अपना रॉकेट धरती पर गिरने पर चीन की चुप्पी से अमरीका नाराज

Edited By ,Updated: 05 Aug, 2022 06:31 AM

america angered by china s silence on its rocket falling on the ground

चीन अंतरिक्ष में अपना खुद का स्पेस स्टेशन बना रहा है, जिसके लिए वह अपने विशाल रॉकेटों से स्पेस स्टेशन के छोटे-बड़े टुकड़ों को समय-समय पर अंतरिक्ष में भेजता है और उन्हें जोड़ता

चीन अंतरिक्ष में अपना खुद का स्पेस स्टेशन बना रहा है, जिसके लिए वह अपने विशाल रॉकेटों से स्पेस स्टेशन के छोटे-बड़े टुकड़ों को समय-समय पर अंतरिक्ष में भेजता है और उन्हें जोड़ता जा रहा है, जिससे वह एक बड़ा स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में बना सकेगा। इस स्पेस स्टेशन का नाम चीन ने थियानकुंग रखा है। अंतरिक्ष में अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के बाद यह दूसरा स्पेस स्टेशन होगा, जो मानव निर्मित होगा। 

युनाइटेड किंगडम में एक शोध के दौरान पता चला कि अंतरिक्ष में फैले और मानव द्वारा भेजे गए उपग्रहों के कचरे वापस धरती पर गिरने की घटनाओं से होने वाली दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ती जा रही है। दरअसल अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले रॉकेटों के सपोर्ट सिस्टम के धरती पर गिरने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, जिससे धरती पर रहने वालों के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। 

पिछले शनिवार को चीन द्वारा अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए सबसे शक्तिशाली और बड़े रॉकेट (लांगमार्च-5 बी) का जला हुआ हिस्सा धरती पर गिरा। 176 फुट लंबा और 23 टन भारी रॉकेट का बचा हुआ हिस्सा फिलीपींस के एक द्वीप के पास गिरा। मलेशिया के एक व्यक्ति ने इसका वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर पोस्ट भी कर दिया था। धरती के वातावरण में वापस आते समय वैसे तो रॉकेट के हिस्से रास्ते में ही जल जाते हैं, लेकिन इस भारी-भरकम रॉकेट का बड़ा हिस्सा जल नहीं पाया और धरती पर आ गिरा, लेकिन इससे किसी की जान को कोई खतरा नहीं हुआ। चीन ने लांगमार्च-5बी को दक्षिणी चीन के हैनान प्रांत के लांच स्टेशन से अंतरिक्ष में भेजा था, जिसे थियानकुंग अंतरिक्ष स्टेशन से जाकर जुडऩा था। 

चीन अंतरिक्ष में रॉकेट तो भेजता है लेकिन उसके पास वह दक्षता नहीं, जो अमरीका, यूरोपीय संघ, भारत और कई दूसरे देशों के पास है, क्योंकि इन दोनों देशों के रॉकेट के टुकड़े कभी धरती पर नहीं गिरते। लेकिन चीन के रॉकेटों का धरती पर गिरने का एक सिलसिला-सा चल निकला है। अगर हम पिछले 6 वर्षों की रिपोर्ट देखें तो चीन का यह तीसरा रॉकेट है जो धरती पर गिरा है। वर्ष 2016 में थियानकुंग-1 का मलबा प्रशांत महासागर में गिरा था। उस समय चीन ने इस बात को स्वीकार किया था कि इस रॉकेट का नियंत्रण उनके हाथों से निकल गया था। इसके बाद दूसरी घटना मई 2020 की है जब चीन का लांगमार्च-1बी, 18 टन का एक रॉकेट, अनियंत्रित होकर पश्चिम अफ्रीकी देश आईवरी कोस्ट पर जा गिरा था, जिससे वहां पर दर्जनों इमारतों को नुक्सान पहुंचा था। संयोग से इस घटना में कोई भी हताहत नहीं हुआ था। 

इस दुर्घटना के बारे में नासा के उच्चाधिकारी बिल नेल्सन ने चीन की आलोचना करते हुए कहा था कि दुनिया के सभी अंतरिक्ष अभियानकत्र्ता देशों को इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि वे ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल करें जिससे धरती पर कोई दुर्घटना न हो सके। इसके साथ ही सभी देशों को अपने अंतरिक्ष अभियान से जुड़ी जानकारियां एक-दूसरे के साथ सांझी करनी चाहिएं। पिछले वर्ष ही नासा और दूसरी स्पेस एजैंसियों ने चीन को उसकी अपारदर्शी अंतरिक्ष नीतियों के लिए खूब खरी-खोटी सुनाई थी, जब चीन ने अपने अंतरिक्ष मलबे के गिरने की कोई लोकेशन और लक्षित जगह के बारे में कुछ भी नहीं बताया था, लेकिन पेइङ्क्षचग की तरफ से इस बारे में एक भी शब्द नहीं बोला गया। 

हालांकि ये वे रॉकेट हैं जो चीन की सीमा से बाहर दुनिया के दूसरे हिस्सों में गिरे थे, जिसे चीन को स्वीकारना उसकी मजबूरी बन गया था, लेकिन कई ऐसे भी रॉकेट हैं जो चीन की सीमा में गिरे, जिनके बारे में चीन ने कभी कोई वक्तव्य जारी नहीं किया। चीनी मीडिया भी उन दुर्घटनाओं को छिपा गया। नासा ने कहा कि जब भी कोई रॉकेट चीन के हाथों से अनियंत्रित होकर धरती पर गिरता है तो वह न तो इसकी जानकारी देता है और न ही उस क्षेत्र विशेष के लोगों को इस खतरे से आगाह करता है। 

चीन को अपनी वनथियान साइंस लैब को थियानकुंग अंतरिक्ष स्टेशन से जोडऩा था, जिसके लिए चीन ने अपना सबसे ताकतवर  रॉकेट लांगमार्च-5बी भेजा, इसमें एक कोर बूस्टर है, जिसकी लंबाई 100 फुट से ज्यादा है। इसके अलावा भी इसमें 4 और बूस्टर लगे रहते हैं, जो अंतरिक्ष यान को निर्धारित कक्षा में स्थापित करने में मदद करते हैं। इस बार यह कोर बूस्टर वाला हिस्सा चीन के नियंत्रण से बाहर होकर धरती पर जा गिरा। 

चीन का मलबा गिरने के स्थान में बंगाल की खाड़ी में बंगलादेश की समुद्री सीमा के पास से लेकर पूरा दक्षिणी प्रशांत महासागर का क्षेत्र आता है, जिसमें पापुआ न्यू गिनी, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम, म्यांमार, कंबोडिया, सिंगापुर जैसे देशों की लोकेशन शामिल है। चीन अपनी इस गलती को सुधार सकता है, जिसके लिए उसे तकनीकी तौर पर उन्नत रॉकेट बनाने होंगे, लेकिन ऐसा करने में अधिक धन लगता है, जो चीन खर्च नहीं करना चाहता। चीन को इस बात से कोई मतलब नहीं कि उसके अंतरिक्ष मलबे से किसी की जान चली जाए या किसी देश को जान-माल का नुक्सान पहुंचे। 

चीन इससे बचने के लिए दोबारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले रॉकेटों का इस्तेमाल कर सकता है, इनमें उन्नत तकनीक के इस्तेमाल से बूस्टर को हवाई जहाज की तरह धरती पर उतारा जा सकता है, लेकिन यह बहुत खर्चीला काम है जिसे चीन किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहेगा।

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