसी तरह एक प्रमुख अंग्रेजी टी.वी. चैनल के एंकरपर्सन ने अति उत्साह में बलात्कारियों को नपुंसक बनाने की मांग रखी। कुछ देशों में यह कानून है, पर इसके घातक परिणाम सामने आए हैं। इस तरह जबरन नपुंसक बना दिया गया पुरुष हिंसक हो जाता है और समाज के लिए खतरा बन जाता है। बलात्कार के मामलों में पुलिस तुरत-फुरत कार्रवाई करे और सभी अदालतें हर दिन सुनवाई कर 90 दिन के भीतर सजा सुना दें। सजा एेसी कड़ी हो कि उसका बलात्कारियों के दिमाग पर वांछित असर पड़े और बाकी समाज भी एेसा करने से पहले डरे। 

इसके लिए जरूरी है कि जागरूक नागरिक, केवल महिलाएं ही नहीं पुरुष भी, सक्रिय पहल करें और सभी राजनीतिक दलों और संसद पर लगातार तब तक दबाव बनाए रखें, जब तक कि ऐसे कानून नहीं बन जाते। अगर ऐसा हो पाता है तो धीरे-धीरे बलात्कार की समस्या पर कुछ काबू पाया जा सकता है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि हमारे देश की जो महिलाएं राजनीति में सफल हैं, वे भी दामिनी या मनीषा जैसे कांडों पर अपने दल का रुख देख कर बयानबाजी करती हैं। केवल विपक्षी दलों की ही महिला नेता आवाज उठाती हैं।

जाहिर है कि इनमें अपनी ही जमात के प्रति संवेदनशीलता का अभाव है। महिलाआें के प्रति एेसी दुर्दांत घटनाआें के बावजूद उनके हक में एकजुट हो कर आवाज न उठाना बेहद शर्मनाक है। इसीलिए समाज के हर वर्ग को इस समस्या से निपटने के लिए सक्रिय होना पड़ेगा वरना कोई बहू-बेटी सुरक्षित नहीं रह पाएगी।-विनीत नारायण
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!