‘स्वच्छ भारत’ के 4 वर्ष बाद भी रोटी के लिए मैला ढोते हैं ये लोग

Edited By Pardeep,Updated: 04 Oct, 2018 05:16 AM

after four years of clean india they also muddy for bread these people

राजस्थान के भरतपुर जिला के बेहनारा गांव की एक संकरी गली में उच्च जाति के लोगों के घरों के भीतर शौचालयों से फ्लश किए गए मल-मूत्र के ढेर लगे हैं। सांता देवी अपनी साड़ी का पल्लू अपने मुंह पर खींच कर सुबह के मल को साफ करने के लिए अपने हाथ से बनाए फावड़े...

राजस्थान के भरतपुर जिला के बेहनारा गांव की एक संकरी गली में उच्च जाति के लोगों के घरों के भीतर शौचालयों से फ्लश किए गए मल-मूत्र के ढेर लगे हैं। सांता देवी अपनी साड़ी का पल्लू अपने मुंह पर खींच कर सुबह के मल को साफ करने के लिए अपने हाथ से बनाए फावड़े तथा झाड़ू की मदद से धातु की बनी एक चिलमची में पलटने लगती है। उसे नजदीकी डम्प में पलटने के बाद वह फिर वापस लौट कर एक-दो रोटियां एकत्र करती है, जो किए गए काम के लिए उसका एकमात्र ‘भुगतान’ है। 

गत 60 वर्षों से सांता देवी हर रोज सुबह इसी तरह अपने दिन की शुरूआत करती है। यह है वस्तु विनिमय प्रणाली (बार्टर सिस्टम) के माध्यम से ‘स्वच्छता’। 2013 के कानून के अन्तर्गत हाथ से मैला उठाना एक अपराध है। 65 वर्षीय दादी सांता ने बताया कि उसकी बहन मुन्नी, उसके पति रम्भू तथा वह प्रतिदिन ‘मैला धोनी’ का कार्य करते हैं। इसमें उन्हें 5-6 घंटे लगते हैं और उनके शरीर से बदबू आती है। उसने बताया कि सफाई के अन्य कामों के लिए उन्हें थोड़ा-बहुत पैसा मिल जाता है मगर मैला हटाने के लिए केवल एक रोटी। 

लगभग 250 घरों वाले इस गांव में जाट तथा जाटव रहते हैं और सांता देवी और उसका परिवार जाटों के 10 घरों से सीधे शुष्क शौचालयों से मैला हटाता है तथा गलियों में उच्च जाति के कई गटरों से मैला साफ करता है। सांता तथा मुन्नी के बेटे कभी-कभार यह कार्य करते हैं, मगर रोज मजदूरी करके रोजी-रोटी कमाते हैं, जिसमें सामान्य शौचालयों तथा सैप्टिक टैंक्स की सफाई, सॉलिड वेस्ट एकत्र करना तथा जानवरों आदि के मृत शरीरों को हटाना शामिल है। मुन्नी के बेटे मुकेश ने बताया कि उन्हें कोई अन्य काम नहीं करने दिया जाता। लोग उन्हें गंदा कहते हैं। यहां तक कि उन्हें गांव के मंदिर में पूजा भी करने की इजाजत नहीं है। 

मुन्नी को आशा है कि उसके पड़पौत्र शिक्षा के माध्यम से इस चक्र को तोड़ेंगे। चौथी कक्षा में पढऩे वाले संगम का टीचर मेहतर समुदाय के लड़कों को कक्षा में सबसे पीछे अलग बिठाता है। संगम का कहना है कि अन्य लड़के उनके साथ न तो खेलते हैं और न ही खाते हैं। यदि गलती से वे उन्हें छू लें तो वे चिल्ला कर उन्हें गालियां देते हैं। उसका पिता अधिकतर दिन स्कूल के शौचालय साफ करता है। जिस दिन वह नहीं करता उस दिन संगम तथा उसके भाई सागर से यह कार्य करने की आशा की जाती है। हालांकि स्वच्छता सचिव परमेश्वरन अय्यर का कहना है कि स्वच्छ भारत अभियान ने जातियों के इन अवरोधों को तोड़ दिया है। उन्होंने पुष्टि की कि यदि किसी गांव अथवा राज्य को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया जाता है तो इसका अर्थ यह हुआ कि सभी घरों में स्वच्छ शौचालयों की सुविधा है और सभी शुष्क शौचालयों को हटा दिया गया है। उन्होंने अभी भी सफाई कर्मियों द्वारा शुष्क शौचालयों की हाथों से सफाई करने की घटनाओं को ‘मतिभ्रंश’ की संज्ञा दी। 

मंत्रालय के साथ सांझेदारी में सर्वेक्षण करने वाली गैर-सरकारी संस्था राष्ट्रीय गरिमा अभियान (आर.जी.ए.) के अनुसार अभी तक सामाजिक न्याय मंत्रालय के नेतृत्व में एक अंतर-मंत्रालयी कार्य बल ने कम से कम 160 जिलों में हाथ से मैला साफ करने वाले 50,000 से अधिक लोग पंजीकृत किए हैं। सर्वेक्षण के सत्यापन की प्रक्रिया अभी जारी है मगर आर.जी.ए. कर्मचारियों का कहना है कि स्थानीय अधिकारी हाथ से मैला साफ करने वालों की उपस्थिति का खंडन करने के दबाव में हैं, विशेषकर तब जब जिले को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है। अप्रैल 2018 में सांता देवी तथा उसके बेटों सहित बेहनारा की मेहतर बस्ती के 10 सदस्य सर्वेक्षण दल द्वारा आयोजित पंजीकरण शिविर में गए थे। उनके नाम सर्वेक्षण की सूची में शामिल किए गए मगर उसके साथ संलग्न सत्यापन कालम में जिलाधिकारियों ने वही अपरिवर्तनशील शब्द भर दिए: ‘मैला ढोने का कार्य नहीं करते’।-पी. जेबराज

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