शिवसेना के बाद अब अन्नाद्रमुक विभाजन की ओर अग्रसर

Edited By ,Updated: 05 Jul, 2022 04:26 AM

after shiv sena now aiadmk is headed for a split

जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना का विभाजन हुआ है, वैसे ही तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ई. पलानीस्वामी (ई.पी.एस.) तथा ओ. पनीरसेल्वम (ओ.पी.एस.) को लेकर सत्ता संघर्ष में संलग्न

जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना का विभाजन हुआ है, वैसे ही तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ई. पलानीस्वामी (ई.पी.एस.) तथा ओ. पनीरसेल्वम (ओ.पी.एस.) को लेकर सत्ता संघर्ष में संलग्न है। एक तेजी से घटते हुए घटनाक्रम में ई.पी.एस. खेमा ओ.पी.एस. को उनके वर्तमान पार्टी कोषाध्यक्ष तथा विधानसभा में उपनेता के पद से हटाने की कोशिश में है। गत वर्ष विधानसभा चुनाव हारने के बाद तथा उसके बाद स्थानीय निकाय चुनावों में पराजय झेलने के उपरांत ई.पी.एस. खेमा महसूस करता है कि दोहरा नेतृत्व केवल पार्टी की कार्यप्रणाली  में बाधा पैदा कर रहा है। 

गोल्डन जुबली समारोहों के बीच अन्नाद्रमुक के कार्यकत्र्ता दुविधा में हैं। पांच वर्ष पहले जब अपेक्षाकृत एक अज्ञात ई.पी.एस. को अन्नाद्रमुक की पूर्व महासचिव वी.के. शशिकला द्वारा मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार चुना गया था, ई.पी.एस. तथा ओ.पी.एस. 2017 में दोहरा नेतृत्व स्थापित करने के लिए एक समझौते पर पहुंचे। उन्होंने महामारी का सामना करते हुए 4 वर्षों तक पार्टी तथा सरकार का सफलतापूर्वक मिल कर संचालन किया। 

5 दशक बाद अन्नाद्रमुक एक कमजोर भविष्य का सामना कर रही है। 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों-संस्थापक एम.जी. रामचंद्रन तथा उनकी संरक्षक जे. जयललिता द्वारा सतर्कतापूर्वक निर्मित द्रविडिय़न पार्टी अब ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर है। नेताओं तथा कार्यकत्र्ताओं के बीच संपर्क का अभाव है। पार्टी के सामने कुछ चुनौतियों में करिश्माई नेतृत्व, धड़ेबाजी तथा एक सख्त नजरिया शामिल है कि कैसे यह अपनी सहयोगी भाजपा से निपटती है, जो द्रमुक की एक जवाबी शक्ति के तौर पर उसका विकल्प बनने की कोशिश कर रही है। यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि जयललिता काल के बाद पार्टी में धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है। शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में अन्नाद्रमुक की मत हिस्सेदारी 25.47 प्रतिशत रही जबकि विधानसभा चुनावों में इसने 33.29 प्रतिशत मत हासिल किए। 

करिश्माई सुपरस्टार एम.जी.आर. ने अन्नाद्रमुक की स्थापना 12 अक्तूबर 1972 को, उनकी मूल पार्टी द्रमुक से उन्हें निष्कासित करने के 2 दिन बाद की थी। वह 1977 से लेकर 1987 में अपने निधन तक राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर सेवाएं देते रहे। उन्होंने केंद्र का साथ देना चुना तथा इंदिरा गांधी सहित प्रधानमंत्रियों के साथ समझौते किए। द्रमुक के संस्थापक तथा पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरई की विचारधारा अन्नाद्रमुक की संस्थापक विचारधारा बनी। एम.जी.आर. की उत्तराधिकारी जयललिता ने अलग-अलग समयों पर भाजपा तथा कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और कुछ अंतरालों के बाद 6 बार मुख्यमंत्री बनीं। 

ऐसा पहली बार नहीं है कि अन्नाद्रमुक विभाजन का सामना कर रही है। 1987 में एम.जी.आर. के निधन के बाद एम.जी.आर. की पत्नी जानकी तथा एक अन्य जयललिता के नेतृत्व में दो धड़ों के बीच सत्ता संघर्ष शुरू हुआ। जहां थोड़े समय के लिए जानकी मुख्यमंत्री बनने में सफल हुईं, दोनों धड़े 1989 के चुनावों में बुरी तरह से हार गए। तब जानकी ने राजनीति छोडऩे का फैसला किया और जयललिता इकलौती नेता बन गईं। ओ.पी.एस. तथा ई.पी.एस. अपनी लड़ाई को जनरल कौंसिल तक ले गए हैं जिसके पास अंतरिम महासचिव चुनने की शक्ति है न कि स्थायी को। जयललिता के निधन के बाद इसी तरह से शशिकला ने यह पद हासिल किया था। मगर ई.पी.एस. तथा ओ.पी.एस. ने शशिकला को उस पद से हटा दिया तथा नए पदों का निर्माण किया जैसे कि समन्वयक तथा सहायक समन्वयक, जो अस्थायी ही थे। 

वर्तमान स्थिति में, ओ.पी.एस. को जनरल कौंसिल बैठक में चर्चा बिंदुओं पर रोक लगाने के लिए तमिलनाडु हाईकोर्ट में मध्य रात्रि को सुनवाई का सामना करना पड़ा। इस तरह से उन्होंने 23 जून को आयोजित जनरल कौंसिल बैठक में ई.पी. पलानीस्वामी को एकमात्र नेता बनाने से पार्टी को रोक दिया। हालांकि चर्चा ने उस समय गंदा मोड़ ले लिया जब दोनों धड़ों के बीच झगड़े फूट पड़े। गत कुछ दिनों में 75 जिला सचिव, मुख्यालय कार्यकत्र्ता तथा जनरल कौंसिल सदस्य ई.पी.एस. खेमे में चले गए। ओ.पी.एस. को केवल 9 जिला सचिवों तथा मनोज पांडियन व आर. वैथिलिंगम जैसे नेताओं का समर्थन प्राप्त है। 

ओ.पी.एस. ने निहित स्वार्थों का आरोप लगाया और इस बात पर जोर दिया कि अन्नाद्रमुक के शीर्ष कार्य अधिकारियों की सोमवार को हुई जनरल कौंसिल बैठक अवैध थी। इसी तरह  से 11 जुलाई को प्रस्तावित जनरल कौंसिल भी वैध नहीं है। अब इस बारे में संदेह है कि यह बैठक होगी या इसे रोकने के लिए ओ.पी.एस. अदालत का रुख करेंगे। जया के बाद केंद्र से अन्नाद्रमुक का रिमोट कंट्रोल भाजपा के पास है। नीट, नई शिक्षा नीति, त्रिभाषीय नीति (पहले स्वीकृति और फिर प्रदर्शनों के बाद इसे वापस लेना), सी.ए.ए., कृषि कानूनों, महामारी से निपटने आदि जैसे मुद्दों को लेकर बदलाव बहुत स्पष्ट था। 

विचारधारा के चलते भाजपा बहुत अधिक सेंध लगाने में सक्षम नहीं है। तमिलनाडु में द्रविडिय़न-तमिल भावनाएं बहुत मजबूत हैं। अत: कांग्रेस की ही तरह भाजपा भी अन्नाद्रमुक के आसरे है। द्रविडिय़न पार्टियों ने विभिन्न समयों पर दोनों राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन किया है। ओ.पी.एस. ने भाजपा को लुभाने का प्रयास किया जिसने पहले उनका समर्थन किया था लेकिन गत सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे मिलने के लिए समय देने से इंकार कर दिया। निराश ओ.पी.एस. दिल्ली से वापस लौट आए तथा अपना अस्तित्व बचाने के लिए अन्य उपायों की तलाश में हैं। 

किसी भी राजनीतिक दल में कार्यकत्र्ता निर्णय करते हैं कि कौन पार्टी का नेतृत्व करेगा और इस मामले में पनीरसेल्वम निश्चित तौर पर उनका पहला चुनाव नहीं हैं। एक ऐसे समय में उन्होंने इस तथ्य को स्वीकार किया और अन्नाद्रमुक के 1.5 करोड़ कार्यकत्र्ताओं की उनके नेता के तौर पर स्वीकृति प्राप्त करने के लिए काम करना शुरू किया क्योंकि आखिरकार अदालतें उन्हें उनके कार्यकत्र्ता वापस नहीं लौटा सकतीं।-कल्याणी शंकर
    

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