‘अकबर खां ने माना कि उड़ी में उसका मिशन नाकाम हो गया था’

Edited By ,Updated: 08 Nov, 2020 04:48 AM

akbar khan admitted that his mission in uri had failed

मैंने समझा कि वह ज्यादा लंबे समय तक वहां नहीं रुक पाएंगे, इसलिए मैं उड़ी वापस यह देखने चला गया कि कबायली बातचीत कैसी चल

मैंने समझा कि वह ज्यादा लंबे समय तक वहां नहीं रुक पाएंगे, इसलिए मैं उड़ी वापस यह देखने चला गया कि कबायली बातचीत कैसी चल रही है। एक क्षण में उनकी इच्छा होती और दूसरे ही क्षण वह बदल जाती। अब भी असल बहस यह थी कि वह सुरक्षित अड्डे की गैर-मौजूदगी को लेकर खुश नहीं है। उन्हें यह अनुभव हुआ कि सड़क के पार एक मुनासिब जगह पकड़े रहना चाहिए था और फिर वे खुशी-खुशी सारे देश में भारतीयों का शिकार करने जा सकते थे। बदकिस्मती से मैं इस जरूरत को पूरा करने की पोजीशन में नहीं था, इसलिए बातचीत यद्यपि अब तक जारी थी लेकिन उनकी जरूरत खत्म होती जा रही थी। 

‘‘सूरज डूबने के वक्त भारतीय सेना अब भी टूटे हुए पुल के पास, पाकिस्तानी सीमा से शायद 75-80 मील के फासले पर थी। लेकिन यूं ही अन्धेरा बढ़ा हमारे रजाकार, खोने खान और उनके फौजियों ने निकलना शुरू किया, क्योंकि वह अकेले रह जाना नहीं चाहते थे। उस समय उड़ी में एक विचार जो तकरीबन हर किसी के दिमाग में था वह यह कि कश्मीर से पूरी तरह से निकला जाए। 

यह अब अटल लग रहा था और हर कोई बेचैन था। सूरज डूबने के बाद अभी एक घंटा ही हुआ था कि काफी लोग अपनी सवारियां लेकर चले गए और जो बाकी बचे वो भी जाने को तैयार थे। फिर भी मैंने यह उम्मीद लगा ली थी कि कुछ सौ जवान रुक जाएं, 100 ऐसे लोग जिनके पास केवल राइफलें थीं और वो किसी अनुशासन या कबायली समझौता के अधीन नहीं थे। उनका भारतीय फौजों के साथ किसी प्रकार का टकराव सोच के परे था, क्योंकि इन भारतीयों की गिनती शायद 1000 से अधिक थी जो बख्तरबंद गाडिय़ों के अलावा तोप और आकाश से आने वाले हवाई जहाजों से लैस थे। मैं अब भी 100 जवानों से काफी खुश था क्योंकि शारीरिक रूप से वो काफी मजबूत थे। लेकिन यह आशा भी पूरी न हुई। 

उड़ी शीघ्र ही टूटी हुई झोंपडिय़ों और शिकारी कुत्तों वाला उजड़ा हुआ शहर बन रहा था। उड़ी में शायद 1000 से ज्यादा लोग थे। कुछ ने साथ देने की तजवीज पेश की तो कुछ ने प्रण किया और वापस आ गए। अब वे सबके सब वापस हो रहे थे।। ‘‘9 बजे आखिरी जाने वाली गाड़ी की रोशनी भी फासले में गायब हो गई जो कुछ बाकी बचा था उसकी मैंने तलाश शुरू की। इसी जल्दी में मेरा स्टाफ अफसर कैप्टन तसकीनुद्दीन और वायरलैस सैट भी चला गया। दर्जन भर लोगों के सिवाय कोई भी बाकी न बचा। रजाकार, कबायली और अन्य पठान सब चले गए और राशद के चिनार से आए 300 स्वाती भी शाम के समय चले गए। मेरा मिशन बिल्कुल नाकाम हो चला था। 24 घंटे की लगातार मेहनत मिट्टी में मिल गई थी।’’-ओम् प्रकाश खेमकरणी
 

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