कारों के बोझ से ‘बेहाल’ छोटे-बड़े सभी शहर

Edited By Pardeep,Updated: 13 Oct, 2018 02:33 AM

all cities  unimportant  with the burden of cars

इन दिनों राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के शहरों में बढ़ती हुई पैट्रोल और डीजल की कारों के बारे में जो रिपोर्टें प्रकाशित हो रही हैं, उनमें यह कहा जा रहा है कि बढ़ती हुई कारों के सैलाब के कारण पैट्रोल-डीजल का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है,...

इन दिनों राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के शहरों में बढ़ती हुई पैट्रोल और डीजल की कारों के बारे में जो रिपोर्टें प्रकाशित हो रही हैं, उनमें यह कहा जा रहा है कि बढ़ती हुई कारों के सैलाब के कारण पैट्रोल-डीजल का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है, ट्रैफिक जाम और  प्रदूषण की स्थिति लगातार बिगड़ रही है, ऐसे में भारत में इलैक्ट्रिक और वैकल्पिक ऊर्जा से चलने वाले वाहन तथा सार्वजनिक परिवहन एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में दिखाई दे रहे हैं। न्यूयार्क स्थित वैश्विक संगठन ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनांस (बी.एन.ई.एफ.) का हाल ही में प्रकाशित वैश्विक सर्वेक्षण उल्लेखनीय है। 

इसमें कहा गया है कि भारत समेत दुनिया के 14 देश अगले दो दशकों में पैट्रोल-डीजल की कारों की बिक्री को बंद  करने की रणनीतिक तैयारी कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, चीन, जर्मनी, फिनलैंड और स्लोवेनिया 2030 तक यह लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। कहा गया है कि इन देशों में इलैक्ट्रिक तथा वैकल्पिक ऊर्जा से चलने वाली कारों के साथ-साथ सार्वजनिक परिवहन को नए यातायात विकल्प के रूप में तेजी से विकसित किया जा रहा है। इस समय पैट्रोल-डीजल से चलने वाली कारों की संख्या अमरीका में 3.35 करोड़, ब्रिटेन में 3.12 करोड़, चीन में 2.70 करोड़, यूरोपीय देशों में 2.52 करोड़ और भारत में 2.30 करोड़ है। निश्चित रूप से भारत में बढ़ते हुए शहरीकरण और शहरों में वाहनों और कारों की बढ़ती हुई  संख्या प्रदूषण जन्य बीमारियों का प्रमुख कारण बनती जा रही है। 

हमारे देश में कारों की संख्या कितनी तेजी से बढ़ रही है इसका अनुमान वाहन विनिर्माताओं के संगठन सियाम की इस रिपोर्ट से लगाया जा सकता है कि दुनिया के विकासशील देशों में कारों की सबसे अधिक बढ़ती हुई संख्या भारत में है। जुलाई 2018 के अंत में देश की सड़कों पर लगभग 2 करोड़ 30 लाख कारें दौड़ रही थीं। देश में प्रतिमाह करीब 2 लाख से अधिक कारों की बिक्री हो रही है। दिल्ली में देश की सबसे अधिक कारेंं हैं। दिल्ली में कारों की  संख्या मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता से भी ज्यादा है। चूंकि देश में शहरों की सीमाओं का विस्तार होने से अब लोगों को कार्यस्थल पर जाने के लिए अधिक दूर जाना पड़ रहा है, ऐसे में ट्रैफिक जाम और प्रदूषण जैसी समस्याएं और गंभीर रूप ही अख्तियार करेंगी। देश में जहां कारों का ढेर लगता जा रहा है, वहीं देश में बसों की संख्या बहुत कम है। देश में करीब 19 लाख 70 हजार बसें हैं। इनमें से 18 लाख  30 हजार निजी क्षेत्र में और 1 लाख 40 हजार सरकारी क्षेत्र में हैं। इतना ही नहीं, प्रमुख क्रैडिट रेटिंग एजैंसी क्रिसिल के आकलन के अनुसार, छोटी कारों की कम कीमत तथा सरलता से उपलब्ध बैंक लोन के कारण दोपहिया से उठकर चार पहिया वाहन की सवारी करने के इच्छुक देश के लोगों की संख्या छलांगें लगाकर बढ़ रही है। 

देश में बढ़ती हुई कारों के सैलाब के कारण कई चिंताजनक प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए हैं। जब तंग सड़कों के कारण छोटे-बड़े सभी शहरों में ट्रैफिक जाम परेशानी का सबब बना हुआ है, ऐसे में बढ़ती हुई लाखों नई कारों के लिए नई मजबूत और चौड़ी सड़कों की पूर्ति कैसे होगी? जब कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण डॉलर के मुकाबले 74 रुपए के स्तर पर फिसले हुए रुपए ने देश की अर्थव्यवस्था को हिला दिया है, तब बढ़ती हुई लाखों नई कारों को चलाने के लिए क्या महंगा ईंधन अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव नहीं बनाएगा? हमें तय करना है कि हम वर्तमान पीढ़ी को कैसा पर्यावरण देना चाहते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कैसी विरासत छोड़ते हैं? हमें कारों और वृक्षों के बीच में से एक का चयन करना है। 

स्पष्ट है कि कारें भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य नहीं हो सकती हैं। देश के सभी शहरों में इलैक्ट्रिक एवं वैकल्पिक ऊर्जा के वाहनों के साथ-साथ सार्वजनिक परिवहन की कारगर व्यवस्था पर विचार मंथन की आवश्यकता है। दुनिया के अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली से लोग बड़ी संख्या में लाभान्वित हो रहे हैं। उदाहरण के लिए जापान की राजधानी टोक्यो में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था प्रतिदिन करीब 90 लाख से अधिक लोगों को लाभान्वित करती है और  परिवहन व्यवस्था संबंधी कोई चिंता पैदा नहीं होती। इसी तरह दुनिया के कई चमकीले शहरों जैसे लंदन में 45 फीसदी और  सिंगापुर में 59 फीसदी लोग सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का ही उपयोग करते हैं। निश्चित रूप से अब हमें पैट्रोल और डीजल की बढ़ती हुई कारों से हो रही परेशानियों को ध्यान में रखकर शहरी यातायात के लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को कारगर बनाना होगा। 

इस परिप्रेक्ष्य में बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बी.आर.टी.एस.) के जरिए सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को मजबूत बनाने की कोशिश की जानी होगी। इस व्यवस्था से शहरों में अधिक लोगों का सरलतापूर्वक आवागमन हो सकता है। बड़े शहरों में मैट्रो रेल और बी.आर.टी.एस. मिलकर यातायात की समस्या का बहुत हद तक निराकरण भी कर सकते हैं। वल्र्ड बैंक की एक नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की प्रमुख आॢथक गतिविधियां जिन छोटे-बड़े शहरों में केन्द्रित हैं, उन शहरों और उनके क्षेत्र में आने वाले ग्रामीण इलाकों को जोडऩे के लिए कारों के बढ़ते इस्तेमाल की बजाय सार्वजनिक परिवहन की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। भारत के शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को ठीक करने के लिए विभिन्न आकार-प्रकार की, अलग-अलग कीमत उपयोगिता वाली तथा अलग-अलग किस्म की आरामदायक बसें सरलता से मुहैया होनी चाहिएं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में लोगों के आवागमन के लिए यातायात व्यवस्था जितनी सुगम होगी उतना ही भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा मिलेगा। 

हम सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की बेहतरी एवं वित्तीय व्यवस्था हेतु ब्रिटेन के लंदन, स्वीडन के स्टॉकहोम, सिंगापुर तथा इटली के मिलान जैसे वैश्विक शहरों से सबक ले सकते हैं। इन शहरों में परिवहन समस्या कम होने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इनमें निजी वाहनों पर कंजेशन चार्ज लगाया जाता है। लंदन में 2003 से कारों पर कंजेशन चार्ज लगाने की शुरूआत हुई और प्रत्येक कार पर प्रतिदिन 1025 रुपए चुकाने पड़ते हैं। स्टॉकहोम, मिलान तथा सिंगापुर में भी कंजेशन चार्ज लगता है। हमारे देश में खासतौर से प्रदूषित एवं ट्रैफिक जाम से बेहाल शहरों में सड़कों पर चलने वाली निजी कारों पर कर वसूल किया जाना चाहिए। नीति आयोग ने विगत 3 सितम्बर को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में साफ कहा कि जिन शहरों में भारी ट्रैफिक से हालात बिगड़ते जा रहे हैं, प्रदूषण बढ़ रहा है वहां निजी वाहनों पर तुरंत कंजेशन शुल्क लगाना चाहिए। नीति आयोग ने वैकल्पिक इलैक्ट्रिक ऊर्जा के वाहनों के साथ-साथ सार्वजनिक परिवहन की नई रणनीति पेश करने की बात कही है। कहा गया है कि भारत में जल्द ही लंदन, सिंगापुर और अन्य अंतर्राष्ट्रीय महानगरों की तर्ज पर सार्वजनिक परिवहन के विभिन्न साधनों के लिए एक परिवहन कार्ड की नीति पेश की जाएगी।

इस कार्ड से पूरे देश में कहीं भी सार्वजनिक परिवहन के विभिन्न साधनों से यात्रा की जा सकेगी। ऐसी नई व्यवस्था से सार्वजनिक परिवहन के प्रति लोगों का रुझान बढ़ेगा तथा उनके यातायात खर्च में कमी आएगी। सार्वजनिक परिवहन के लिए इलैक्ट्रिक, एथेनॉल, मैथेनॉल, सी.एन.जी. और हाईड्रोजन ईंधन सैल जैसे परिवहन के प्रदूषण रहित साधन उपयोग में लाए जाने से प्रदूषण में कमी लाई जा सकेगी तथा पैट्रोल और डीजल की तेजी से बढ़ती हुई मांग में भी कमी आएगी। निश्चित रूप से इस समय देश में कारों के बोझ से बेहाल और बीमार सभी छोटे-बड़े शहरों में सार्वजनिक परिवहन सहित इलैक्ट्रिक और वैकल्पिक ऊर्जा का उपयोग करने वाले परिवहन के साधनों का प्राथमिकता से उपयोग जरूरी है। हम आशा करें कि भारत सरकार बी.एन.ई.एफ. की रिपोर्ट के मद्देनजर देश में इलैक्ट्रिक और वैकल्पिक ऊर्जा से चलने वाली कारों तथा सुगम सावर्जनिक परिवहन व्यवस्था के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ेगी ताकि 2030 तक पैट्रोल-डीजल कारों को हटाया जा सके। इससे देश की अर्थव्यवस्था कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के खतरों का सामना कर सकेगी और अर्थव्यवस्था विकास की तेज डगर पर आगे बढ़ सकेगी।-जयंती लाल भंडारी    
                

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