नवाज़ के बाद अब उनके भाई शाहबाज की भी ‘बलि’ लेना चाहता है विपक्ष

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Dec, 2017 02:35 AM

after nawaz now his brother wants to sacrifice shahbaz khans opposition

परन्तु पी.पी.पी. के सह-अध्यक्ष आसिफ जरदारी ने जब पाकिस्तान अवामी तहरीक (पी.ए.टी.) के संस्थापक डा. ताहिर-उल-कादरी के साथ उनके मिनहाज-उल-कुरान सचिवालय में नाता सांठने का फैसला कर लिया तो इससे औपचारिक रूप में सी.ओ.डी. दफन हो गया। एक संयुक्त बयान में...

2006 में लंदन में 2 निर्वासित राजनीतिज्ञों बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ के बीच बहुत धूमधाम से जिस कथित ‘चार्टर ऑफ डैमोक्रेसी’ (सी.ओ.डी.) पर हस्ताक्षर किए गए थे वह बीते रविवार लाहौर में अपनी कुदरती मौत मर गया क्योंकि लंबे समय से व्यावहारिक रूप में यह ठंडे बस्ते में ही पड़ा था। 

परन्तु पी.पी.पी. के सह-अध्यक्ष आसिफ जरदारी ने जब पाकिस्तान अवामी तहरीक (पी.ए.टी.) के संस्थापक डा. ताहिर-उल-कादरी के साथ उनके मिनहाज-उल-कुरान सचिवालय में नाता सांठने का फैसला कर लिया तो इससे औपचारिक रूप में सी.ओ.डी. दफन हो गया। एक संयुक्त बयान में जरदारी ने बहुत जोर-शोर से मांग की कि शाहबाज शरीफ को सत्ता छोडऩी होगी क्योंकि माडल टाऊन हत्याकांड (जिसमें जून, 2014 में पश्चिमी पंजाब की पुलिस द्वारा की गई अंधाधुंध फायरिंग में पी.ए.टी. के 14 सदस्य मारे गए) के बारे में बाकिर नजफी की जांच रिपोर्ट में उन्हें दोषी पाया गया है।

यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट के कारण नवाज शरीफ द्वारा कुर्सी छोड़ देने के बाद विपक्ष अब उनके छोटे भाई शाहबाज शरीफ की भी बलि लेना चाहता है। जरदारी ने पी.टी.आई. प्रमुख इमरान खान को भी विश्वास दिलाया है कि उनकी मांगों के समर्थन में पी.पी.पी. भी सड़कों पर आकर आंदोलन करेगी। इसी तरह इमरान खान ने डाक्टर कादरी को अपने समर्थन का विश्वास दिलाया है। अकेले दम पर कई नेताओं का करियर धराशायी करने वाले शेख राशिद पहले ही शरीफ बंधुओं को बर्बाद करने का मिशन पूरा करने वालों के साथ डटे हुए हैं। ऐसे में भला गुजरात जिले के चौधरी पी.ए.टी. प्रमुख को समर्थन दिए बिना कैसे रह सकते थे?

विडम्बना यह है कि मुख्य धारा की राजनीतिक पार्टियों और पी.ए.टी. के बीच कोई खास समानता नहीं है और पी.ए.टी. के पास संसद की एक भी सीट नहीं है। उदाहरण के तौर पर सिंध में पी.पी.पी. न केवल सत्तारूढ़ है बल्कि संसद में भी वह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। इसी प्रकार पी.टी.आई. संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है और साथ ही खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सत्तारूढ़ भी है। जहां तक पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ की पार्टी पी.एम.एल.-क्यू. का संबंध है, इसकी इस हद तक खटिया खड़ी हो चुकी है कि इसके अध्यक्ष चौधरी शुजात हुसैन और उनके चचेरे भाई चौधरी परवेज इलाही के सिवाय मुश्किल से ही कोई महत्वपूर्ण हस्ती पार्टी के साथ रह गई है। 

इमरान खान शाहबाज शरीफ से नफरत करते हैं लेकिन जरदारी से शायद उससे भी अधिक करते हैं। अनेक मौकों पर उन्होंने अपनी रैलियों और बयानों में कहा है कि शरीफ के बाद भ्रष्टाचार के दोषों में फंसने की बारी जरदारी की है। विपक्षी दलों में शायद एक ही बात पर एकता बनी हुई है और वह है शरीफ बंधुओं से घोर नफरत। शरीफ बंधुओं और उनकी पार्टी को धराशायी करना ही पी.टी.आई. के लिए जिंदगी-मौत का सवाल बना हुआ है क्योंकि अगले आम चुनाव में यह पाकिस्तान के सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत पंजाब  की सत्ता किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहती है। यही कारण है कि इमरान खान ने पहले ही पंजाब के कोने-कोने में सार्वजनिक मीटिंगों और रैलियों का सिलसिलेवार अभियान चलाया हुआ है। 

लेकिन 100 सवालों का एक सवाल यह है कि शाहबाज शरीफ को विपक्ष के संयुक्त हमले के माध्यम से सत्ता छोडऩे को मजबूर करने का जरदारी को क्या लाभ होगा? बेशक पी.पी.पी. और पी.टी.आई. एक-दूसरे को दिल की गहराइयों से नफरत करती हैं तो भी स्वार्थसिद्धि की राजनीति में कुछ भी संभव है। दूसरी ओर पी.एम.एल.-नवाज को बेशक हाल ही में कुछ बुरे दिन देखने पड़े हैं फिर भी यह पार्टी इतनी आसानी से खदेड़ी नहीं जा सकती। जहां तक नवाज शरीफ का संबंध है, वह निश्चय ही कुछ कमजोर हुए हैं लेकिन उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा है। 

अपने विरुद्ध भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बावजूद अपने नेतृत्व को मिलने वाली चुनौतियों पर नवाज ने किसी न किसी तरह काबू पा लिया है। कुछ हद तक विपक्ष के बचकानापन और कुछ हद तक इसकी अवसरवादिता के चलते नवाज शरीफ अपनी पार्टी की अध्यक्षता अपने हाथों में रखने में सफल हुए हैं। उन्हें कोई नई कानूनी चुनौती मिलने की संभावना नहीं। अपने छोटे भाई के विपरीत नवाज शरीफ ने न्यायपालिका और इसकी हां में हां  मिलाने वाली सत्ता व्यवस्था के विरुद्ध ताबड़तोड़ हमले जारी रखे हुए हैं। शाहबाज बेशक अपनी पार्टी की ओर से अगले आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं लेकिन इसके बावजूद वह अपने बड़े भाई को नरम मुद्रा अपनाने पर राजी नहीं कर सके। फिर भी यह स्पष्ट है कि चुनाव में पी.एम.एल.-नवाज की असली शक्ति खुद नवाज शरीफ ही होंगेक्योंकि शाहबाज बेशक एक बहुत परिश्रमी मुख्यमंत्री हैं तो भी वह वोट आकर्षित करने की काबिलियत नहीं रखते। 

जरदारी भी अपनी जगह जानते हैं कि उनकी पत्नी बेनजीर और पार्टी के संस्थापक जुल्फिकार अली भुट्टो को अपने-अपने समय में सेना तंत्र की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। वास्तव में दोनों की मौत देश में लोकतंत्र बहाली के संघर्ष दौरान सेना की चालबाजियों के कारण ही हुई थी। इसी कारण जरदारी ने संसद में शरीफ का बचाव किया था, हालांकि वह शरीफ के रवैये से काफी कड़वाहट महसूस करते हैं।-आरिफ निजामी

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